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उस्ताद जाकिर हुसैन महान तबला उस्ताद का अंतिम सफर, मीडिया और श्रद्धांजलियों का अनोखा मोड़

उस्ताद जाकिर हुसैन महान तबला उस्ताद का अंतिम सफर, मीडिया और श्रद्धांजलियों का अनोखा मोड़




भारत के मशहूर तबला उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन 16 दिसंबर 2024 को हुआ, लेकिन उनका अंतिम सफर एक अनूठी घटना बन गया। जैसे ही सोशल मीडिया पर उनकी मृत्यु की अफवाहें फैलने लगीं, कई श्रद्धांजलियां पोस्ट की गईं। हालांकि, उस्ताद जाकिर हुसैन के परिवार ने इन खबरों का खंडन किया, जिसके बाद कुछ पोस्ट डिलीट भी की गईं। लेकिन उस्ताद जाकिर हुसैन, जो अपनी विनम्रता और विशाल हृदय के लिए प्रसिद्ध थे, ने इसके बाद कुछ ऐसा किया, जिसे कभी नहीं भुलाया जाएगा।
उन्होंने मीडिया और सोशल मीडिया को सही साबित करने के लिए, निधन की खबरों के कई घंटे बाद, अंतिम समय तक जीवित रहते हुए देह त्याग किया। यह घटना उनके जीवन की महानता और उनके दिल की विशालता का प्रतीक बन गई। उस्ताद ने न केवल संगीत के क्षेत्र में अपार योगदान दिया, बल्कि उन्होंने अपने सम्मान और गरिमा के साथ समय की गति के साथ एक अद्वितीय पाठ भी दिया।
उस्ताद जाकिर हुसैन का जीवन परिचय
जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। वे भारतीय संगीत के सबसे बड़े तबला वादक थे और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी अद्भुत कला से सभी को मंत्रमुग्ध कर चुके थे। उनके पिता, उस्ताद अली अकबर खान, खुद एक प्रसिद्ध संगीतकार थे, और जाकिर हुसैन ने उनसे ही संगीत की कला में पहली शिक्षा प्राप्त की।
उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत बहुत कम उम्र में की थी। वे मात्र 7 साल की उम्र में तबला बजाने लगे थे और 11 वर्ष की उम्र में पहले मंच पर प्रदर्शन किया था। उनकी कला का जादू न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में फैला था। उन्हें ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’, ‘पद्मभूषण’ जैसे कई सम्मान प्राप्त हुए थे। उन्होंने विश्वभर में अनेक संगीत कार्यक्रमों में प्रदर्शन किया और भारतीय संगीत को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित किया।
उस्ताद जाकिर हुसैन की शैली और योगदान
जाकिर हुसैन की शैली अनूठी थी। उन्होंने भारतीय संगीत के पारंपरिक रूप को बनाए रखते हुए उसे नए आयाम दिए। उनकी तबला वादन की कला में न केवल तकनीकी कौशल था, बल्कि उसमें एक गहरी भावना भी छिपी होती थी, जो श्रोताओं के दिलों में गहरी जगह बनाती थी। वे भारतीय और पश्चिमी संगीत को जोड़ने में माहिर थे और कई अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ मिलकर काम किया था।
उनकी वादन शैली में कई रचनात्मक बदलाव और प्रयोग किए गए, जिन्होंने उन्हें एक सशक्त संगीतकार के रूप में स्थापित किया। जाकिर हुसैन का योगदान सिर्फ भारतीय संगीत तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत को पश्चिमी दुनिया में भी लोकप्रिय बनाया।
मीडिया और श्रद्धांजलियों का मोड़
सोशल मीडिया पर उनके निधन की अफवाहें फैलने के बाद, उनके परिवार ने इन खबरों का खंडन किया। इस दौरान कई पोस्ट डिलीट भी की गईं, लेकिन उस्ताद जाकिर हुसैन ने खुद को शांति से समर्पित करते हुए, बिना किसी हो-हल्ला के, अपनी देह को त्यागने का निर्णय लिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मीडिया का सच सामने आए और सबको यह स्पष्ट हो कि उन्होंने सही समय पर अपनी यात्रा समाप्त की। यह घटना उनके अद्वितीय दृष्टिकोण और मानवीय मूल्यों का प्रतीक है।
उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन भारतीय संगीत और कला के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वे न केवल एक महान कलाकार थे, बल्कि एक सशक्त इंसान थे, जिनकी जीवन की यात्रा ने हमें यह सिखाया कि समय के साथ समझदारी और महानता का समन्वय करना कितना महत्वपूर्ण है। उनकी कला और उनके मूल्य सदैव हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।

विनम्र श्रद्धांजलि

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