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दशहरा पर्व और नीलकंठ पक्षी का संबंध

दशहरा पर्व और नीलकंठ पक्षी का संबंध



दशहरा पर्व, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसे रावण के वध के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और उनके नौ रूपों की आराधना की जाती है।

नीलकंठ पक्षी का महत्व

नीलकंठ (जिसे “ब्लू थ्रोटेड बर्ड” भी कहा जाता है) पक्षी भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखता है। इसे भगवान शिव का प्रिय पक्षी माना जाता है। किंवदंतियों के अनुसार, जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान विष का पान किया था, तो उन्होंने अपने कंठ में उसे धारण कर लिया था, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। इसीलिए इसे नीलकंठ कहा जाता है।

दशहरा पर नीलकंठ देखने का महत्व

शुभ संकेत यह माना जाता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ का दर्शन करना शुभ होता है। इसे देखने से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है। यह विशेष रूप से एक अच्छे संकेत के रूप में देखा जाता है, जो नए आरंभ और सकारात्मकता का प्रतीक है।
भगवान शिव की कृपा नीलकंठ के दर्शन को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है। ऐसा मानना है कि जो लोग नीलकंठ का दर्शन करते हैं, उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है।


सामाजिक और धार्मिक जुड़ाव नीलकंठ का दर्शन सिर्फ एक व्यक्तिगत अनुभव नहीं है, बल्कि यह समाज में धार्मिकता और सांस्कृतिक जुड़ाव का भी प्रतीक है। लोग इसे एक साथ देखने और इसकी पूजा करने के लिए इकट्ठा होते हैं।




दशहरा पर्व और नीलकंठ पक्षी के बीच का यह संबंध भारतीय संस्कृति में गहराई से बसा हुआ है। यह दोनों ही प्रतीकों के माध्यम से बुराई पर अच्छाई की जीत और सकारात्मकता का संदेश फैलाते हैं। नीलकंठ का दर्शन इस दिन को और भी खास बना देता है, क्योंकि यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सुख, समृद्धि और भगवान शिव की कृपा का भी संकेत है।

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