
मुख्यमंत्री की घोषणाएँ और ज़मीनी हकीकत मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव ने जब अनूपपुर के विकास को लेकर बड़े वादे किए थे, तब जनता को लगा कि अब बदलाव निश्चित है। 16 अगस्त को मुख्यमंत्री ने जो घोषणाएँ कीं, उनमें नवीन न्यायालय भवन, बस स्टैंड, गीता भवन, सब्जी मंडी और अन्य बुनियादी सुविधाओं का विकास शामिल था। लेकिन अनूपपुर आज भी उन वादों को अमलीजामा पहनता देखने को तरस रहा है।
अब सवाल यह है कि कब तक अनूपपुर इंतजार करता रहेगा? और इन परियोजनाओं पर अधिकारियों और नेताओं की चुप्पी आखिर क्यों बनी हुई है?
अधूरे विकास कार्य कौन लगा रहा ग्रहण?
अनूपपुर के नगर पालिका क्षेत्र में विकास कार्यों की स्थिति एक ग़ुमशुदा रिपोर्ट की तरह हो गई है— सब जानते हैं कि होना चाहिए था, लेकिन हुआ नहीं।
गीता भवन बस स्टैंड योजना बनी थी कि नया बस स्टैंड बनेगा, सुविधाएँ सुधरेंगी, यात्रियों को आराम मिलेगा। लेकिन हकीकत यह है कि बसें अब भी धूल उड़ाती हैं, यात्रियों को बैठने की जगह नहीं मिलती, और अनियमित संचालन से अव्यवस्था बनी रहती है। रिंग रोड बाई पास यह एक स्वप्न भर है भारी वाहनों का शहर के बीच मार्ग से चलना इसकी अलग ही कहानी है।
सब्जी मंडी घोषणा के अनुसार व्यापारियों और ग्राहकों के लिए व्यवस्थित मंडी बनने वाली थी। आज भी दुकानदार सड़क किनारे बैठकर अपनी रोज़ी-रोटी चलाने को मजबूर हैं, और बारिश में पूरा इलाका कीचड़ और जलभराव में तब्दील हो जाता है।
नवीन न्यायालय भवन: न्याय की देवी के लिए भवन का सपना दिखाया गया, लेकिन वो आज भी कागजों में कैद है। कोर्ट परिसर में जगह की समस्या है, लेकिन प्रशासनिक सुस्ती और राजनीति की जटिलताओं ने इस योजना को अटका दिया है। राजनीति का शिकारी कौन?
अनूपपुर में विकास कार्यों में बाधा डालने वाले कुछ “शिकारी” हैं, जो राजनीति के जंगल में विकास को अपना शिकार बना चुके हैं। ये शिकारी कौन हैं?मौन नेताओं की जमात
जो चुनावों में भाषणों की गंगा बहाते हैं, लेकिन विकास के लिए दो शब्द भी नहीं बोलते। वे जनता को सिर्फ वादों की चासनी चखाते हैं, मगर जब नींव रखने की बारी आती है, तो गायब हो जाते हैं।प्रशासनिक सुस्ती के खिलाड़ी
इनका काम सिर्फ फाइलों को ठंडे बस्ते में डालकर बैठ जाना है। योजनाएँ पास तो होती हैं, लेकिन उनकी फाइलें “टेंडर प्रक्रिया,” “स्वीकृति,” और “बजटीय प्रावधान” जैसे बहानों में उलझकर धूल खाती रहती हैं। ठेकेदार-नेता गठजोड़
इन्हें विकास से कोई मतलब नहीं। मतलब है तो सिर्फ ठेके, कमीशन, और फंड के गोलमाल से। प्रोजेक्ट लटकते हैं, कार्य की गुणवत्ता गिरती है, और जनता वोट डालने के बाद पाँच साल तक इंतजार करती रह जाती है।
विकास बनाम राजनीति नेताओं का गिरता जनाधार
नेताओं के भाषण भले ही ऊँचे सुर में होते हों, लेकिन जनता का मूड अब नए राग में है।
हर चुनाव में एक ही वादा: अनूपपुर का विकास। लेकिन हकीकत में विकास नेताओं की भाषण पंक्तियों से आगे नहीं बढ़ता।
जनता में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। अब लोग समझने लगे हैं कि विकास सिर्फ कागजों में होता है, और ज़मीनी हकीकत आज भी पुराने ढर्रे पर ही चल रही है।
सोशल मीडिया ने पोल खोल दी है। लोग अब सवाल पूछ रहे हैं, वीडियो और फोटो शेयर कर रहे हैं, और नेताओं की जवाबदेही तय करने लगे हैं।
“अनूपपुर के विकास का पोस्टमॉर्टम”
एक गाँव के बुजुर्ग ने अपने पोते से पूछा—
“बेटा, अनूपपुर में विकास कब आएगा?”
पोते ने मोबाइल निकाला और गूगल सर्च किया—
“विकास अभी भी लापता है!”
अनूपपुर का विकास आज भी घोषणाओं और योजनाओं में फंसा हुआ है। जनता को सिर्फ “काम शुरू होगा,” “जल्द पूरा होगा” जैसे दिलासे ही मिले हैं। नेताओं का जनाधार लगातार खिसक रहा है, क्योंकि अब लोग सिर्फ वादे नहीं, काम देखना चाहते हैं।
अब अनूपपुर पूछ रहा है—
“हमें विकास कब मिलेगा?”
लेकिन जवाब में सिर्फ मौन ही सुनाई देता है!



Leave a Reply