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अपनों ने ठुकराया, समाज ने त्यागा, दरिंदों ने नोच डाला—अब कौन देगा इंसाफ?

अपनों ने ठुकराया, समाज ने त्यागा, दरिंदों ने नोच डाला—अब कौन देगा इंसाफ?

मानवता का अंतिम श्वास भालूमाड़ा में एक बेबस बेटी के साथ वहशियत की पराकाष्ठा—लाचार मानसिक रोगी के आंसू किसे पुकारें?
एक कटी पतंग की तरह जीवन के थपेड़ों में भटकती मासूम—जिसकी चीखें हवाओं में घुलकर भी किसी के हृदय को नहीं झकझोर सकीं!
भालूमाड़ा, अनूपपुर
सदियों से सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देने वाला यह समाज आज उस मोड़ पर खड़ा है, जहां इंसान की आत्मा पत्थर हो चुकी है।
यह कोई लोककथा नहीं, कोई किंवदंती नहीं, बल्कि उस क्रूर सत्य का बेजोड़ दस्तावेज़ है, जिसे सुनकर आत्मा कांप उठे और हृदय रक्त के आंसू रोने लगे। भालूमाड़ा की एक 30 वर्षीय मानसिक रूप से विक्षिप्त युवती, जिसे अपनों ने त्याग दिया, समाज ने बहिष्कृत कर दिया और हैवानों ने अपनी हवस का निवाला बना लिया—
भालूमाड़ा की हवाओं में घुली चीखें—एक मासूम की रूह कंपा देने वाली कहानी
वह जो स्वयं को व्यक्त भी नहीं कर सकती, जिसकी मानसिक अवस्था इतनी विक्षिप्त है कि वह न तो शोषण की शिकायत कर सकती है, न ही न्याय की गुहार लगा सकती है। लेकिन क्या समाज को उसकी मूक चीखें नहीं सुनाई दीं? क्या किसी की आत्मा तक यह सिसकियां नहीं पहुंचीं?
हर रात जब अंधेरा घिरता होगा, तब उसके जीवन का एक और काला अध्याय लिखा जाता होगा। उसे बहला-फुसलाकर, नशे में धुत्त गिद्धों की तरह उसे नोचने के लिए वे नरपिशाच दौड़ते होंगे। कोई शोर नहीं, कोई विरोध नहीं—बस एक निस्पंद देह, जिसे इंसान नहीं बल्कि एक निर्जीव वस्तु मान लिया गया ।
अपनों ने ठुकराया, समाज ने त्यागा, दरिंदों ने नोच डाला—अब कौन देगा इंसाफ?
जिस बेटी को परिवार को  संबल देना था, वही उसके लिए पराया हो गया। घर के दरवाजे उस पर हमेशा के लिए बंद कर दिए गए, रिश्तों की डोर कट गई, और वह लाचार होकर गलियों, जंगलों, अंधेरों में अपनी किस्मत के धागों को समेटने के लिए भटकती रही।
किन्तु इस भटकाव से भी अधिक भयावह वह घड़ियां थीं, जब कुछ भेड़ियों ने उसकी लाचारी को अपने पाशविक सुख का साधन बना लिया। आज, जब वह गर्भवती हो चुकी है, तब जाकर समाज की आंखें खुलीं, लेकिन क्या अब भी न्याय मिलेगा?
कौन है वह वहशी, जिसने मानसिक रोगी के गर्भ में अपने पाप का बीज बो दिया?
कौन है वह समाज, जिसने यह सब कुछ होते देखा और मौन साध लिया?
कौन देगा इस मासूम को न्याय, जिसने जीवनभर सिर्फ ठुकराया जाना ही सीखा?
अतः अब समय आ चुका है कि
✅ तुरंत उच्चस्तरीय मेडिकल जांच हो, जिससे अपराधियों की पहचान हो सके।
✅ गर्भ का डीएनए परीक्षण कराया जाए, ताकि उन वहशियों के चेहरे बेनकाब किए जा सकें।
✅ आरोपियों को तत्काल गिरफ्तार कर कठोरतम दंड दिया जाए।
✅ मानसिक रूप से अस्वस्थ इस लड़की को सुरक्षित पुनर्वास मिले।
क्या सिर्फ खबरों में सिमटकर रह जाएगी यह चीख, या मिलेगा इंसाफ? क्या यह चक्र कभी रुकेगा? क्या पीड़िता की बेबस चीखें किसी के हृदय को द्रवित कर पाएंगी? या फिर हम केवल कुछ समय के लिए दुख प्रकट कर आगे बढ़ जाएंगे—एक और ख़बर, एक और आँकड़ा?
अब यह खबर नहीं, इंसानियत के मस्तक पर एक कलंक है
क्या हम एक असहाय मानसिक रोगी लड़की के साथ हुए इस अमानवीय अत्याचार के विरुद्ध खड़े होंगे? या फिर हमारे मौन में ही उसका अंतिम संस्कार लिखा जाएगा?

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Kailash Pandey
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(M.P.)

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