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भ्रष्टाचार के आरोपों में बंटा विश्वविद्यालय शिक्षकों के दो गुट आमने-सामने, अराजकता चरम पर

भ्रष्टाचार के आरोपों में बंटा विश्वविद्यालय शिक्षकों के दो गुट आमने-सामने, अराजकता चरम पर


शिक्षा के मंदिर या भ्रष्टाचार का केंद्र?’

विश्वविद्यालय के गेट पर प्रदर्शन और अराजकता

शिक्षा के मंदिर समझे जाने वाले इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि अब यह शिक्षण संस्थान कम और कुश्ती का अखाड़ा अधिक लगता है। कुलपति के कार्यकाल के अंतिम दौर में, नियुक्तियों में कथित भ्रष्टाचार को लेकर गुस्साए शिक्षक संघ और उनके विरोधियों के बीच हालात संघर्षपूर्ण हो गए। 18 नवंबर की सुबह विश्वविद्यालय परिसर में एक ओर शिक्षक संघ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा था, तो दूसरी ओर कुलपति समर्थक शिक्षकों का गुट इन्हें रोकने के लिए पूरे जोश के साथ भिड़ने तैयार खड़ा था।


भ्रष्टाचार के आरोप और शिकायतें

शिक्षक संघ ने कुलपति पर अंतिम समय में फर्जी नियुक्तियों को तेजी से अंजाम देने के आरोप लगाए। उनकी मांग थी कि नियुक्तियों में पारदर्शिता हो और सरकार द्वारा निर्धारित मानकों का पालन किया जाए। दूसरी ओर, कुलपति समर्थकों ने अपने विरोधियों पर ‘झूठा आरोप लगाने’ का ठप्पा लगाया। इसके बाद घटनाक्रम ऐसा बना कि विश्वविद्यालय के शांतिपूर्ण माहौल की बजाय यहां हिंसा और गाली-गलौच की गूंज सुनाई देने लगी।

भ्रष्टाचार के दस्तावेज और धमकियां

शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर भूमि नाथ त्रिपाठी समेत अन्य पदाधिकारियों ने उच्च अधिकारियों और सरकार को दर्जनों शिकायतें भेजी हैं। उनका दावा है कि रिक्रूटमेंट सेल में फर्जीवाड़ा और रोस्टर रजिस्टर से छेड़छाड़ करके कुछ चयनित उम्मीदवारों को वंचित किया जा रहा है। इस मुद्दे पर शिक्षक संघ के साथ हुए दुर्व्यवहार ने एक अलग ही विवाद खड़ा कर दिया है।

साजिश और सहनशीलता का प्रदर्शन

शिक्षक संघ ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ एक षड्यंत्र रचा गया था, जिसमें उन्हें उकसाने और फर्जी मुकदमों में फंसाने का प्रयास किया गया। हालांकि, उन्होंने अपने धैर्य और संयम से इस साजिश को विफल कर दिया। यह भी आरोप है कि प्रशासनिक अधिकारियों ने आंदोलन को दबाने के लिए धनबल और सत्ता का बेजा इस्तेमाल किया।

कार्यपरिषद का विवादित रवैया

कार्यपरिषद के सदस्यों पर ‘पावर का दुरुपयोग’ करने और प्रमोशन में धांधली के आरोप लगे हैं। विश्वविद्यालय में नियुक्तियों और पदोन्नतियों में गड़बड़ियों को लेकर कई शिकायतें लंबित हैं।



“शिक्षा के केंद्र को अगर राजनीति और भ्रष्टाचार से दूर न रखा जाए, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान छात्रों को होगा।” विश्वविद्यालय के मौजूदा हालात एक गंभीर सवाल उठाते क्या यह संस्थान अब भी छात्रों और शिक्षा की भलाई के लिए कार्य कर रहा है, या यह एक भ्रष्टाचार का केंद्र बन गया है शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता और नैतिकता की आवश्यकता होती है आने वाले समय में इस विवाद का हल क्या  होगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

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