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अनूपपुर रेत कांड  साजिश ध्वस्त, अजय मिश्रा बाइज्जत बरी

अनूपपुर रेत कांड  साजिश ध्वस्त, अजय मिश्रा बाइज्जत बरी

अनूपपुर अवैध रेत मामला  न्याय की गूंज—अजय मिश्रा निर्दोष, साक्ष्यविहीन आरोपों की धज्जियां उड़ीं; भ्रष्टाचार के सिंडिकेट की साजिशें नाकाम
अनूपपुर के ग्राम पसला में अवैध रेत भंडारण का मामला, जो एक समय सुर्खियों में छाया हुआ था, न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद भ्रष्ट तंत्र की धूर्त चालों का पर्दाफाश बन गया। अजय मिश्रा और नितिन केशरवानी, जिन्हें राजनीतिक प्रतिशोध और प्रशासनिक मिलीभगत के चलते आरोपों के जाल में फंसाने की नाकाम कोशिश की गई थी, अदालत ने सभी आरोपों से बाइज्जत बरी कर दिया। इस निर्णय ने न केवल न्याय की जीत का परचम लहराया, बल्कि उन साजिशकर्ताओं के चेहरों से भी नकाब हटा दिया, जो सत्ता और लालच की गठजोड़ में कानून की खिल्ली उड़ा रहे थे।

मामले की परतें
फरियादी पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह की सीएम हेल्पलाइन में दर्ज शिकायत में ग्राम पसला स्थित सोन नदी किनारे अवैध रेत भंडारण और उत्खनन का आरोप लगाया गया था। नामजद आरोपियों में राजकुमार राठौर और उसके सहयोगियों के नाम थे। चौंकाने वाली बात यह रही कि प्रारंभिक शिकायत में अजय मिश्रा और नितिन केशरवानी का कोई उल्लेख नहीं था, फिर भी साजिश की बुनियाद इतनी गहरी थी कि इन दोनों को भी आरोपी बनाया गया। प्रशासनिक जांच में 300 घनमीटर रेत जब्त की गई थी, लेकिन यह साबित करने में पूरी जांच एजेंसियां नाकाम रहीं कि यह भंडारण आखिर किसकी शह पर किया गया।

साक्ष्यों की धज्जियां
सुनवाई के दौरान साक्ष्य और गवाहियों ने भ्रष्टाचार के उस मकड़जाल को बेपर्दा कर दिया, जो एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था। शंकरलाल राठौर ने खुद माना कि उन्होंने बिना स्थल पर गए पंचनामे पर दस्तखत किए। वहीं, जुग्गीबाई कोल ने दो टूक कहा कि उन्हें पता ही नहीं कि उनके खेत में रेत किसने रखी। सबसे बड़ी विसंगति यह रही कि अजय मिश्रा को आधिकारिक सूचना तक नहीं दी गई थी, जो कि कानूनी प्रक्रिया की मूलभूत अनिवार्यता है। खनिज निरीक्षक राहुल सांडिल्य की जांच रिपोर्ट भी एक तरह से प्रशासनिक लीपापोती का उदाहरण बन गई।

राजनीतिक रंजिश और षड्यंत्र
फरियादी पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह ने न्यायालय में साफ कहा कि उनकी शिकायत में अजय मिश्रा और नितिन का नाम नहीं था। उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम को राजनीतिक प्रतिशोध का परिणाम बताया। दरअसल, अजय मिश्रा ने अनूपपुर में अवैध खनन के खिलाफ कई बार आवाज उठाई थी, जिससे रेत माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों की गठजोड़ में दरार आ गई थी। नतीजा यह हुआ कि उन्हीं को साजिश के तहत फंसाने की चाल चली गई।

भ्रष्टाचार का संगठित गिरोह
यह मामला भ्रष्टाचार के उस सिंडिकेट की गवाही देता है, जो सत्ता, लालच और डर के दम पर निर्दोष लोगों को बलि का बकरा बनाता है। पंचनामे से लेकर गवाहों के बयान तक, हर मोर्चे पर प्रशासनिक कुप्रबंधन और बेइमानी की बू साफ महसूस हुई। यह केवल एक व्यक्ति विशेष की लड़ाई नहीं थी, बल्कि पूरे सिस्टम के खिलाफ न्याय और सच की जंग थी।

न्यायालय की दो-टूक टिप्पणी
शहडोल कमिश्नर के न्यायालय ने जब इस मामले की पुनः जांच करवाई, तो पूरी सच्चाई सतह पर आ गई। कोर्ट ने दो-टूक कहा कि रेत का भंडारण अवश्य पाया गया, परंतु आरोपियों की संलिप्तता प्रमाणित नहीं हो सकी। न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि न्याय केवल आरोपों से नहीं चलता, साक्ष्य उसकी रीढ़ होते हैं। यह फैसला उन ताकतों के लिए करारा तमाचा है, जो न्यायपालिका को अपने स्वार्थ के लिए मोहरा बनाना चाहते हैं।


फैसले के दिन कोर्ट परिसर में जैसे पूरे जिले की धड़कनें थम गई थीं। आम जनता, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कोर्ट से बाहर निकलते ही अजय मिश्रा के समर्थकों ने जीत की खुशी में नारे लगाए, वहीं प्रशासनिक गलियारों में सन्नाटा पसरा रहा। यह दृश्य न्यायपालिका की शक्ति और भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की उम्मीदों का प्रतीक बन गया।

लोकतंत्र में कानून की आंखों में धूल झोंकने की कोशिशें कितनी भी प्रबल क्यों न हों, अंत में जीत सच्चाई की ही होती है। यह भी साफ हो गया कि भ्रष्टाचार और साजिशें तात्कालिक सफलता तो दिला सकती हैं, लेकिन वे न्याय के धैर्य और सख्ती के आगे टिक नहीं पातीं।

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Kailash Pandey
Anuppur
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