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अमरकंटक में गूंजती कालिदास के यक्ष की विरह वेदना

अमरकंटक में गूंजती कालिदास के यक्ष की विरह वेदना

अमरकंटक प्राकृतिक सौंदर्य, मेघदूत और यक्ष की अमर व्यथा

अमरकंटक भारत की एक अनुपम धरोहर है, जहां प्रकृति अपनी संपूर्ण छटा के साथ विराजमान है। यह वह भूमि है, जहां नर्मदा नदी का उद्गम होता है, जहां घने जंगलों, सुरम्य घाटियों, झरनों और पवित्र मंदिरों का साम्राज्य है। इस पवित्र स्थल के प्राकृतिक सौंदर्य में एक अद्भुत आकर्षण है, जो हर आगंतुक को अपने मोहपाश में बांध लेता है।

संस्कृत के महान कवि कालिदास की अमरकृति “मेघदूत” में जिस यक्ष की व्यथा को चित्रित किया गया है, वह भावनात्मक स्तर पर अमरकंटक की माटी से गहराई से जुड़ती है। यहाँ की पहाड़ियों, वनों और नदी-झरनों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो यक्ष की विरह वेदना यहीं की वादियों में गूंजती रही होगी। अमरकंटक के प्राकृतिक सौंदर्य और कालिदास के मेघदूत के यक्ष के दुःख के बीच एक अद्भुत समानता दिखाई देती है। यह स्थान कालिदास के काव्य की उस कल्पना को मूर्त रूप देता है, जिसमें यक्ष अपने संदेशवाहक मेघ से अपनी प्रियतमा तक प्रेम का संदेशा पहुँचाने की विनती करता है।

अमरकंटक का प्राकृतिक वैभ
अमरकंटक सतपुड़ा और विंध्य पर्वतमालाओं के संगम पर स्थित है। यहां की प्राकृतिक सुन्दरता अनुपम है—हरियाली से आच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं, कलकल बहती नर्मदा नदी, संगमरमर की चट्टानों से टकराते झरने, और अनछुए घने वन इसे भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों और पर्यटन स्थलों में स्थान प्रदान करते हैं। अमरकंटक का हर कोना मानो एक कविता हो, एक ऐसा गीत जो कालिदास की लेखनी से निकला हुआ प्रतीत होता है।

मेघदूत में यक्ष द्वारा आम के वृक्षों को देखकर दिया गया संदेश
जो आज भी  अमरकंटक स्थित माई की बगिया में आम के वृक्षों का बगीचा है शायद यहीं से यक्ष अपना संदेश मेघ के माध्यम से देता है।
कालिदास रचित ‘मेघदूत’ में यक्ष अपने संदेशवाहक मेघ  को विभिन्न स्थलों से गुजरते हुए कल्पना करता है। जब मेघ आम के वृक्षों (आम्रवृक्ष) के ऊपर से उड़ता है, तब यक्ष एक सुंदर संदेश देता है।

श्लोक:

“संसक्तं मधुकरमुखैः सीतलैर्मञ्जरीभिः
शाखाभिः कतमपि तरीं सारसं माधवीनाम्।
नीलाभ्रं दिशतु भवते वृन्तिसंवर्तचञ्चुं
नाभ्यस्ता नयनसुभगां क्षोणिमम्ब क्षणेन॥”

श्लोक का हिंदी अर्थ:

हे मेघ! जब तुम उन आम्रवृक्षों के ऊपर से गुजरोगे, जो मधुर गूँजते भौंरों से भरी ठंडी मंजरी (आम के फूल) से लदे हुए हैं, और जहाँ माधवी लताओं की शाखाएँ किसी पक्षी के आकार में फैली हुई हैं, तब तुम्हें वहाँ का सौंदर्य और मधुरता प्रभावित करेगी किंतु मेरी विरह वेदना के कारण, जब तुम अपने नील रंग की छाया से वहाँ ठहरोगे, तो वह दृश्य मेरी प्रिय के नेत्रों में आनंद की अनुभूति जगा देगा।

इस श्लोक में यक्ष अपने संदेशवाहक मेघ से कहता है कि जब वह आम के वृक्षों के ऊपर से गुजरेगा, तो वहाँ की प्रकृति अत्यंत मनमोहक होगी। वह नीलाभ्र (नीले मेघ) को देख प्रियतम की स्मृतियों में खो जाएगा। यह दृश्य संयोग और विरह के अद्भुत मिश्रण को प्रस्तुत करता है।

