
मध्यप्रदेश की ग्राम पंचायतें जहां ग्रामीण विकास की प्रयोगशाला बननी थीं, वहां अब कुछ लोगों ने आरटीआई (सूचना का अधिकार) को “ब्लैकमेलिंग का अधिकार” बना डाला है। कागजों की तहों में पारदर्शिता की नहीं, बल्कि फिरौती की बू आ रही है। और सबसे चिंताजनक पहलू ये है कि अब पंचायत के सरपंच व सचिव फाइलों से ज्यादा डर आरटीआई कार्यकर्ताओं के वॉट्सऐप मैसेज से खाने लगे हैं।
शिवपुरी जिले से उठा एक ऐसा ही मामला अब जिला प्रशासन के दरवाजे तक पहुंच चुका है, जहां सरपंच संघ ने एक ‘तथाकथित आरटीआई कार्यकर्ता’ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

भोपाल/शिवपुरी।
जहां एक ओर आरटीआई (Right to Information) को लोकतंत्र का मजबूत औज़ार माना जाता है, वहीं मध्यप्रदेश की कई पंचायतों में अब यही औज़ार कुछ ‘संगठित फर्जी कार्यकर्ताओं’ के हाथों ब्लैकमेलिंग का हथियार बन गया है। शिवपुरी जिले की करैरा विधानसभा के अंतर्गत नरवर जनपद की ग्राम पंचायत सिमिरिया में इसी ‘सूचना के सौदागरी’ का एक ताज़ा मामला सामने आया है।



आरटीआई के नाम पर जब सरपंचों की नींद उड़ी, तो पंचायत परिषद सरपंच संघ ने राज्य प्रशासन के सामने अपनी फरियाद रख दी। जिले के सरपंच संघ ने संयुक्त कलेक्टर जेपी गुप्ता को ज्ञापन सौंपा और मांग की कि “आरटीआई के नाम पर अवैध वसूली और मानसिक प्रताड़ना” पर तत्काल अंकुश लगाया जाए।
संघ के जिला अध्यक्ष ने स्पष्ट आरोप लगाते हुए कहा कि नरवर क्षेत्र का एक स्वयंभू ‘आरटीआई योद्धा’ कमर खान अब पंचायतों में ‘सूचना नहीं, सुबूत के नाम पर रकम’ मांगता है। हाल ही में कमर खान ने सिमिरिया पंचायत से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी, जो नियमानुसार उसे उपलब्ध करा दी गई। लेकिन जानकारी लेने के बाद खान साहब ने अगला फॉर्मेट फायर किया – “अब 50 हज़ार दो, वरना अगला एपिसोड और तीखा होगा।”
इतना ही नहीं, जब महिला सरपंच व सचिव ने इस वसूली पर सवाल किया तो कथित आरटीआई एक्टिविस्ट ने न सिर्फ अभद्र व्यवहार किया बल्कि भाषा की मर्यादा भी लांघ दी। सरपंच संघ ने इसे न केवल महिला सम्मान का उल्लंघन बताया, बल्कि इसे पूरे पंचायत तंत्र पर हमला करार दिया।
संघ ने आरोप लगाया है कि कमर खान पिछले कई वर्षों से दर्जनों पंचायतों में ऐसी ही “सूचना आधारित रंगदारी” कर रहा है। उसके द्वारा अब तक सौ से ज़्यादा आरटीआई दायर की गई हैं, जिनमें अधिकांश “झूठी, भ्रामक और बोगस” मानी गईं। जानकारी के अनुसार यह पूरा रिकॉर्ड सूचना आयोग में दर्ज है
प्रशासनिक प्रतिक्रिया
संयुक्त कलेक्टर जेपी गुप्ता ने ज्ञापन प्राप्त करते हुए कहा कि मामला गंभीर है। जांच कराकर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी ताकि सूचना का अधिकार “सत्य और पारदर्शिता” के लिए रहे, न कि “सत्ता और डर” फैलाने के लिए।





जब आरटीआई ‘Right To Information’ से खिसक कर बन जाए ‘Right To Intimidate’ यानी डराने-धमकाने का लाइसेंस, तब लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान पर काम कर रही पंचायतें सबसे पहले डगमगाती हैं।
ऐसे में जरूरी है कि शासन और प्रशासन “सूचना के नाम पर वसूली” और “पारदर्शिता के नाम पर अराजकता” के बीच की लकीर को साफ-साफ खींचे। वरना आने वाले समय में हर पंचायत दफ्तर में आरटीआई एक्ट नहीं, “रंगदारी टूल इंस्टीट्यूट” की शाखा खुली नजर आएगी।



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