
(एक जुबान से निकला बयान, और पूरे देश में सियासी तूफान)
डिंडोरी की धरती पर जब नेताजी बोले, तो शब्द नहीं, बम फूटे।
सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते जी, जो कभी अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे, इस बार अपनी ‘अपनायत’ के लिए चर्चा में हैं। दरअसल, नेताजी ने यह साबित कर दिया कि जब जुबान फिसले तो संसद का संतुलन भी फिसल सकता है।
नेताजी अमरपुर में पहुंचे थे शादी-ब्याह का आशीर्वाद देने, लेकिन लौटे तो आतंकवादियों को ‘हमारा’ कहकर नई वैचारिक शादी कर आए—भारतीय लोकतंत्र और पाकिस्तानी आतंकवाद के बीच!
बयान कुछ यूं था
“पाकिस्तान के हमारे आतंकवादी लोगों को सेना ने मुंह तोड़ जवाब दिया है।”
अब पत्रकार पूछ रहे हैं – कुलस्ते जी, कौन से वाले ‘हमारे’ थे ये?
भाषाई ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ या मन की ‘भूल’?
कुछ लोग कह रहे हैं कि ये ‘जुबान का फिसलना’ था। अरे भैया! ये नेताओं की जुबान बिना लगाम की है जो हर मंच पर फिसल जाती है?
ऐसा लग रहा है मानो नेताओं के मुंह में जुबान नहीं, वर्डप्रेस का ऑटोकरेक्ट हो गया हो—कभी “आतंकी अपने” हो जाते हैं, तो कभी कुछ का कुछ बकने लगते हैं फिर कहेंगे हमारा आशय थोड़ी था यह मीडिया ने तोड़मरोड़ का परोस रही है।
राजनीति में नया ‘अपनापन’
नेता जी के बयान ने एक नई राष्ट्रीय बहस को जन्म दे दिया है
कांग्रेस की प्रतिक्रिया – “सुनिए तो सही, ये कह क्या रहे हैं!”
कांग्रेस ने वीडियो को ज़ूम करके, रिपीट मोड में देखा और कहा, “हमें तो लग रहा है, इनकी जुबान ही नहीं, पूरी सोच फिसल गई है।”
नेताजी की सफाई – ‘मैं तो भावनाओं में बह गया था!’
जी हां, नेताजी ने सफाई देते हुए कहा, “मेरी मंशा गलत नहीं थी, बस शब्द गलत निकल गए।”
अब कोई ये बताए, कि मंशा जब देशभक्ति की हो, और शब्द आतंकवादी के पक्ष में निकल जाएं – तो उसे ‘भाषाई तुक्कड़’ कहा जाए या ‘देशभक्ति का लीक टेस्ट’?
राजनीति में जुबान की फिसलन अब सामान्य बात हो गई है, पर जब यह देश की सुरक्षा और संवेदनशील मुद्दों पर हो, तो ये सिर्फ शब्द नहीं होते –



Leave a Reply