
फिल्म ‘फुले’ और ‘बैड गर्ल’ के बहाने अनुराग कश्यप पर ब्राह्मण समाज के अपमान का आरोप, कानूनी कार्रवाई की उठी मांग।
भोपाल/मुंबई | विशेष रिपोर्ट
भारतीय फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप एक बार फिर अपने विवादित बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। इस बार मामला सीधे तौर पर ब्राह्मण समाज से जुड़ा है। आगामी फिल्म ‘फुले’ के प्रमोशनल कार्यक्रम के दौरान अनुराग कश्यप ने कथित रूप से कहा,
मैं ब्राह्मणों पर मूतूँगा, कोई दिक्कत?
देशी भाषा में बोले गए इस कथन को लेकर सोशल मीडिया पर भारी विरोध देखने को मिल रहा है। कई ब्राह्मण संगठनों ने इसे न केवल मानहानि और घृणा फैलाने वाला बताया है, बल्कि इस पर कानूनी कार्रवाई की मांग भी की है।
फिल्म ‘फुले’ की पृष्ठभूमि
फिल्म ‘फुले’ भारतीय समाज सुधारकों, ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित बताई जा रही है। फिल्म का उद्देश्य सामाजिक बदलाव और दलित अधिकारों पर प्रकाश डालना है, लेकिन इसके प्रचार में जिस तरह से ब्राह्मण विरोधी भाषा का प्रयोग किया गया, उससे फिल्म की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं।
फिल्म ‘बैड गर्ल’ और ब्राह्मण नारी का चरित्रचित्रण
अनुराग कश्यप की एक और फिल्म ‘बैड गर्ल’ जिसमें एक ब्राह्मण लड़की को ‘संस्कारहीन, विद्रोही और यौन रूप से स्वच्छंद’ दिखाया गया है, ब्राह्मण महिलाओं के चरित्र पर सीधा हमला माना जा रहा है।
सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक संयोग है या ब्राह्मणों को टारगेट करने की सुनियोजित रणनीति?
ब्राह्मण समाज सॉफ्ट टारगेट क्यों?
जानकारों का मानना है कि ब्राह्मण समाज अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सबसे ज़्यादा निशाने पर रहने वाला समुदाय है।
राजनीतिक संरक्षण की कमी,
संगठित विरोध का अभाव,
और ‘धैर्यशीलता’ को ‘कमजोरी’ समझने की प्रवृत्ति
इन कारणों से ब्राह्मणों पर खुलेआम टिप्पणी करना फिल्मकारों के लिए लो-रिस्क, हाई-अटेंशन रणनीति बन चुका है।
ब्राह्मण संगठनों की प्रतिक्रिया
पंडित महासभा, अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज, युवा ब्राह्मण परिषद समेत कई संगठनों ने अनुराग कश्यप के बयान को “ब्राह्मणों की सामाजिक गरिमा पर हमला” करार देते हुए मांग की है कि
फिल्म निर्माता के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो,
सेंसर बोर्ड फिल्म की समीक्षा करे,
और प्रधानमंत्री से अनुरोध किया जाए कि ऐसे फिल्मकारों को सरकारी मंच से बहिष्कृत किया जाए।
कानूनी जानकार क्या कहते हैं?
अनुराग कश्यप के बयान को IPC की धारा 295A (धार्मिक भावनाएं आहत करना), 153A (समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना) के अंतर्गत दंडनीय माना जा सकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश अवस्थी का कहना है
“यदि किसी दूसरे समुदाय पर इस तरह की टिप्पणी की जाती, तो तत्काल गिरफ्तारी होती। अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब यह नहीं कि आप किसी पूरे समुदाय पर पेशाब करने की धमकी दें।”
क्या सेंसर बोर्ड भी पक्षपाती है?
एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि क्या सेंसर बोर्ड इन फिल्मों में ब्राह्मण विरोधी दृश्यों को देखकर भी मौन रहता है?
अगर यही संवाद किसी दूसरे धर्म या समुदाय के खिलाफ होता, तो शायद फिल्म बैन हो जाती।
‘फुले’ और ‘बैड गर्ल’ जैसी फिल्मों के बहाने भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में समुदाय विशेष को नीचा दिखाने का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है। ब्राह्मण समाज अब तक शांत रहा है, लेकिन अब आवश्यकता है कानूनी और सामाजिक मोर्चे पर संगठित प्रतिक्रिया की।



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