प्राकृतिक आकर्षणों में प्रमुख हैं

1. नर्मदा कुंड – नर्मदा नदी का उद्गम स्थल, जहां से यह नदी अपनी पावन यात्रा आरंभ करती है।
2. कपिल धारा – एक विशाल झरना, जिसे देखकर मन में रहस्य और रोमांच दोनों ही भाव उमड़ते हैं।
3. धुनी पानी – जहाँ पानी का कुंड है, जो औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है।
4. सोनमुड़ा – सोन नदी का उद्गम स्थल, जहाँ से दूर-दूर तक फैली घाटियों का मनोरम दृश्य दिखता है।
5. माई की बगिया – प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान, जहाँ पेड़ों की छाँव में नर्मदा माता का मंदिर है।
6. भृगु कमंडल कबीर चौरा जलेश्वर धाम
7. सन राइस प्वाइंट सूर्यकुण्ड जैन मंदिर अनेक आश्रम देवालय धरहर कला गणेश मंदिर कल्याण आश्रम  महान विचारक और दार्शनिक स्वर्गीय भगवत शरण माथुर द्वारा स्थापित नर्मदे हर न्यास IGNTU विश्वविद्यालय शांतिकुटी फलाहारी बर्फानी आश्रम रंगमहल शंकराचार्य सोन मुड़ा चक्रतीर्थ कपिला संगम प्रमुख स्थलों एवं आश्रम हैं।
यह सभी स्थल अपनी विशेषता के कारण प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करते हैं। इनका सौंदर्य ऐसा है कि कोई भी कवि या साहित्यकार इसे देखकर बिना कविता रचे नहीं रह सकता।


कालिदास की मेघदूत और अमरकंटक का भावनात्मक साम्य
कालिदास की “मेघदूत” में एक यक्ष की करुण गाथा है, जो अपने विरह की वेदना से व्याकुल होकर बादलों से संदेश भेजता है। यह यक्ष अलकापुरी का निवासी था, जिसे कुबेर ने अपनी प्रियतमा से दूर मानसरोवर के पास रामगिरि (रामटेक) में निष्कासित कर दिया था। यहाँ रहकर उसने पर्वतों, नदियों, और वनों को अपनी व्यथा सुनाई और मेघों से अपनी पत्नी तक संदेश पहुँचाने की प्रार्थना की।
अमरकंटक की शांत पहाड़ियों, हरी-भरी घाटियों, और नर्मदा के प्रवाह को देखकर यह सहज ही प्रतीत होता है कि यदि यक्ष को कहीं विरह व्यथा के लिए स्थान मिला होगा, तो वह अमरकंटक जैसा ही कोई स्थान रहा होगा।


प्राकृतिक प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग
जो भी पर्यटक यहाँ आता है, वह इस स्थान के सौंदर्य से अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकता। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जब नर्मदा का पानी स्वर्णिम आभा से चमकता है, तब यह दृश्य ऐसा प्रतीत होता है जैसे स्वयं कालिदास की कविता ने जीवन धारण कर लिया हो। मेघदूत की पंक्तियों में जिस नयनाभिराम प्रकृति का वर्णन है, वह अमरकंटक में सजीव हो उठती है।


क्यों आएं अमरकंटक और मेघदूत का अनुभव करें
1. साहित्य प्रेमियों के लिए जो लोग कालिदास की रचनाओं से प्रभावित हैं, उन्हें अमरकंटक अवश्य आना चाहिए। यहाँ की प्रकृति को देखकर उन्हें मेघदूत के यक्ष की व्यथा और अधिक गहराई से अनुभव होगी।
2. प्रकृति प्रेमियों के लिए यह स्थान न केवल आध्यात्मिक है, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण भी है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ आप स्वयं को प्रकृति से जोड़ सकते हैं।
3. फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए अमरकंटक के जलप्रपात, घने जंगल और पहाड़ियाँ फोटोग्राफी के लिए आदर्श स्थान हैं।
4. धार्मिक यात्रियों के लिए नर्मदा कुंड और अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन से आत्मिक और आध्यात्मिक शांति मिलती है।


अमरकंटक और मेघदूत का संयुक्त संदेश
अमरकंटक और मेघदूत की कहानी हमें सिखाती है कि प्रकृति और प्रेम का संबंध अटूट होता है। यक्ष की व्यथा, बादलों की यात्रा, और नर्मदा का प्रवाह – सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जब आप अमरकंटक आएं, तो यहाँ की नदियों, झरनों, और वनों को देखकर मेघदूत की पंक्तियों को पुनः स्मरण करें

संप्रति श्यामो भवति भवतः पक्ष्मलाक्ष्या: सपत्नि-“

यहाँ की घाटियों में आप यक्ष की पीड़ा को महसूस कर सकते हैं, बादलों की नमी में उसकी आँसूओं की अनुभूति कर सकते हैं, और नर्मदा की लहरों में प्रेम का शाश्वत प्रवाह देख सकते हैं।

तो यदि आप कालिदास की कृति “मेघदूत” को जीना चाहते हैं, तो एक बार अमरकंटक अवश्य आए।

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