

“गुरु दक्षिणा 2.0: शिक्षा के नाम पर ‘उगाही पाठशाला’, सरई स्कूल में रिश्वतखोरी का नया पाठ!”
“स्कूटी योजना का लाभ लेना है? पहले ‘फीस’ दो!”
सरई के सरकारी स्कूल में अब सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि सरकारी योजनाओं का ‘व्यवसायीकरण’ भी सिखाया जा रहा है। मामला पुष्पराजगढ़ विकासखंड के एक सरकारी विद्यालय का है, जहां मेधावी छात्रा से प्रभारी शिक्षक महोदय ने 4,000 रुपये ‘गुरु दक्षिणा’ वसूल ली। योजना थी ‘मुख्यमंत्री मेधावी छात्रा स्कूटी योजना’, लेकिन यहां लाभार्थी से पहले ‘चंदा’ लिया जा रहा था।
अब सोचिए, जब छात्रा को शासन की योजना का लाभ पाने के लिए भी रिश्वत देनी पड़े, तो बाकी व्यवस्थाएं कितनी पारदर्शी होंगी? यह स्कूल शिक्षा का केंद्र है या ‘उगाही पाठशाला’?”शिक्षा नहीं, ‘शुल्क’ पहले”
सरकारी स्कूलों में गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा का सपना दिखाया जाता है। किताबों और पोषण आहार तक सब कुछ मुफ्त बताया जाता है, लेकिन सरई स्कूल में ‘मेधावी छात्राओं’ को ज्ञान से पहले ‘धन’ देना जरूरी हो गया!
छात्रा सुनीता देवी बारहवीं में प्रथम श्रेणी से पास हुई थी। जब स्कूटी योजना का लाभ लेने की बारी आई, तो प्रभारी साहब ने ‘पंजीकरण और बीमा’ के नाम पर 4,000 रुपये मांग लिए। शिक्षा विभाग ने कहीं लिखा नहीं था कि योजना के साथ ‘छोटा सा शुल्क’ भी देना होगा, लेकिन प्रभारी शिक्षक साहब ने शिक्षा को बाजारू बना दिया। “बिना पैसे दिए स्कूटी नहीं मिलेगी!” – साफ कह दिया गया।

जनसुनवाई में खुली पोल, रिश्वत ‘स्वीकार’ कर दी गई!
अब जरा इस भ्रष्टाचार की ‘सत्यता’ देखिए—शिक्षक महोदय का ईमान इतना लचीला निकला कि जनसुनवाई में दबाव पड़ते ही उन्होंने पैसे लेने की बात स्वीकार कर ली।
मतलब, पहले तो पूरे विश्वास के साथ रिश्वत ली गई, फिर जब मामला खुला, तो झट से कहा—”हां, गलती हो गई!”
जिला पंचायत सीईओ श्री तन्मय वशिष्ठ शर्मा ने शिकायत को गंभीरता से लिया और तत्काल जांच के आदेश दिए। जिला शिक्षा अधिकारी ने मामले की पड़ताल की तो प्रभारी शिक्षक खुद ही पैसे लेने की बात कबूल कर बैठे। अब प्रशासन ने कार्यवाही करने की घोषणा की है, लेकिन इसमें कितनी सख्ती होगी, यह तो वक्त ही बताएगा।
“क्या बस पैसे लौटाने से मामला खत्म?”
अब असली सवाल यह है कि क्या एक शिक्षक रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाए तो सिर्फ पैसे लौटाने से उसकी गलती माफ हो जाएगी।
इस शिक्षक के खिलाफ केवल विभागीय कार्यवाही की बात की जा रही है, जबकि यह मामला सीधे तौर पर भ्रष्टाचार का है।
“शिक्षक का नया पाठ: पहले घूस दो, फिर ज्ञान लो!”
पहले कहा जाता था “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय”, अब नया युग है—”गुरु खड़ा तिजोरी संग, पहले फीस चुकाय!”
शिक्षक का दर्जा कभी देवताओं से भी ऊपर था, लेकिन अब कुछ सरकारी स्कूलों में शिक्षक ज्ञान देने के पहले दक्षिणा मांग रहे हैं। यह कोई छोटा-मोटा मामला नहीं है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर है।
सरकारी योजनाओं को भी अब ‘उगाही के धंधे’ में बदल दिया गया है। अगर एक गरीब छात्रा को स्कूटी योजना का लाभ पाने के लिए 4,000 रुपये देने पड़ते हैं, तो फिर सामान्य बच्चों का क्या हाल होगा?
“स्कूल नहीं, भ्रष्टाचार की पाठशाला!”
सरई स्कूल में ये पहला मामला नहीं हो सकता। सवाल ये है कि क्या सिर्फ इस एक छात्रा से ही पैसे लिए गए थे, या बाकी छात्रों से भी उगाही की गई?
क्या यह भ्रष्टाचार पूरे शिक्षा विभाग में फैला है? क्या सरकार की तमाम योजनाएं ऐसे ही ‘गुप्त शुल्क’ के जरिए आम जनता तक पहुंच रही हैं?
इस मामले में अगर दोषी को सिर्फ पैसे वापस करवाकर छोड़ दिया गया, तो यह भ्रष्टाचारियों को ‘लाइसेंस’ देने जैसा होगा—कि पहले घूस लो, अगर पकड़े गए तो पैसे लौटा दो, और फिर से वही काम शुरू कर दो!
“छात्रा ने किया कमाल, प्रशासन से उम्मीद बाकी”
छात्रा सुनीता देवी की हिम्मत को सलाम, जिसने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और पूरे मामले को उजागर किया। लेकिन अब असली परीक्षा प्रशासन की है कि क्या वे इस शिक्षक को कड़ी सजा देंगे, या फिर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
अगर इस शिक्षक को केवल विभागीय नोटिस देकर छोड़ दिया गया, तो इसका सीधा संदेश यही जाएगा—
“रिश्वत लो, अगर पकड़े गए तो पैसे लौटा दो, कोई कार्रवाई नहीं होगी!”
“शिक्षा का मंदिर बचाओ, रिश्वतखोरी की पाठशाला बंद करो!”



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