
भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषा का मुद्दा समय-समय पर राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बनता रहा है। हाल ही में आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और जनसेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण ने तमिलनाडु में हिंदी विरोधी रुख पर सवाल उठाते हुए कहा कि भारत को तमिल सहित कई भाषाओं की जरूरत है, न कि केवल दो भाषाओं की।
उनकी इस टिप्पणी ने हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाए जाने की बहस को और तेज कर दिया है। यह चर्चा केवल भाषाई अस्मिता का सवाल नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक कुशलता से जुड़ा गंभीर मुद्दा भी है।
पवन कल्याण का बयान और तमिलनाडु का हिंदी विरोध

पवन कल्याण ने तमिलनाडु के नेताओं पर पाखंड का आरोप लगाते हुए कहा कि वे हिंदी का विरोध करते हैं, लेकिन अपनी फिल्मों को हिंदी में डब करके वित्तीय लाभ प्राप्त करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी भाषी राज्यों में तमिल फिल्मों का बहुत आनंद लिया जाता है, फिर तमिलनाडु में हिंदी का विरोध क्यों?
यह बयान ऐसे समय में आया जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन केंद्र सरकार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं।
पवन कल्याण ने जनता से ऐसी राजनीतिक पार्टियों को नकारने की अपील की जो भाषाई विभाजन को बढ़ावा देती हैं और कहा कि देश को भाषाओं के माध्यम से एकजुट करने की आवश्यकता है, न कि उन्हें लड़ाने की।
क्या हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया जाना चाहिए?
भारत दुनिया का सबसे बड़ा बहुभाषी लोकतंत्र है। संविधान के अनुसार, हिंदी और अंग्रेज़ी राजभाषाएँ हैं, लेकिन भारत की कोई आधिकारिक राष्ट्रभाषा नहीं है।
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में तर्क
देश की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा
देश के 57% लोग हिंदी या इसकी किसी उपभाषा को बोलते हैं।
हिंदी पूरे देश में समझी जाती है, जबकि अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ सीमित क्षेत्र तक ही प्रभावी हैं।

प्रशासनिक सुगमता और एकरूपता
यदि हिंदी राष्ट्रभाषा बनती है, तो सभी सरकारी काम एक भाषा में होंगे, जिससे प्रशासनिक जटिलताएँ कम होंगी।
अभी विभिन्न राज्यों में सरकारी कार्य अलग-अलग भाषाओं में होते हैं, जिससे समन्वय में दिक्कत आती है।
राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक पहचान
एक राष्ट्र, एक भाषा की नीति से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा।
हिंदी भारत की सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ी हुई भाषा है और भारतीय पहचान का प्रमुख हिस्सा है।
वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान
चीन ने मंदारिन, फ्रांस ने फ्रेंच, जर्मनी ने जर्मन और जापान ने जापानी के अलावा विश्व के अनेक राष्ट्र की अपनी अपनी राष्ट्र भाषा है जो अपनी राष्ट्रीय भाषा बनाकर अपनी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत किया।
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने से भारत की वैश्विक पहचान और मजबूत होगी।
संविधान निर्माताओं ने हिंदी को राजभाषा बनाया, लेकिन राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया क्योंकि भारत बहुभाषी देश है।

भारत की 22 अनुसूचित भाषाएँ और हजारों बोलियाँ हैं।
संविधान क्या कहता है?
अनुच्छेद 343 हिंदी भारत की राजभाषा होगी, लेकिन अंग्रेज़ी भी सरकारी कार्यों के लिए प्रयोग की जा सकती है।
अनुच्छेद 345 राज्य अपनी क्षेत्रीय भाषा को राजभाषा बना सकते हैं।
अनुच्छेद 351 केंद्र सरकार हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाएगी, लेकिन अन्य भाषाओं को नुकसान नहीं पहुँचाया जाएगा।
संविधान में ‘राष्ट्रभाषा’ शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है।
क्या हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाया जाना चाहिए?
पवन कल्याण का बयान भाषाई विवाद के केंद्र में नई बहस जोड़ता है। हिंदी देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा जरूर है, लेकिन इसे राष्ट्रभाषा बनाने का मुद्दा संवेदनशील है।
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के फायदे हैं यह राष्ट्रीय एकता को मजबूत कर सकती है, प्रशासन को सरल बना सकती है और वैश्विक पहचान को बढ़ा सकती है।
बहुभाषी नीतियों को मजबूत करके अन्य भारतीय भाषाओं को भी समान दर्जा दिया जाना चाहिए।
भारत की विविधता ही इसकी शक्ति है। हिंदी महत्वपूर्ण है, लेकिन देश की अनेक भाषाओं का सम्मान करना भी उतना ही जरूरी है।
तो क्या भारत को हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर देना चाहिए या बहुभाषी नीति को बनाए रखना चाहिए?
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