
सोशल मीडिया की बढ़ती दीवानगी और पारिवारिक संतुलन के बीच एक दिलचस्प मगर चिंतन योग्य मामला उत्तर प्रदेश के हापुड़ से सामने आया है, जहां एक महिला ने अपने इंस्टाग्राम फॉलोअर्स घटने के आरोप में अपने पति के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराई। पति का पक्ष कुछ और था—उसका कहना था कि पत्नी दिनभर रील बनाती है और घर के जरूरी कामकाज छोड़ देती है। यह मामला न सिर्फ वायरल हुआ, बल्कि भारतीय परिवार और सोशल मीडिया संस्कृति पर गहरे प्रश्नचिन्ह भी छोड़ गया।
शिकायतकर्ता – पत्नी
सोशल मीडिया पर फैशन और लाइफस्टाइल से जुड़ी रील्स बनाती है।
इंस्टाग्राम पर लगभग 50,000 फॉलोअर्स थे, लेकिन हाल ही में अचानक 3,000 से अधिक फॉलोअर्स घट गए।
पत्नी का आरोप “पति बर्तन धोने और झाड़ू-पोंछा करने के लिए मजबूर करता है, जिससे समय नहीं मिलता और फॉलोअर्स घटते जा रहे हैं।”
पति का पक्ष सरकारी नौकरी करता है।
पत्नी की रिल-निर्भरता से परेशान होकर थाने में पहुंचा।
“वह सुबह से रात तक फोन में रहती है, ना खाना बनता है, ना बच्चों की पढ़ाई होती है, अब ये फॉलोअर्स के नाम पर केस कर रही है।”
पुलिस की मध्यस्थता
थाने में कई घंटे तक दोनों पक्षों को समझाया गया।
महिला को घर-परिवार और करियर के बीच संतुलन रखने की सलाह दी गई।
मामला बाद में आपसी सहमति से सुलझ गया।
सोशल मीडिया और भारतीय पारिवारिक ढांचे पर प्रभाव
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा बनाम पारिवारिक जिम्मेदारियां
आज की युवा पीढ़ी में सोशल मीडिया एक करियर विकल्प बन चुका है। लेकिन यह तब चुनौती बन जाता है जब पारिवारिक भूमिकाओं से टकराव होता है।
आभासी दुनिया की ‘वैलिडेशन इकोनॉमी’
फॉलोअर्स, लाइक्स और व्यूज़ को कई लोग अपनी आत्म-मूल्य की कसौटी मानने लगे हैं। यह मानसिक तनाव और वैवाहिक विवादों की वजह बनता जा रहा है।
पुलिस थाने तक पहुंचे डिजिटल झगड़े
यह घटना बताती है कि अब रिश्तों के मुद्दे सिर्फ चारदीवारी में नहीं सुलझते—वे डिजिटल डिस्प्यूट्स बनकर कानूनी हस्तक्षेप तक पहुंच रहे हैं।
आंकड़ों के अनुसार (सांकेतिक)
भारत में सोशल मीडिया यूज़र्स की संख्या लगभग 82 करोड़ (2025)
NCRB रिपोर्ट 2024 पारिवारिक विवादों में सोशल मीडिया के कारण बढ़ोतरी का उल्लेख
पारिवारिक मनोचिकित्सक
“सोशल मीडिया को पूर्णकालिक करियर बनाना संभव है, लेकिन बिना सीमाएं तय किए यह वैवाहिक असंतुलन और मानसिक थकान का कारण बन सकता है।”
हापुड़ की यह घटना चाहे कितनी भी हल्की या हास्यास्पद लगे, लेकिन यह भारत के बदलते सामाजिक ताने-बाने की एक गहरी और चिंतनीय झलक है। जहां रील्स और रियलिटी के बीच संघर्ष है, वहां संतुलन ही समाधान है।



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