
नागपंचमी की शुरुआत वैदिक युग में नागों का उल्लेख
ऋग्वेद, महाभारत, पुराण और उपनिषदों में “नाग” शब्द का बारंबार उल्लेख मिलता है।
नागों को धरती और पाताल के बीच के लोक का संरक्षक माना गया है।
नागदेवता, जल और वर्षा के प्रतीक हैं — अतः कृषि प्रधान भारत में इनकी पूजा वर्षा ऋतु में श्रावण मास में होती है।
ऐतिहासिक और पौराणिक कारण कश्यप ऋषि की संतति
महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू से नागों की उत्पत्ति मानी जाती है।
शेषनाग, वासुकी, तक्षक, कुलिक, पद्म, महापद्म आदि नाग इनके प्रमुख पुत्र हैं।
महाभारत का जनमेजय नाग यज्ञ राजा परिक्षित की मृत्यु नाग तक्षक के विष से हुई थी।
पुत्र जनमेजय ने बदला लेने के लिए सर्प-सत्र (नाग यज्ञ) करवाया, जिससे सारे नाग नष्ट हो रहे थे।
उसी समय आस्तीक ऋषि (एक ब्राह्मण और नाग माता मनसा देवी के पुत्र) ने यह यज्ञ रुकवाया।
यह यज्ञ श्रावण शुक्ल पंचमी को रोका गया, इसलिए इस दिन को नागों के जीवन की रक्षा के रूप में मनाया जाने लगा।
यही दिन “नागपंचमी” कहलाया।प्राकृतिक और सामाजिक कारण
वर्षा ऋतु में नाग अपने बिलों से बाहर आते हैं। इस मौसम में वे मानव बस्तियों में आ सकते हैं।
इस पर्व के माध्यम से नागों को शांत कर, उन्हें दूध, फूल, कुश, चावल आदि अर्पित कर सांपों से सुरक्षा और आशीर्वाद की कामना की जाती है।
यह मानव और प्रकृति के सह-अस्तित्व का उदाहरण धार्मिक महत्व
भगवान शिव के गले में वासुकी नाग सुशोभित हैं।शेषनाग भगवान विष्णु के शयन का आधार हैं।गणेश जी के कमर पर भी नाग लिपटा हुआ है।अतः नाग पूजा से ये सभी देव प्रसन्न होते हैं।
नागपंचमी की शुरुआत
वैदिक संस्कृति में नागों की शक्ति, भूमिका और रहस्य से जुड़ी श्रद्धा से हुई।
पर्यावरण संतुलन, सांपों से रक्षा, और पुराण कथाओं की स्मृति को बनाए रखने हेतु यह पर्व प्रचलित हुआ
“प्रकृति में हर जीव — चाहे वह भयावह क्यों न लगे पूज्यनीय है, यदि हम उसके साथ संतुलन बनाए रखें।”



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