
पाकिस्तान का मिसाइल कार्यक्रम एक ऐसा हास्यास्पद प्रहसन है, जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति और घरेलू प्रशासन की असफलताओं पर पर्दा डालने का साधन बन गया है। जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन और शिक्षा के विस्तार जैसे गंभीर मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, पाकिस्तान गर्व से अपने ‘गजनवी’ और ‘शाहीन’ मिसाइलों की रेंज बढ़ाने में लगा है।मिसाइलों में लिपटा राष्ट्रीय गौरव
पाकिस्तान ने मिसाइल कार्यक्रम को राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बना दिया है, मानो यह एक जादुई औषधि हो, जो हर समस्या का समाधान कर सकती है। बेरोजगारी बढ़ रही है? एक नई मिसाइल लॉन्च कर दो। आर्थिक संकट? और मिसाइलें बनाओ। जनता को पानी, बिजली और भोजन चाहिए?
सेना, जो देश की सबसे प्रभावशाली संस्था है, यह सुनिश्चित करती है कि मिसाइलों की चमक के आगे भूखी जनता का धुंधलापन न दिखे। आखिर, पेट भरे या न भरे, गर्व तो पेट्रोल के साथ भी जल सकता है।
भारत के साथ प्रतिद्वंद्विता हम न सुधरेंगे
पाकिस्तान इस मानसिकता में फंसा हुआ है कि अगर भारत ने एक नई मिसाइल बनाई, तो हमें दो बनानी चाहिए। पाकिस्तान द्वारा
कश्मीर के नाम पर हर बार जनता से “राष्ट्रवाद” का कर वसूला जाता है, और विकास की जगह हथियारों का भंडार भरा जाता है।राष्ट्रीय सुरक्षा या सामूहिक आत्मधोखा?
पाकिस्तान अपनी आंतरिक समस्याओं को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के बहाने छिपाने में माहिर है।
शिक्षा की हालत यह है कि बच्चे स्कूल में नहीं, बल्कि मदरसों में ‘भविष्य के मिसाइल इंजीनियर’ बनने की ट्रेनिंग ले रहे हैं।
स्वास्थ्य का हाल यह है कि मिसाइल लॉन्च करते वक्त बगल की झुग्गियों में बच्चे कुपोषण से मर रहे होते हैं।
फिर भी, सरकार को लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह “बलिदान” आवश्यक है।
चीन का दोस्ताना, और जनता का पछतावा
चीन के कंधे पर बंदूक रखकर पाकिस्तान खुद को क्षेत्रीय शक्ति मानता है। पर असल में यह दोस्ती नहीं, बल्कि एकतरफा व्यापार है, जहां चीन पाकिस्तान को अपने हथियार बेचने के लिए प्रेरित करता है।
जब तक पाकिस्तान की जनता को एहसास होता है कि “चीनी दोस्त” असल में कर्जदाता है, तब तक सरकार एक और मिसाइल का उद्घाटन कर देती है।
राजनीति का ‘मिसाइल-थेरापी’ मॉडल
राजनीतिक नेता मिसाइल कार्यक्रम को एक “थेरापी” के रूप में उपयोग करते हैं।
जब जनता सड़कों पर प्रदर्शन करती है, तो नेता एक नया मिसाइल टेस्ट घोषित कर देते हैं।
जब विपक्ष बेरोजगारी और महंगाई पर सवाल उठाता है, तो सेना “राष्ट्रीय खतरे” का हवाला देकर उनकी आवाज दबा देती है।
राजनीतिक स्थिरता के लिए मिसाइलें अब “इलेक्शन प्रचार का साधन” बन चुकी हैं।
आर्थिक ‘प्रगति’ का नाटक
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अब ‘रॉकेट साइंस’ बन चुकी है—क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा मिसाइलों पर खर्च हो रहा है।
विदेशी कर्ज बढ़ता जा रहा है, पर सरकार का दावा है कि “मिसाइलों से पैसा कमाया जाएगा।”
निवेशक पाकिस्तान को छोड़कर बांग्लादेश और वियतनाम जा रहे हैं, क्योंकि “मिसाइल की छाया” में कोई भी व्यापार करना नहीं चाहता।विकास की अनदेखी पेट में रोटी या सिर पर परमाणु हथियार?’
शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और रोजगार के क्षेत्रों में पाकिस्तान की स्थिति हास्यास्पद है।
एक आम पाकिस्तानी के लिए, मिसाइलें उसके दैनिक जीवन का हिस्सा नहीं हैं।
उसके बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं, पर सरकार उन्हें “मिसाइल लांच” का तमाशा दिखा रही है।
स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में अस्पताल मिसाइल कारखानों की तरह दिखने लगे हैं अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया ‘धमकियां और प्रतिबंध’
पाकिस्तान को लगता है कि मिसाइलें उसकी संप्रभुता की पहचान हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि ये मिसाइलें उसे आर्थिक प्रतिबंधों और कूटनीतिक अलगाव की ओर धकेल रही हैं।
अमेरिका और यूरोप ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विकास और शांति के बिना पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय में सम्मानित स्थान नहीं पा सकता।
‘मिसाइलें सपने नहीं भरतीं’
पाकिस्तान के मिसाइल कार्यक्रम ने उसे विकास और समृद्धि के मार्ग से भटका दिया है। देश को यह समझने की जरूरत है कि मिसाइलें गर्व का प्रतीक हो सकती हैं, पर वे भूख, अशिक्षा और गरीबी को खत्म नहीं कर सकतीं।
“रोटी, कपड़ा और मकान” के बजाय “मिसाइल, युद्ध और आत्मघाती कर्ज” की प्राथमिकता एक विडंबना है।
“शायद पाकिस्तान को एक बार अपने मिसाइल साइलो से बाहर निकलकर भूखी जनता की तरफ भी देखना चाहिए।”






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