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मध्य प्रदेश भाजपा जिला अध्यक्षों की सूची जारी करने में देरी, विवादों पर दूसरे दिन भी मंथन जारी
भाजपा के नए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर पार्टी में माथापच्ची का दौर बुधवार को भी जारी रहा। इस मुद्दे पर दिल्ली में राष्ट्रीय और प्रदेश संगठन के वरिष्ठ नेताओं के बीच गहन विचार-विमर्श हुआ।
विवादित जिलों पर चर्चा का केंद्र बिंदु
बैठक में विवादित जिलों के नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद ने बैठक में भाग लिया। इन वरिष्ठ नेताओं ने जिला अध्यक्षों के चयन में आ रही बाधाओं को हल करने की कोशिश की।
सूत्रों का कहना है कि विवादित जिलों में सामंजस्य बनाने की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है। कुछ नामों पर सहमति नहीं बन पाने के कारण सूची जारी करने में देरी हो रही है। राष्ट्रीय संगठन की ओर से स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि यह मुद्दा जल्द से जल्द सुलझाया जाए ताकि पार्टी के आगामी चुनावी अभियान में कोई बाधा न आए।
बैठक में क्या हुआ?
बैठक के दौरान यह साफ हुआ कि पार्टी संगठन को विवादों से बचाने के लिए सभी जिलों की सूची एक साथ जारी की जाएगी। हालांकि, अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि प्रदेश नेतृत्व और राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच कुछ विवादित नामों को लेकर असहमति है।
संगठनात्मक जिलों की संख्या और रणनीति
भाजपा के पास मध्य प्रदेश में कुल 62 संगठनात्मक जिले हैं। इनमें से कई जिलों में स्थानीय स्तर पर गुटबाजी और सिफारिशों के चलते नेतृत्व के चयन में मुश्किलें आईं। यह गुटबाजी संगठन के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, खासकर चुनावी तैयारियों के इस महत्वपूर्ण दौर में।
गुरुवार को सूची जारी होने के आसार
संगठन की बैठक के बाद यह तय किया गया है कि गुरुवार को जिला अध्यक्षों की सूची जारी की जाएगी। हालांकि, सूत्रों ने यह भी संकेत दिया है कि अंतिम सूची में कुछ नामों को लेकर असहमति अब भी बनी हुई है। यदि यह विवाद हल नहीं होता, तो सूची जारी होने में और देरी हो सकती है।
आखिरी मिनट तक सस्पेंस बरकरार
बैठक के परिणाम को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं के बीच उत्सुकता और बेचैनी बनी हुई है। कई नेताओं ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, जिससे सस्पेंस और गहराता जा रहा है।
क्या विवाद खत्म होगा?
अब सवाल यह है कि क्या गुरुवार को वाकई जिला अध्यक्षों की सूची सामने आएगी, या फिर पार्टी को एक और दौर के मंथन में जाना होगा। विवादित जिलों के नामों और पार्टी के अंतरिक समीकरणों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि भाजपा के लिए यह फैसला आसान नहीं होने वाला।
पार्टी कार्यकर्ताओं और राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि गुरुवार को सूची जारी होने के बाद क्या यह विवाद थमेगा, या फिर संगठन के भीतर नई चुनौतियां उभरेंगी।
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