
कक्का की चौपाल – शहरी क्षेत्र विशेष
” जिले की नगर परिषदों में कर्मचारियों द्वारा खुलेआम की जा रही अवैध वसूली
(काल्पनिक पात्रों, परिवेश और विश्वसनीय घटनाओं पर आधारित कक्का की चौपाल)
गर्मियों की दुपहरी, बिजली गायब, ट्रैफिक की आवाज़ों के बीच एक टूटी पड़ी सरकारी बेंच पर बैठे बुजुर्ग, पास ही नींबू पानी वाला लड़का “गुटका चबाता हुआ एक ओर नगर परिषद की बिल्डिंग – जर्जर, सीलन भरी और बोर्ड पर लिखा “जनता की सेवा में तत्पर”, लेकिन दीवार पर कोयले से लिखा – “ये सेवा नहीं, सेफ ठगी है।”
मुख्य पात्र
1. कक्का – 75 वर्षीय बुद्धिजीवी, सरकारी भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले बुजुर्ग
2. घसीटा लाल – ठेला ठेलने वाला, दो बार वसूली से परेशान
3. सुल्तान भाई – ई-रिक्शा वाला, 10 साल से हर नगर की वसूली में घायल
5. मनोरमा देवी – शहरी महिलाओं की आवाज़ सब्जी की थैली से ज्यादा भ्रष्टाचार की बातों से भारी
6. ‘निकाय’ के कर्मचारी श्यामलाल – साइकिल से वसूली करने निकलने वाला दिहाड़ी”
7. राजनीतिक ‘समर्पित’ नेताजी – अध्यक्ष साहब के खास चमचे
8 नगर परिषद का चुपचाप बोर्ड – “बाजार बैठकी शुल्क ₹10” (लेकिन बिना रसीद ₹50)
(चौराहे पर कक्का मूढ़े पर बैठते हैं, गर्म हवाओं में धूल उड़ रही है, सभी पात्र एक-एक कर जुड़ते हैं। घसीटा के माथे पर गुस्से की परत और आँखों में जलन)
कक्का
“कहो घसीटा! आज फिर कौन सा चमत्कार हुआ?”
घसीटा (गुस्से से भड़कता)
“कक्का! आज सुबह से तीन निकाय कर्मचारी आए, तीनों ने कहा – ‘ठेला लगाने का किराया दे’। पूछो – रसीद? तो बोले ‘कौन सा नया हो भाई? यहां तो बिना पर्ची के ही सब चलता है।’”
सुल्तान भाई (ई-रिक्शा को किनारे लगाते हुए)
“हम भी रोजाना 20-20 रुपये तीन चौकियों पर दे रहे हैं। नगर परिषद के लोग अब खुलेआम कहते हैं – ‘हमारे अधिकारी भी हिस्सेदार हैं, तुमसे जो लिया जा रहा है, वो ऊपर तक जाता है।’”
रीना सब्जी बेचने वाली (होंठ सिकोड़ती हुई)
“हमारे जैसे छोटे दुकान वालों को हर महीने साफ-सफाई, बोर्ड, सीलिंग, टिन की छांव बिना पैसा लिया जा रहा है – बिना एक रसीद! और जो मना करे, अगली सुबह दुकान के आगे कचरा फेंकवा दिया जाता है।”
‘श्यामलाल वसूलीकर्मी’ (बिना बैच के निकाय कर्मचारी)
(साइकिल पर झोला लटकाए श्यामलाल आता है, गाड़ी से उतरते ही सीधा घसीटा के पास जाता है)
श्यामलाल
“भइया, आज का ‘समन शुल्क’ तो देना पड़ेगा। नेताजी नाराज़ हो जाते हैं नहीं दिया तो। आप ठेले वाले हो, सड़क पर जगह तो नगर परिषद की है ना?”
घसीटा (भभकते हुए)
“तेरी परिषद की सड़क है? तो गड्ढे क्यों नहीं भरते? कूड़ा क्यों नहीं उठाते? हम पैसे दे-देकर तुम्हारे ऑफिस की झाड़ू बन गए क्या?”
श्यामलाल (मुस्कराते हुए)
“घसीटा भइया, हमें भी तो ऊपर देना पड़ता है। ये सब ‘सिस्टम’ है। हर निकाय में सब जगह यही चल रहा है। और तुम्हारी ही तरह सब दे रहे हैं – तुम क्यों अकेले चिल्ला रहे हो?”
मनोरमा देवी (आक्रोशित होकर)
“कक्का! अब तो हाल ये है कि जब तक हर महीने ‘हफ्ता’ न दो, ठेले पर सामान तक नहीं बिकता। नगर परिषद वाले दिनदहाड़े आते हैं और कहते हैं – ‘हम सेठ जी के कहने पर आए हैं’। सेठ कौन? निकाय अध्यक्ष का चेला!”
‘बाबूलाल मोबाइलिया’ आता है और मोबाइल कैमरा ऑन करता है,
बाबूलाल
“ये देखिए, जनता रो रही है। नगर परिषद की व्यवस्था हर दिन 4000-5000 रुपये वसूलती है – बिना रसीद, बिना डर। शासन का आदेश है कि वसूली वैध ठेकेदार द्वारा ही हो – लेकिन कौन मानता है?”
(पीछे से किसी की आवाज़ आती है – “अरे बाबूलाल, नेताजी से मिलना बंद मत करना नहीं तो तेरा कैमरा फूट जाएगा
कक्का
“अब बहुत हो गया। ये कर्मचारी खुद को अध्यक्ष समझने लगे हैं। शासन के आदेशों का नाम भी नहीं लेते।
सरकारी आदेश
“शहरी क्षेत्रों में कोई भी व्यक्ति बाजार बैठकी या किसी प्रकार की शुल्क वसूली बिना वैध ठेका, टेंडर अथवा नगरीय निकाय की अधिकृत रसीद के नहीं करेगा। उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
नगरीय प्रशासन विभाग, भोपाल (दिनांक XYZ)
कक्का का अंतिम संवाद
“अगर प्रशासन इन कर्मचारियों से वसूली नहीं करेगा, तो एक दिन जनता इनसे ब्याज समेत वसूल करेगी – लेकिन उस दिन वे कर्मचारी अपने पहचान पत्र तक छिपा लेंगे!”
अनूपपुर जिले की हर नगर परिषद – नगर पालिका परिषद में कर्मचारी खुलेआम वसूली कर रहे हैं
कोई रसीद नहीं, कोई डर नहीं, आदेशों का उल्लंघन एक आम बात
“बाजार बैठकी” अब टैक्स नहीं, ‘सत्ता संरक्षित लूट’ बन चुकी है
दुकान दार चिल्ला रहे है – “अब नहीं सहेंगे”



Leave a Reply