“उमरिया में दस हाथियों की मौत पर उठे सवाल जिम्मेदारों को बचाने की कोशिश या सच्चाई की तलाश?”

“उमरिया में दस हाथियों की मौत पर उठे सवाल जिम्मेदारों को बचाने की कोशिश या सच्चाई की तलाश?”

बांधव गढ़ रिजर्व फॉरेस्ट सालखनिया बीट में हाथियों की मौत पर जिम्मेदार विभाग और अधिकारी अपनी भूमिका से बचने का प्रयास कर सकते हैं। यह भी संभव है कि जांच को किसी एक बिंदु पर केंद्रित कर असली दोषियों को बचाने की कोशिश की जाए। यहां संभावित पक्ष जिनकी जवाबदेही पर सवाल उठ सकते है ।



वन विभाग के अधिकारी वन्यजीव सुरक्षा के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार होते हैं। यदि इस घटना में विभाग की कोई लापरवाही सामने आती है, तो अधिकारी इसे नजरअंदाज करने का प्रयास कर सकते हैं। वे यह दावा कर सकते हैं कि उन्होंने सभी जरूरी कदम उठाए थे और यह एक “दुर्भाग्यपूर्ण” घटना है।

उच्च अधिकारी जांच में विभागीय गलतियों को छुपाने के लिए रिपोर्ट में हेरफेर कर सकते हैं या जांच को धीमा कर सकते हैं ताकि असली मुद्दे पर से ध्यान हटाया जा सके।




अगर यह पाया जाता है कि फसल में इस्तेमाल हुए रसायनों की वजह से हाथियों की मौत हुई है, तो कृषि विभाग और स्थानीय प्रशासन पर सवाल उठ सकते हैं कि उन्होंने किसानों को वन्यजीव सुरक्षा के प्रति जागरूक क्यों नहीं किया। इसके बचाव में यह कहा जा सकता है कि किसानों के पास रसायनों का उपयोग करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।


ऐसी घटनाओं में राजनीतिक दबाव भी काम करता है। अगर किसी राजनेता या प्रभावशाली व्यक्ति का सीधा या परोक्ष संबंध इस घटना से जुड़ा हुआ पाया जाता है, तो जांच को मोड़ने या धीमा करने की कोशिश हो सकती है। ये लोग अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर असली मुद्दों को छिपा सकते हैं।


जांच समितियों का गठन केवल मामले को शांत करने के लिए किया जाता है। ऐसी समितियां अक्सर निष्पक्ष जांच से बचती हैं और किसी न किसी स्तर पर गड़बड़ी या लापरवाही को नजरअंदाज कर देती हैं। जांच में देरी, सबूतों का अभाव और बारीकी से न जांचने जैसे कारण भी दोषियों को बचाने का तरीका बन सकते हैं।



उच्च स्तरीय अधिकारी अपनी नीति का बचाव करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के पक्ष में बयान दे सकते हैं, यह कहते हुए कि यह एक असामान्य घटना थी और भविष्य में इसे रोकने के लिए कदम उठाए जाएंगे। इस प्रकार असल दोषियों से जिम्मेदारी हटा दी जाती है, और सुधार के बजाय वादे ही रह जाते हैं।


पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भी  दबाव डालकर इसे प्रभावित किया जा सकता है। अगर रिपोर्ट में यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि मौत प्राकृतिक कारणों से हुई, तो असली दोषियों को बचाने का एक मजबूत आधार तैयार किया जा सकता है।



वन्यजीव संरक्षण के लिए वन विभाग का नियमित निगरानी तंत्र होना चाहिए। यदि इसे लेकर अधिकारियों पर कोई सवाल उठते हैं, तो वे यह दावा कर सकते हैं कि उनके पास निगरानी के लिए पर्याप्त संसाधन और बजट नहीं था। यह तर्क देकर वे खुद को दोषमुक्त करने की कोशिश कर सकते हैं।



किसानों का कहना होता है कि वे अपनी फसल की सुरक्षा के लिए ही रसायनों का उपयोग करते हैं। वे इसे अपनी मजबूरी बताकर बचाव कर सकते हैं, और यह तर्क दिया जा सकता है कि इस पर प्रशासन का नियंत्रण नहीं था

यहां प्रमुख सवाल यह है कि मामले की जांच कितनी ईमानदारी से की जाएगी और क्या असल दोषियों को बचाने के लिए विभिन्न पक्ष अपनी भूमिका छुपाने की कोशिश करेंगे। यह आवश्यक है कि जांच पारदर्शिता के साथ हो और उच्चस्तरीय निगरानी में पूरी ईमानदारी के साथ दोषियों की जिम्मेदारी तय की जाए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।

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