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उमरिया में भू-अधिग्रहण के बाद भी नक्शा तरमीम अटका नामचीन व्यापारी परिवार पर उठ रहे सवाल, प्रशासनिक चुप्पी बनी रहस्य!

उमरिया में भू-अधिग्रहण के बाद भी नक्शा तरमीम अटका नामचीन व्यापारी परिवार पर उठ रहे सवाल, प्रशासनिक चुप्पी बनी रहस्य!



उमरिया।
जिले में इन दिनों एक नामी व्यापारी परिवार खासकर उसकी पत्नी पूजा आहूजा को लेकर गंभीर चर्चाएं तेज हो गई हैं। सोशल मीडिया से लेकर अखबारों के पन्नों तक, आरोपों और शंकाओं का बाजार गर्म है। कहा जा रहा है कि एनएच-43 के अधिग्रहण के बाद सरकारी मुआवज़ा मिलने के बावजूद भी जिस तरह से रोड मैप की पटवारी शीट पर अब तक कोई नक्शा तरमीम नहीं हुआ, वह किसी साजिश से कम नहीं।

जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2017 में ही अधिग्रहित भूमि के मालिकों को मुआवजा मिल चुका था, इसके बावजूद अब तक राजस्व रिकॉर्ड में संशोधन नहीं किया गया है। खास बात यह है कि दिनांक 12 जून 2024 को कलेक्टर उमरिया को बाकायदा आवेदन भी प्रस्तुत किया गया था। इस विषय की जांच हेतु चार सदस्यीय समिति का गठन किया गया, लेकिन परिणाम आज तक सिर्फ कागज़ों में सीमित है।

सवाल बड़ा, चुप्पी गहरी
जानकारों का मानना है कि अगर नक्शा विधिवत तरमीम कर दिया गया तो पूजा आहूजा एवं उनके पूरे परिवार द्वारा कथित रूप से की गई भूमि हेराफेरी उजागर हो सकती है, और बचाव की कोई कानूनी गुंजाइश नहीं बचेगी। संभवतः यही वजह है कि प्रशासनिक अमला भी इस मुद्दे पर बेहद सतर्क, किंतु मौन है।

आरोपों का केंद्र बनी 300 मीटर लंबी भूमि
जिस भूखंड को लेकर विवाद खड़ा हुआ है, उसकी लंबाई महज 300 मीटर है, लेकिन इसी क्षेत्र में आहूजा परिवार के 8 सदस्यों के नाम पर बड़े पैमाने पर लेनदेन, स्वामित्व और प्रतिपुष्टि से जुड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि यह पूरा मामला मुआवजा राशि, अधिग्रहण सत्यापन और नक्शा तरमीम में देरी से जुड़ा है, जो जांच की स्थिति में गंभीर परिणाम ला सकता है।

प्रशासनिक भूमिका पर भी उठे सवाल
शहरवासियों का कहना है कि अगर यह मामला किसी सामान्य व्यक्ति का होता तो अब तक दर्जनों बार नक्शा संशोधन हो चुका होता, लेकिन नामचीन और प्रभावशाली परिवार से जुड़े होने के कारण प्रशासनिक तंत्र भी उलझा हुआ दिखाई देता है।

जनता का सवाल 8 साल बाद भी नक्शा क्यों नहीं बदला गया?

यदि मुआवजा मिल चुका, तो सरकारी रिकॉर्ड में संशोधन से परहेज़ क्यों?

समिति गठित होने के बावजूद कार्यवाही क्यों ठप है?

“भूमि की लकीरों से बड़ी लकीरें वो होती हैं, जो सत्ताओं और सत्ता के साए में खींची जाती हैं। उमरिया में ऐसी ही एक लकीर, 300 मीटर में पूरा प्रशासन उलझा चुकी है।”

(यह समाचार रिपोर्ट उपलब्ध तथ्यों, दस्तावेजों और जन-चर्चाओं पर आधारित है, किसी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना इसका उद्देश्य नहीं है।)

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(M.P.)

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