*✍🏻 अपर्णा दुबे*
उठो नारी! जागो नारी! भारत भाग्य विधाता।
तेरे हाथों लेख रचा, हर पीढ़ी का नाता॥
अबला कहकर तुझे जग, करता रहा अपमान।
रणचंडी बन हुंकार दे, मिटा अधर्म का त्राण॥
सीमा पर जब खड़ी हुई, झाँसी की संतान।
भाले पर मस्तक धर, कर गई बलिदान॥
रानी चेनम्मा लड़ी जब, काँपा मुगल सल्तनत।
नारी के शौर्य से फिर, टूटा था अहंकार॥
मत कर पुत्र मोह माँ, रण में भेजे लाल।
सिंहनी के दूध से, सीखे बेटा काल॥
सहन न होगा अब कोई, दुराचार अपार।
अब रणचंडी रूप धरे, नारी करे संहार॥
उठा कृपाण, धधक उठे, यह ज्वाला का रूप।
अब न रुकेगी यह क्रांति, काँपे दुश्मन समूह॥
झाँसी की वह रानी थी, रण में जिसने वार।
हर दुश्मन को काट दिया, आग बनी तलवार॥
पन्ना धाय सम खड़ी रही, तज कर निज संतान।
राज बचाने हेतु दिया, खुद का बलिदान॥
धरा सती का रूप जब, नारी बनी मशाल।
हर युग में निज रक्त से, जलाया सत्य की ज्वाल॥
ममता तेरी गोद में, पलता भारत देश।
करुणा तेरी अमृत सम, दे जीवन उपहार॥
तेरी ममता के बिना, सूना यह संसार।
मधुर वाणी में तेरे, सजे स्नेह संचार॥
अबला नहीं, सबला हम, शक्ति बनें प्रचंड।
पथ से अंधकार हटा, करें युगों में द्वंद्व॥
उठो, जागो, हुंकार दो, अब अन्याय न हो।
पथ से हटे अब कायरता, फिर विजय संजो॥
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू – नारी शक्ति का नवीन प्रतीक
पर्वत से ऊँची बनी, नारी की पहचान।
द्रौपदी मुर्मू आज है, भारत की सम्मान॥
संघर्षों की अग्नि में, तपकर बनी मिसाल।
एक नारी ने, पाया यह भाल॥
संविधान के शीर्ष पर, जब नारी विराजे।
भारत माँ के गौरव को, नवयुग की आशा जागे॥
हम हैं भारत की नारियां, नवयुग की पहचान।
त्याग, तपस्या, प्रेम की, हममें तेज अपार॥
अबला नहीं, सबला बनो, शक्ति बनो प्रचंड।
भारत माँ के भाग्य को, दो नवरूप अखंड॥
तम को हरने आज उठो, ज्वाला बनो विशाल।
तेरी शक्ति से मिटेगा, हर संकट विकराल॥
रणचंडी की ज्वाला में, जल जाए अधर्म।
न्याय सूर्य फिर चमकेगा, मिटे अधर्म का मर्म॥
“जय नारी शक्ति! जय भारत!”
*✍🏻 अपर्णा दुबे*

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