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किसानों की मेहनत रात में तबाह होती है, दिन में शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं

किसानों की मेहनत रात में तबाह होती है, दिन में शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं



बरगवां अमलाई (अनूपपुर)
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसल की बर्बादी किसी भी किसान के लिए किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं होती, लेकिन जब यह संकट हर रोज़ नए रूप में सामने आए, तो मेहनतकश किसानों की हताशा समझी जा सकती है। नगर परिषद बरगवां अमलाई के वार्ड क्रमांक 1 के किसान इन दिनों इसी दोहरी मार से जूझ रहे हैं। जब आसमान से राहत की उम्मीद की जा रही थी, तब कुदरत ने बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से उनकी फसलों को झकझोर दिया। लेकिन इससे भी बड़ा संकट हर रात उनके खेतों में दस्तक दे रहा है—जंगली सूअरों के झुंड, जो खेतों को रौंदकर फसल को बर्बाद कर रहे हैं।
“मेहनत रात में तबाह होती है, दिन में शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं”
यह कहना है स्थानीय किसान रामकुमार (परिवर्तित नाम) का, जो अपनी पूरी मेहनत को हर रात सूअरों के झुंड द्वारा रौंदे जाते हुए देखने को मजबूर हैं। वे बताते हैं, “हमने खून-पसीने से गेहूं की फसल उगाई थी, लेकिन अब ये सूअर हमारी सालभर की मेहनत को मिट्टी में मिला रहे हैं।”
दिनभर का संघर्ष, रातभर की चिंता—यह इन किसानों का रोज़ का जीवन बन चुका है। कुछ ने अपने खेतों के चारों ओर फेंसिंग लगाई, लेकिन ये हुनरमंद आक्रांता उसे भी ध्वस्त कर खेतों में घुस जाते हैं। खेतों के चारों ओर की मिट्टी में गहरे पंजों के निशान और रौंदी गई फसलें इस संकट की खामोश गवाही देती हैं।

“प्रशासनिक आश्वासन बनाम किसानों की हकीकत”
किसानों का कहना है कि उन्होंने कई बार स्थानीय प्रशासन और वन विभाग को अपनी समस्या से अवगत कराया, लेकिन समाधान की जगह उन्हें केवल “आश्वासनों” का पुलिंदा ही मिला। वन्यजीवों से फसल सुरक्षा की सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों में सजी-धजी दिखती हैं, लेकिन जमीन पर उनका कोई असर नहीं दिखता।
“हर साल सरकार हमें मुआवजे का सपना दिखाती है,” किसान कहते हैं, “लेकिन असलियत यह है कि अगर मुआवजा मिलता भी है, तो वह इतना नाममात्र का होता है कि उससे आधे बीज भी नहीं खरीदे जा सकते!”
मुआवजा प्रक्रिया भी इतनी लंबी और जटिल है कि फसल की क्षति के बाद किसान फॉर्म भरने और चक्कर लगाने में ही थक जाते हैं। जब तक कोई राहत राशि मिलती है, तब तक अगला मौसम आ जाता है और किसान फिर उसी दुष्चक्र में फंस जाता है।
जब प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता, है तो कुछ किसानों ने रातभर जागकर अपने खेतों की रखवाली करनी शुरू कर दी है, लेकिन यह कितने दिन संभव हो पाएगा?

“हमारी ज़िंदगी क्या सिर्फ संघर्ष के लिए बनी है?”—यह सवाल सिर्फ बरगवां अमलाई के किसानों का नहीं, बल्कि हर उस किसान का है जो प्राकृतिक आपदाओं और प्रशासनिक उदासीनता के बीच फंसा हुआ है।
“कब मिलेगा समाधान?”
यह सवाल हर रात वार्ड 1 के खेतों में खड़ी सूखती हुई फसलों से उठता है, लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं। अगर प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो वह दिन दूर नहीं जब किसानों के खेत ही नहीं, उनके सपने भी उजड़ जाएंगे।

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Kailash Pandey
Anuppur
(M.P.)

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