
गाँव की सुबह, कीचड़ भरे रास्ते, एक नंगे पाँव लड़का साइकिल थामे आगे बढ़ता है।
धूल उड़ती है, पक्षियों की चहचहाहट के बीच एक आवाज़ आती है –
“ये है रामकेवल। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के निजामाबाद गाँव का वह छात्र जिसने अपनी मेहनत और जिद के दम पर इतिहास रच दिया।”
टूटी हुई झोपड़ी, मिट्टी का चूल्हा, माँ रोटी सेंकती है, पिता फावड़ा उठाकर निकलते हैं।
“रामकेवल का घर किसी किताब के पन्नों में दर्ज गरीबी की कहानी है। माँ गांव के स्कूल में रसोइया, पिता दिहाड़ी मजदूर और खुद रामकेवल—शादी-ब्याह में रोड लाइट उठाने का काम करता है।”
सोलर लालटेन की हल्की पीली रोशनी में बैठा रामकेवल – किताबें पलटते हुए।
“जिस घर में बिजली नहीं, वहां भी उम्मीद की रौशनी जलती है। रात के अंधेरे में जब गांव सो जाता, तब रामकेवल पढ़ाई करता – सोलर लाइट की मद्धम रौशनी में अपने भविष्य को आकार देता।”
विद्यालय – फटे बस्ते में किताबें, पैरों में चप्पल नहीं।
“जब शहरों के बच्चे स्कूल तक कार में जाते हैं, रामकेवल नंगे पाँव स्कूल जाता था। पहली बार जूता तब पहना जब उसे कलेक्टर ऑफिस बुलाया गया।”
सम्मान समारोह – बाराबंकी के कलेक्टर शिशिर त्रिपाठी मंच पर रामकेवल को फूल माला पहनाते हैं।
तालियों की गूंज, मीडिया कैमरों की चमक।
“53% नंबरों का छात्र, लेकिन आज मंच का हीरो। ये केवल परीक्षा परिणाम नहीं, जीवन संघर्ष की विजयगाथा है।”
समाचार चैनल, सोशल मीडिया – “Ramkeval, the pride of Barabanki” ट्रेंड करता है।
“क्योंकि आज की असली मेरिट ये नहीं कि आपने 95% लाया या 60%, असली मेरिट यह है कि आपने कितनी कठिनाइयों के बीच खुद को कायम रखा।”
जब अभिभावक 90% अंक लाने वाले बच्चों को भी दूसरों से तुलना करके निराश होते हैं, तब रामकेवल की कहानी बताती है कि प्रतिभा प्रतिशत से बड़ी होती है। मूल्यांकन केवल अंकों से नहीं, परिस्थितियों की समीक्षा से होना चाहिए।
किसी के पास पढ़ने को ट्यूशन, महंगी किताबें, ऑनलाइन क्लासेस, संपूर्ण संसाधन होते हैं, वहीं किसी को अपने हाथ से खाना बनाना, रोड लाइट उठाना, और बिना बिजली के पढ़ाई करनी पड़ती है।
रामकेवल केवल 53% अंकों से पास हुआ है, लेकिन उसके संघर्ष, संकल्प और साहस ने उसे समाज का नायक बना दिया। वह प्रमाण है इस बात का कि
“असली सफलता परिस्थितियों को हराकर आगे बढ़ने में है, न कि केवल अंकों की गिनती में।
प्रेरणा दें, तुलना नहीं।
प्रतिशत का उत्सव मनाइए, लेकिन संघर्ष की जीत का सम्मान ज़रूर कीजिए।
साभार




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