
मध्यप्रदेश के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी का तीन दिवसीय अनूपपुर दौरा राजनीतिक चर्चा का केंद्र बना हुआ है। जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्रों – पुष्पराजगढ़, अनूपपुर, और कोतमा – में वे कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर संगठन विस्तार पर मंथन कर रहे हैं। लेकिन उनके इस दौरे का सबसे चर्चित क्षण तब आया, जब उन्होंने अमरकंटक में मां नर्मदा के उद्गम स्थल पर दर्शन किए और वहाँ स्थित एक रहस्यमयी प्रतिमा – ‘हाथी’ के नीचे से निकलने की प्राचीन परंपरा को निभाया। इस हाथी प्रतिमा की खासियत है मोटे से मोटा आदमी निकल जाता है और दुबला पतला आदमी भी फंस जाता है चाहे आदमी औरत कोई भी हो
जब जीतू पटवारी ने दी शिवराज-मोहन यादव को चुनौती
इस यात्रा के दौरान, जीतू पटवारी ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को ‘हाथी की परीक्षा’ देने की खुली चुनौती दी। उन्होंने अपने X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर एक वीडियो साझा करते हुए कटाक्ष किया
“अगली बार जब भी अमरकंटक आएं, हाथी प्रतिमा के नीचे से निकलकर दिखाएं! जनसेवा का भ्रम फैलाने वालों के, पाप और पुण्य का निर्णय मां नर्मदा करती है
उनका यह बयान न केवल राजनीतिक गलियारों में गूंज उठा, बल्कि श्रद्धालुओं और धार्मिक मान्यता रखने वालों के बीच भी गहरी उत्सुकता पैदा कर गया। आखिर यह ‘हाथी प्रतिमा’ क्या है? क्यों इसे पुण्य-पाप से जोड़ा जाता है? और यह किस ऐतिहासिक कालखंड का हिस्सा है?
अमरकंटक: पवित्र नगरी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
अमरकंटक, जिसे ‘तीर्थराज’ भी कहा जाता है, माँ नर्मदा का उद्गम स्थल है। यह स्थान हज़ारों वर्षों से तपस्वियों, योगियों और तीर्थयात्रियों का प्रिय स्थल रहा है। यहाँ कपिल, भृगु, अगस्त्य और मार्कंडेय ऋषि ने कठोर तपस्या की थी।
इस पावन स्थल के हृदय में स्थित है ‘हाथी प्रतिमा’, जिसे लेकर एक अद्भुत मान्यता प्रचलित है –

हाथी की रहस्यमयी परीक्षा पापी और पुण्यात्मा की कसौटी
अमरकंटक में स्थित यह प्राचीन पत्थर का हाथी एक विशेष धार्मिक मान्यता से जुड़ा है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति इस हाथी के पेट के नीचे से बिना अटकाव के पार हो जाता है, तो वह पुण्यात्मा माना जाता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति रुक जाता है या अटक जाता है, तो यह संकेत माना जाता है कि उसने अपने जीवन में कोई बड़ा पाप किया है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार –
सच्चे मन वाला व्यक्ति आसानी से इस हाथी के नीचे से निकल जाता है।
पापी व्यक्ति इस रास्ते में कहीं न कहीं अटक जाता है।
यह परंपरा अनगिनत श्रद्धालुओं द्वारा सदियों से निभाई जाती रही है। ऐसे में जब जीतू पटवारी ने इस प्राचीन मान्यता के साथ राजनीति को जोड़ दिया, तो यह विषय राजनीति, धर्म, और आस्था के त्रिकोण में जाकर और अधिक रोचक हो गया।
इस हाथी प्रतिमा का निर्माण कब हुआ?
इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, यह हाथी प्रतिमा मध्यकालीन भारत की अद्भुत मूर्तिकला का उदाहरण है। संभवतः इसे कलचुरी राजाओं (10वीं-12वीं शताब्दी) के शासनकाल में बनाया गया था।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह हाथी गुप्तकालीन भी हो सकता है, क्योंकि इस प्रकार की विशाल प्रतिमाएँ गुप्त वंश के दौरान मंदिरों के प्रवेश द्वारों पर लगाई जाती थीं। इसका स्थापत्य शैव, वैष्णव और लोक-परंपराओं का मिश्रण दर्शाता है।
किंवदंतियों में यह भी कहा जाता है कि
इस हाथी को स्वयं देवताओं ने बनाया था ताकि यह पुण्य और पाप की परीक्षा ले सके।
यह किसी चमत्कारी संत की तपस्या का परिणाम है, जिन्होंने माँ नर्मदा से एक प्रत्यक्ष प्रमाण मांगा था कि कौन व्यक्ति वास्तव में धर्म के मार्ग पर चल रहा है।
राजनीति, धर्म और आस्था का संगम
राजनीति में अक्सर धर्म और आस्था के प्रतीकों का प्रयोग किया जाता रहा है। किंतु जीतू पटवारी ने इस धार्मिक परंपरा को राजनीतिक चुनौती में बदल दिया। उनका यह कहना कि शिवराज और मोहन यादव ‘हाथी की परीक्षा’ दें, निश्चित रूप से एक बड़ा संकेत है कि राजनीतिक नैतिकता की कसौटी भी जनता के बीच इसी प्रकार लगाई जानी चाहिए।
यह घटना अमरकंटक को न केवल धार्मिक बल्कि राजनीतिक पटल पर भी महत्वपूर्ण बना रही है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इसे विश्वस्तरीय आकर्षण के रूप में विकसित करने की योजनाएँ चल रही हैं, लेकिन क्या यह स्थान अपनी अद्भुत पौराणिकता को बनाए रख पाएगा?

हाथी प्रतिमा: पाप और पुण्य का अंतिम निर्णय?
इस कथा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि –
क्या वास्तव में यह हाथी प्रतिमा मनुष्य के पुण्य और पाप को पहचान सकती है?
क्या यह धार्मिक आस्था का विषय मात्र है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक तर्क भी हो सकता है?
क्या जीतू पटवारी की यह चुनौती भारतीय राजनीति में नैतिकता और ईमानदारी की कसौटी के रूप में देखी जा सकती है?
धर्म, आस्था और राजनीति के इस त्रिकोण में अमरकंटक का हाथी अब केवल एक ऐतिहासिक मूर्ति नहीं रह गया, बल्कि यह राजनीतिक शुचिता और धार्मिक आस्था की परीक्षा का प्रतीक बन गया है।
क्या शिवराज और मोहन यादव इस परीक्षा को स्वीकार करेंगे? या यह केवल राजनीति का एक नया दांव मात्र है?
यह देखने वाली बात होगी!



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