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हाजिरी ऐप से, सेवा नर्सिंग होम में!
सेवा छोड़ धंधा सरकारी डॉक्टरों का दोहरा खेल!

हाजिरी ऐप से, सेवा नर्सिंग होम में! सेवा छोड़ धंधा सरकारी डॉक्टरों का दोहरा खेल!

सरकारी डॉक्टरों की गैरजिम्मेदारी पर बड़ा सवाल क्यों नहीं सार्वजनिक होती अस्पतालों में डॉक्टरों की सूची? चोरी-छिपे प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टर, फिर क्यों मिलती है सरकारी छूट?

सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं देश की रीढ़ हैं, लेकिन जब सेवा भाव को व्यवसाय में बदल दिया जाए, तो यह केवल चिकित्सा व्यवस्था ही नहीं बल्कि समाज के भरोसे को भी चोट पहुंचाता है। रायपुर कर्चुलियान, रीवा का ताजा मामला इसी कड़वे सच को उजागर करता है। यहां 11 डॉक्टर सार्थक ऐप के जरिए उपस्थिति दर्ज कर घर बैठे तनख्वाह ले रहे हैं और कई तो निजी अस्पतालों में प्रैक्टिस कर रहे हैं। इससे एक बड़ा सवाल उठता है—आखिर क्यों अस्पतालों में डॉक्टरों की सूची सार्वजनिक नहीं की जाती ताकि जनता को पता चले कि कौन डॉक्टर किस अस्पताल में पदस्थ है?
अस्पतालों में डॉक्टरों की सूची क्यों छुपाई जाती है?

सरकारी स्कूलों, पंचायतों और अन्य विभागों में कर्मचारियों की सूची आम जनता के लिए उपलब्ध होती है, फिर अस्पतालों में ऐसा क्यों नहीं? अगर हर अस्पताल के बाहर और वेबसाइट पर डॉक्टरों के नाम, उनकी विशेषज्ञता और ड्यूटी के समय साफ-साफ लिखे जाएं, तो

जनता को सही जानकारी मिलेगी।

डॉक्टरों की गैरहाजिरी तुरंत पकड़ में आ जाएगी।

स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता आएगी।

लेकिन आज भी ज्यादातर अस्पतालों में ऐसी कोई सूची नहीं लगाई जाती, जो साजिश या सिस्टम की लापरवाही को दर्शाता है।

चोरी-छिपे प्राइवेट प्रैक्टिस सेवा भावना या सिर्फ कमाई?

कई सरकारी डॉक्टर गुपचुप तरीके से निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में काम करते हैं। यह दोहरा खेल है—एक तरफ सरकारी वेतन, दूसरी तरफ निजी कमाई। यह स्थिति मरीजों के हितों के खिलाफ है।

रायपुर कर्चुलियान केस

सीएचसी रायपुर कर्चुलियान व गुढ के 11 डॉक्टर जैसे डॉ. शिवानी वर्मा, डॉ. प्रीति शर्मा, डॉ. नेहा मिश्रा आदि सार्थक ऐप के जरिए उपस्थिति दिखा रहे हैं लेकिन हकीकत में ड्यूटी पर नहीं आते। इनमें से कुछ डॉक्टर निजी अस्पतालों में सक्रिय पाए जा रहे हैं।
प्रशासनिक उदासीनता शिकायत के बावजूद चुप्पी क्यों?

डॉ. कल्याण सिंह (बीएमओ, रायपुर कर्चुलियान) ने सीएमएचओ रीवा को पत्र लिखकर इस गड़बड़ी की जानकारी दी थी। इसके बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह सवाल उठाता है कि प्रशासनिक मशीनरी किस दबाव में चुप है? क्या यह मिलीभगत का हिस्सा है या फिर सच्ची लापरवाही? एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

“सरकारी सेवा केवल नौकरी नहीं बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी है। जिन डॉक्टरों ने सेवा भावना को व्यापार में बदल दिया है, वे केवल मरीजों का नुकसान नहीं कर रहे बल्कि मेडिकल प्रोफेशन की साख भी गिरा रहे हैं। हर अस्पताल में डॉक्टरों की सूची सार्वजनिक होनी चाहिए ताकि जनता जागरूक रह सके।”

हर अस्पताल के बाहर डॉक्टरों की सूची लगाई जाए।

अस्पतालों में सीसीटीवी से निगरानी बढ़ाई जाए।

प्राइवेट प्रैक्टिस के खिलाफ सख्त दंडात्मक कार्रवाई की जाए।

जनता के लिए शिकायत हेल्पलाइन बनाई जाए। कौन डॉक्टर ऑन ड्यूटी पर है उनका नाम अस्पताल में डिस्प्ले किया जाए

हर 3 महीने में अस्पतालों का ऑडिट किया जाए।

जनता को भी जागरूक होना पड़ेगा। अगर कोई डॉक्टर ड्यूटी पर नहीं दिखता तो तुरंत शिकायत करें। आखिर जनता के टैक्स के पैसे से ही इन डॉक्टरों की तनख्वाह दी जाती है। जनता का हक है कि वे सवाल पूछें कि आखिर उनकी सेवा में कौन-कौन डॉक्टर तैनात हैं और उनकी उपस्थिति कितनी है?

रायपुर कर्चुलियान का मामला महज एक उदाहरण है। यह एक ऐसा आईना है जो देशभर के सरकारी अस्पतालों की हकीकत दिखा रहा है। अब वक्त आ गया है कि सरकार  इनकी जवाबदेही तय करे। डॉक्टरों को यह याद दिलाना जरूरी है कि वे सेवक हैं, व्यापारी नहीं। अगर आज यह व्यवस्था नहीं सुधरी, तो आने वाले कल में जनता का भरोसा इस सिस्टम से पूरी तरह उठ जाएगा।

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