विश्व दिव्यांग दिवस, एक ऐसा दिन जिसे दुनिया भर में दिव्यांगजनों के अधिकारों और उनके योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। लेकिन अनूपपुर जिले में इस दिवस की परिभाषा शायद कुछ और ही है। यहां एक दिव्यांग शिक्षक, अनिल कुमार मिश्रा, अपनी मेहनत की कमाई के लिए विभागीय कार्यालयों के चक्कर काट रहा है। घूसखोरी का यह ऐसा घिनौना खेल है जिसमें इंसानियत की सारी सीमाएं लांघ दी गई हैं।
दिव्यांग शिक्षक का संघर्ष‘घूस दो, काम लो’ का फार्मूला
अनिल कुमार मिश्रा, जो शासकीय माध्यमिक विद्यालय कोदैली में शिक्षक हैं और स्कूल प्रबंधन समिति के सचिव भी हैं, ने विद्यालय भवन के मरम्मत कार्य और बाउंड्रीवाल निर्माण के लिए शासन द्वारा स्वीकृत 1,56,000 रुपये के आधार पर कार्य करवाया। लेकिन जब पैसों के भुगतान की बात आई, तो उपयंत्री मनोज वर्मा और सहायक यंत्री प्रदीप पांडे ने “खर्चा पानी” की मांग शुरू कर दी।
इन यंत्रियों का कहना है, “पंडित जी, सिस्टम में खर्चा देना पड़ता है, तभी फाइल आगे बढ़ेगी।” यह बात साबित करती है कि अनूपपुर में निर्माण कार्यों का मूल्यांकन घूस के बिना संभव ही नहीं है।
बाउंड्रीवाल का निर्माण और मनमाना मूल्यांकन
अनिल कुमार मिश्रा ने न केवल विद्यालय भवन का मरम्मत कार्य कराया, बल्कि स्कूल की चारदीवारी भी बनवाई। इसके लिए उन्होंने अपनी व्यक्तिगत मेहनत और ईमानदारी से काम किया। लेकिन अंतिम मूल्यांकन में 1,56,000 रुपये की स्वीकृत राशि के बदले केवल 1,27,081 रुपये का ही मूल्यांकन किया गया।
यह कमी केवल “कमीशन” न देने के कारण हुई। जो व्यक्ति अपनी ईमानदारी से काम कर रहा है, उसे सजा के रूप में उसके हिस्से के पैसे काट लिए जा रहे हैं।
घूस मांगने वालों की हरकतें ऐसी हैं कि इसे मानसिक विकलांगता का नाम दिया जाना चाहिए। क्या यह विडंबना नहीं है कि दिव्यांगों के अधिकारों की रक्षा के नाम पर ‘विश्व दिव्यांग दिवस’ मनाने वाले अधिकारी खुद दिव्यांगजनों के श्रम का शोषण कर रहे है सरकार को “विश्व मानसिक विकलांग दिवस” भी मनाना चाहिए ताकि ऐसे भ्रष्ट जनों लिए जागरूकता फैलाई जा सके।
“पैसा दो, फाइल लो” नीति घूसखोरी की जड़ें गहरी हैं
अनिल मिश्रा की शिकायतें कई बार जिला परियोजना समन्वयक तक पहुंचीं, लेकिन हर बार उनकी आवाज घूसखोरी की दीवारों में दबा दी गई।
पहली शिकायत: 20 सितंबर 2024
दूसरी शिकायत: 7 अक्टूबर 2024
तीसरी शिकायत: 5 नवंबर 2024
हर शिकायत का जवाब एक ही था: “पैसा दो, तभी भुगतान होगा।”
दिव्यांग शिक्षक की पीड़ा का आर्थिक गणित
अनिल मिश्रा के द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, उनके द्वारा कराए गए मरम्मत कार्य और बाउंड्रीवाल निर्माण के लिए कई बार पैसे की अदायगी रुकी रही।
पहली किस्त केवल 78,000 रुपये मिले।
दूसरी किस्त62,400 रुपये प्राप्त हुए, लेकिन उसमें भी 41,400 रुपये के बाद खाता होल्ड कर दिया गया।
कुल स्वीकृत राशि 1,56,000 रुपये
प्राप्त राशि केवल 1,28,000 रुपये
शोषण का चरम और समाधान की गुहार
अनिल मिश्रा ने अपने वेतन से निर्माण सामग्री और मजदूरी का भुगतान किया। उनके पास अब केवल 611 रुपये शेष हैं। क्या यही है दिव्यांगों के अधिकारों का सम्मान?
उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि उनके द्वारा कराए गए कार्यों का निष्पक्ष मूल्यांकन हो और उन्हें उनकी मेहनत की पूरी राशि मिले।
यदि घूस देना और लेना इतना सामान्य हो चुका है, तो क्यों न इसे आधिकारिक रूप से कानूनी दर्जा दे दिया जाए?
इनके लिए विभागीय “घूस काउंटर” सरकार को खुलवा देना चाहिए यंत्रियों के वेतन में “कमीशन बोनस” जोड़ा जाना चाहिए
इन्हें “घूस प्रमाणपत्र” जारी किए जाएं ताकि गर्व से कह सकें, “मैंने इस वर्ष 10 लाख की घूस ली है।”
मूल समस्या मानवता का अभाव
घूसखोरी केवल वित्तीय भ्रष्टाचार नहीं है यह मानवता का सबसे घिनौना रूप है। एक दिव्यांग शिक्षक, जो पहले से ही कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, को इस तरह के शोषण का शिकार बनाया जाना प्रशासनिक व्यवस्था की नाकामी को दर्शाता है।
क्या सच में “दिव्यांग दिवस” का कोई महत्व है?
अनूपपुर का यह मामला केवल एक दिव्यांग शिक्षक की पीड़ा नहीं है; यह पूरे समाज के लिए एक दर्पण है। दिव्यांग दिवस पर भाषण देने वाले अधिकारी क्या कभी इस शिक्षक की ओर देखेंगे? या फिर उनकी प्राथमिकता सिर्फ “घोषणाएं और प्रचार” ही रहेंगी?
यदि आज भी प्रशासन जागरूक नहीं होता, तो आने वाले दिनों में ऐसे शोषण के खिलाफ आवाजें और तेज होंगी। अनिल मिश्रा जैसे लोग न केवल अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, बल्कि एक भ्रष्ट व्यवस्था को भी चुनौती दे रहे हैं।
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Kailash Pandey
Anuppur (M.P.)
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