
“होर्डिंग पर बड़ा फोटो लगाने वालों को पद नहीं मिलेगा” यह वाक्य मात्र एक नीतिगत बयान नहीं, बल्कि नेतृत्व की दृष्टि और संगठनात्मक शुचिता की कसौटी है। यह बयान मध्यप्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता हेमंत खंडेलवाल ने स्पष्ट शब्दों में दिया। परंतु अनूपपुर जिले की सियासी धरातल पर इस वक्त जो तस्वीर उभर रही है, वह इस कथन से न केवल भिन्न है, बल्कि उसे मुंह चिढ़ाती दिख रही है।
होर्डिंग-राजनीति सेवा से बड़ा चेहरा!
अनूपपुर में भाजपा नेताओं के बीच होर्डिंग, बैनर, पोस्टर और कटआउट की प्रतिस्पर्धा राजनीतिक क्षमता से अधिक “चेहरे की चमक” पर केंद्रित हो चुकी है। हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में 10×12 फीट के विशाल होर्डिंग्स में नेता की मुस्कराती तस्वीरें, उनके शुभकामनाएं, बधाइयाँ—कभी जन्मदिन पर, कभी किसी और के यशोगान में।
जब हेमंत खंडेलवाल जी “फोटो प्रेमियों” को संगठन से दूर रहने की बात करते हैं, तब अनूपपुर के कई भाजपा नेता उनके इस कथन का उदाहरण बनते दिखते हैं।
जिले में कई ऐसे नेता सक्रिय हैं जो गाड़ियों में बड़ी बड़ी प्लेट लगाकर घूमते हैं।
बिना कोई सांगठनिक जिम्मेदारी निभाए होर्डिंगों से ही खुद को “नेतृत्व-प्रोजेक्ट” कर रहे हैं।
जनसंघ से भाजपा तक के कार्यकर्ताओं की मेहनत के बजाय, भाजपा में अब ‘डिजाइनर छवि’ और ‘फोटोशॉप नेतृत्व’ को पद का आधार मान लिया गया है।
कई युवा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि संगठन के पास संघर्षशीलता की कोई पहचान नहीं बची है, बल्कि बड़े नेताओं के पीछे खड़े होने, तस्वीर खिंचवाने और उसे वायरल करने की होड़ ही योग्यता बन चुकी है।
हेमंत खंडेलवाल जी का कथन क्यों महत्वपूर्ण है?
खंडेलवाल जैसे नेताओं ने वर्षों पार्टी के लिए ज़मीनी संघर्ष किया है—वे संगठन में अनुशासन, विचारधारा और सेवा की परंपरा के पक्षधर हैं। उनका कथन यह संकेत करता है कि—
भाजपा केवल दिखावटी राजनीति के सहारे नहीं चल सकती।
परंतु सवाल यह है कि—क्या जिला संगठन के अंदर उनकी यह बात कोई सुन भी रहा है?
अनूपपुर भाजपा लकीर पीटने या दिशा देने?
जिला स्तर पर देखें तो जमीनी कार्यकर्ता हाशिए पर हैं, और फोटो फ्रेंडली ‘समाजसेवी नेता’ मलाई काट रहे हैं।
समारोहों में फोटो खिंचवाने की होड़ इतनी ज्यादा है कि कुछ नेताओं ने बाकायदा “फोटोग्राफर टीम” नियुक्त कर रखी है, ताकि हर क्षण को “लीडर मोमेंट” बनाया जा सके।
भाजपा के मूल विचार ‘पद नहीं सेवा’ अब केवल घोष वाक्य बन चुके हैं। सवाल जो उठने चाहिए… लेकिन उठते नहीं
क्या जिलों में भाजपा पद देने का आधार योग्यता और संगठन-समर्पण है या फिर फेस वैल्यू और चाटुकारिता?
क्या जिला संगठन में यह साहस है कि होर्डिंगबाज़ नेताओं को टिकट या पद न दे?
क्या युवा कार्यकर्ता अब सिद्धांतों के बजाय सैटिंग की राजनीति के लिए मजबूर हैं?
अनूपपुर भाजपा में हेमंत खंडेलवाल जी जैसे नेताओं के कथन को आत्मसात करने की जरूरत है।
यदि केवल चेहरों की चमक, होर्डिंग की ऊँचाई और डिजिटल आभामंडल ही चयन की कसौटी बन गए, तो न बचेगा जमीनी कार्यकर्ता।
आज पदलोलुपता का उपचार तस्वीर’ से नहीं, ‘सेवा की छाया’ से ही संभव है।



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