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इत्यादि: हर संघर्ष की भीड़, हर इतिहास का गुमनाम पृष्ठ

इत्यादि: हर संघर्ष की भीड़, हर इतिहास का गुमनाम पृष्ठ




इत्यादि कौन है?
वह किसान है, जो सुबह खेत जोतता है और शाम को रैली में झंडा उठाए खड़ा रहता है।
वह मजदूर है, जो दिनभर ईंट-पत्थर उठाता है और रात को किसी आंदोलन की भीड़ का हिस्सा बन जाता है।
वह दिहाड़ी कामगार है, जिसकी मेहनत से शहर चलते हैं, लेकिन जब न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने की बात आती है, तो वह सिर्फ इत्यादि बनकर रह जाता है।
वह आदिवासी है, जो अपने जंगल, अपनी ज़मीन बचाने के लिए लड़ता है, लेकिन सरकारी काग़ज़ों में उसका नाम नहीं, बस एक गिनती होती है—इत्यादि।
वह रिक्शा चालक है, जो सड़कों पर पसीना बहाता है, लेकिन किसी हड़ताल में शामिल होने के बावजूद अख़बारों में जगह नहीं पाता।
वह महिला श्रमिक है, जो दिनभर किसी फैक्ट्री में काम करती है और शाम को अपने अधिकारों की लड़ाई में शामिल हो जाती है, लेकिन समाज उसे पहचानने से इनकार कर देता है।
इत्यादि की पहचान
सभा होती है, नेता आते हैं, बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। इत्यादि सबसे आगे बैठकर तालियाँ बजाता है।
नारे लगते हैं, जुलूस निकलता है, रास्ते बंद होते हैं। इत्यादि भीड़ का हिस्सा बनकर अपनी आवाज़ बुलंद करता है।
धरने पर लाठियाँ बरसती हैं, आंसू गैस छोड़ी जाती है, गिरफ्तारी होती है। इत्यादि सबसे पहले गिरता है, सबसे पहले उठता है, सबसे पहले जेल जाता है।
जब नया कानून पास होता है, नई योजनाएँ बनती हैं, जब जीत का जश्न मनाया जाता है—इत्यादि सबसे पीछे छूट जाता है।
इत्यादि की नियति
जब गाँव में सूखा पड़ता है, इत्यादि पलायन करता है।
जब शहर में दंगे होते हैं, इत्यादि मारा जाता है।
जब सरकार बदलती है, इत्यादि उम्मीद करता है।
जब वादे टूटते हैं, इत्यादि फिर सड़कों पर उतरता है।
इत्यादि की जगह इतिहास में कहाँ है?
किसी भी क्रांति को देखिए—इत्यादि ने उसे खड़ा किया।
हर आंदोलन में भीड़ थी—इत्यादि उसका हिस्सा था।
हर संघर्ष में लाठी खाने वाला कोई था—इत्यादि वही था।
लेकिन जब शिलालेख बने, जब किताबें लिखी गईं, जब भाषण दिए गए—इत्यादि बस एक शब्द बनकर रह गया।
इत्यादि का अंत नहीं होता
इत्यादि एक नाम नहीं, एक पहचान है।
हर पीढ़ी में, हर दौर में, हर लड़ाई में इत्यादि रहा है और रहेगा।
इत्यादि कभी नहीं मरता—वह खेतों में, कारखानों में, सड़कों पर, मंचों के नीचे, नारों के बीच ज़िंदा रहता है।
पर उसे कोई याद नहीं रखता।
क्योंकि इत्यादि को गिनना तो आसान है, पर पहचान देना मुश्किल।
क्योंकि इत्यादि इतिहास बनाता है, लेकिन इतिहास में जगह नहीं पाता।
क्योंकि इत्यादि सिर्फ भीड़ नहीं, इत्यादि ही आंदोलन की जान है।
क्योंकि इत्यादि सिर्फ इत्यादि ही रहेगा।

इत्यादि” = “आगे भी बहुत कुछ है।”

“आदि” = “इनमें से कुछ प्रमुख हैं।”

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(M.P.)

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