
शाम का समय था, गांव में बारिश के बाद की नमी हवा में घुली थी, लेकिन ग्राम जमुड़ी के खेरवार टोला में उस क्षण आंसुओं और रक्त की बूंदों में लथपथ एक हृदयविदारक कहानी लिखी जा रही थी। ममता की छांव आज हमेशा के लिए बुझ गई — एक मां की, जो अपने ही बेटे के हाथों मार दी गई।
एक फोन कॉल ने हिला दिया प्रशासन को
शुक्रवार शाम करीब 6:30 बजे डायल 100 में एक हताश आवाज गूंजी — “मेरी नानी की हत्या हो गई है… मेरे मामा ने कर दी है…” यह कॉल था नरेन्द्र कोल का, जिसने अनूपपुर पुलिस को उस खौफनाक दृश्य की पहली झलक दी।
सूचना मिलते ही पुलिस अधीक्षक मोती उर रहमान के निर्देशन में एसडीओपी सुमित केरकेट्टा, टीआई अरविंद जैन और टीम घटनास्थल पर रवाना हुई। जो दृश्य वहां देखा गया, वह किसी भी संवेदनशील हृदय को हिला देने वाला था।
मां का शव और पास ही बैठा हत्यारा बेटा
घर की परछी पर फर्श पर चित अवस्था में नानबाई कोल (मृतका) का शरीर रक्त में लथपथ पड़ा था। बगल में उसका बेटा श्यामलाल कोल, जिसने ये कृत्य किया था, निःशब्द बैठा था — न अपराधबोध, न पछतावा। एक शांत सनाटे में डूबी हुई चीख मानो दीवारों में कैद हो गई थी।
पुलिस ने तत्परता से गंभीर रूप से घायल गर्भवती पत्नी सरोज कोल को जिला अस्पताल पहुंचाया, जिसे बाद में बिरसा मुंडा मेडिकल कॉलेज, शहडोल रेफर किया गया।
क्रूरता की हद — टूटा विश्वास, टूटा शरीर
घटनास्थल से फर्श पर पत्नी के टूटे दांत, रक्तरंजित लकड़ी का पटिया, और अन्य साक्ष्य जब्त किए गए। यही पटिया एक पलंग के निर्माण में प्रयुक्त होने वाला टुकड़ा था, जिससे बार-बार वार कर मां को मौत के घाट उतार दिया गया।
एक बेटा, जो बना अपने ही घर का विनाशक
प्रारंभिक जांच में सामने आया कि श्यामलाल कोल महाराष्ट्र में मजदूरी करता था और पांच दिन पहले ही घर लौटा था। परिजनों के अनुसार, वह अकसर मां और पत्नी से झगड़ता था। 25 जुलाई की शाम, उसने गर्भवती पत्नी से झगड़ा किया, और जब मां ने बीच-बचाव किया, तो उसकी ममता का वही पुत्र काल बनकर टूट पड़ा।
पुलिस की तत्परता, रिमांड जारी
पुलिस ने मौके से ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। एफएसएल अधिकारी प्रदीप सिंह ने साक्ष्य संकलन के निर्देश दिए। आरोपी के खिलाफ धारा 103(1), भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत मामला पंजीबद्ध किया गया है। पुलिस रिमांड लेकर आगे की जांच की जा रही है।
एक टूटता घर, एक चीखती खामोशी
वो परछी… जहां कभी मां बेटे को लोरी गाकर सुलाया करती थी, आज वहीं बेटे के हाथों ममता लहूलुहान पड़ी थी। घर की दीवारों में अब सिर्फ चीखों की गूंज है, और उस नवजात जीवन के लिए दुआएं, जो मां की कोख में है और पिता की हैवानियत का गवाह भी।
गांव में मातम पसरा है। लोग स्तब्ध हैं। गांव के बुजुर्ग रामदीन कहते हैं, “ऐसी घटना पहले कभी नहीं देखी… बेटा, जो मां की आंखों का तारा था, वही मौत का कारण बन गया।”
सवालों के साए
क्या यह एक मानसिक विकृति थी या सामाजिक मूल्यों का पतन?
क्या नशे, बेरोजगारी और घरेलू तनाव इसके पीछे थे?
और क्या उस अजन्मे शिशु का जीवन अब डर और शर्म के बीच पलेगा?
यह एक न्यूज नहीं बल्कि एक शोककथा है — जिसमें सवाल हैं, आंसू हैं और एक ऐसा सच जो बार-बार समाज के सामने आता है पर अनदेखा रह जाता है।



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