
कक्का की चौपाल –अनूपपुर रक्सा कोलमी “बरगद की छांव में बिछ रही तरक्की की नींव”
(बरगद के नीचे बने विशाल चबूतरे में कक्का बैठे हैं, पास में चाय का कुल्हड़ और दो युवा – लवकेश और दुर्गेश – खड़े हैं) कुछ युवा चबूतरे में बैठे कक्का से बात चीत कर रहे हैं।
कक्का (मुस्कराते हुए)
“अरे बिटवा, जो पहले बैलगाड़ी से फूंन गा जाते थे, आज वही अब जेसीबी से बाउंड्री वॉल खुदवा रहे हैं!
ये जो साइट पर काम चल रहा है – ये किसी ‘सरकारी योजना’ से नहीं, हमारे गांव के लोगों की हिम्मत से हुआ है।”
जहां किसानों की ज़मीन पर भविष्य की नींव रखी गई



ग्राम रक्सा-कोलमी में न्यू जोन पावर प्रोजेक्ट का कार्य शुरू हो चुका है।
लेकिन सच्चे ठेकेदार हैं – वो किसान और ग्रामीण जिनकी जमीन पर ये नींव रखी गई।
अंकुश राठौर, संजय राठौर, चक्रधर यादव, लवकेश राठौर, दुर्गेश राठौर –
इन सबने खुद आगे आकर निर्माण कार्यों की जिम्मेदारी ली।
कोई मटेरियल सप्लायर बना, कोई लेबर हेड, तो कोई साइट सुपरवाइजर।
ये वही लोग हैं जिनके नाम कभी सिर्फ राजस्व रिकॉर्ड में मिलते थे,
अब वे टेंडर और GST नंबर के साथ अपने काम की पहचान बना रहे हैं।
बरगद की छांव में अब किसान गांव के विकास की दिशा तय करते हैं
गांव के बीचोबीच पुराना बरगद अब पंचायत कार्यालय नहीं,
प्रभावित किसानों और ग्रामीणों की खुली चौपाल बन गया है।
यहां बैठते हैं समर्थ गोंड – जिन्होंने सबसे पहले अपनी भूमि देकर सहमति दी
रामविनय मिश्रा, अशोक मिश्रा – जो रोज साइट पर जाकर निर्माण का देखभाल करते हैं
नरेंद्र राठौर, आदित्य राठौर – जो दस्तावेज, मुआवजा और रोजगार की रिपोर्टिंग संभालते हैं
“हम अब सिर्फ खेती नहीं करते, अब गांव की दिशा तय करते हैं,”
ये कहना है दुर्गेश राठौर का, जो कभी भोपाल में नौकरी ढूंढते थे, अब गांव में खुद रोज़गार बना रहे हैं।
नई पहचान – पढ़े लिखे ग्रामीण










पहले जो युवा शहरों में नौकरी की तलाश में भटकते थे,
अब वही गांव में कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट साइन कर रहे हैं।
महिला समूह खुद भोजन, पानी और लॉजिस्टिक सपोर्ट का संचालन कर रही हैं।
गांव की महिलाएं कहती हैं –
“पहले हम सिर्फ चुनाव में वोट डालते थे, अब गांव की प्रगति में भूमिका निभा रहे हैं।”
किसानों का नहीं कोई रोष – सिर्फ जोश
न कोई प्रदर्शन न कोई विवाद 💬 सिर्फ एकता, सहयोग और भागीदारी
भंडारे, भजन, और बाउंड्री – सब कुछ ग्रामीणों ने अपने हाथों से किया।
कक्का बोले
“जब खेत वाले खुद कागज समझने लगें, और गांव की बेटी इनवॉइस बनाने लगे –
तो समझो विकास ‘सरकारी स्कीम’ नहीं, ग्रामीणों की ‘टीम’ से होता है!”
“कक्का की चौपाल” – अब सिर्फ कहानी नहीं, ग्रामीण आत्मनिर्भरता की ज़ुबानी है।



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