गूगल इंटरनेट पर सामग्री फ़िल्टरिंग जिसमें एक कंप्यूटर स्क्रीन पर प्रतिबंधित सामग्री का चेतावनी संदेश क्रॉस-आउट दस्तावेज़ और टूटी हुई चेन जैसी संकेतित वस्तुएं सेंसरशिप हैं। सेंसरशिप और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के बीच संतुलन को बनाए रखता है
“न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी” कहावत है, जिसका अर्थ है कि यदि समस्या के स्रोत को ही हटा दिया जाए, तो समस्या कभी उत्पन्न ही नहीं होगी। यह कहावत उन स्थितियों में उपयोग की जाती है जहाँ समस्या से बचने के लिए उस चीज़ को ही समाप्त कर दिया जाता है जो समस्या पैदा कर सकती है। इसे एक प्रकार की निवारक रणनीति के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ संभावित खतरे का स्रोत ही समाप्त कर दिया जाता है ताकि भविष्य में उससे जुड़ी किसी भी तरह की जटिलताओं से बचा जा सके। अगर हम इसे “गूगल” जैसे आधुनिक संदर्भों की बात करें यह कहावत कई तरह से लागू होती में जब बात आती है इंटरनेट की सुरक्षा, गोपनीयता और कंटेंट मॉडरेशन की।
इंटरनेट और जानकारी का युग
यह सूचना और ज्ञान का प्रमुख स्रोत बन चुका है, जिससे लोग अपने दैनिक जीवन की बहुत सी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। हालांकि, इंटरनेट पर सही जानकारी तक पहुँचाने के साथ-साथ, गूगल को यह चुनौती भी होती है कि वह किस प्रकार की सामग्री को अपने प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराए। इंटरनेट पर कई प्रकार की जानकारी होती है – अच्छी, बुरी, गलत, सही, वैध, अवैध, आदि। ऐसे में गूगल और अन्य खोज इंजनों पर जिम्मेदारी आती है कि वे सामग्री को फ़िल्टर करें ताकि यूजर्स को गलत जानकारी न मिले।
गलत सामग्री का जोखिम
इंटरनेट पर बहुत सी सामग्री अवैध होती है।
अश्लील सामग्री
हिंसा भड़काने वाली सामग्री
अफवाहें और फर्जी खबरें (Fake News)
हैकिंग और साइबर अपराध से जुड़ी जानकारी
संवेदनशील राजनीतिक या धार्मिक सामग्री जो सामाजिक सौहार्द बिगाड़ देती हैं
बाल शोषण सामग्री
व्यक्तिगत डेटा की चोरी या उसका गलत उपयोग
गलत सामग्री को रोकने के लिए गूगल जैसी कंपनियाँ अक्सर अपनी सेवाओं पर प्रतिबंध लगाती हैं और सुनिश्चित करती हैं कि यह सामग्री उपयोगकर्ताओं तक न पहुँचे।
कंटेंट मॉडरेशन और फ़िल्टरिंग
गूगल और अन्य टेक कंपनियाँ कंटेंट मॉडरेशन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का उपयोग करती हैं। ये तकनीकें स्वचालित रूप से संदिग्ध सामग्री का पता लगाने में सक्षम हैं और उसे फ़िल्टर या ब्लॉक कर देती हैं। इसका उद्देश्य यह है कि उपयोगकर्ता के अनुभव को सुरक्षित और उपयोगी बनाया जा सके। इस संदर्भ में कहावत “न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी” यह इंगित करती है कि यदि इस तरह की सामग्री को प्लेटफ़ॉर्म पर आने ही न दिया जाए, तो समस्याएँ पैदा ही नहीं होंगी।
गूगल के कंटेंट मॉडरेशन के मुख्य कार्य
फिल्टरिंग और सेंसरशिप गूगल के पास विशेष एल्गोरिदम होते हैं जो आपत्तिजनक शब्दों, चित्रों, या वीडियो को पहचानने और उन्हें हटा देने में सक्षम होते हैं। यदि कोई उपयोगकर्ता किसी ऐसी सामग्री को खोजने की कोशिश करता है जो अवैध या अनुचित हो, तो गूगल उसे रोक सकता है।
रेगुलेटरी कम्प्लायंस (नियमों का पालन) कई देशों में सरकारें भी इंटरनेट पर मौजूद सामग्री को नियंत्रित करती हैं। उदाहरण के लिए, भारत में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत सरकार और इंटरनेट सेवा प्रदाता कुछ खास सामग्री पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। इसका मतलब यह है कि गूगल को भी कानूनी नियमों का पालन करना पड़ता है और सरकार द्वारा निर्धारित किए गए नियमों के अनुसार, कुछ सामग्री को ब्लॉक करना होता है।
मैनुअल रिपोर्टिंग और समीक्षा उपयोगकर्ताओं को भी यह अधिकार होता है कि यदि उन्हें कोई सामग्री आपत्तिजनक लगती है, तो वे उसे रिपोर्ट कर सकते हैं। गूगल की टीम उस रिपोर्ट की मैन्युअल समीक्षा करती है और अगर आवश्यक हो तो उसे हटा देती है। यह तरीका भी “न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी” की नीति का हिस्सा हो सकता है, जहाँ किसी भी प्रकार की संभावित समस्या को तुरंत हटा दिया जाता है।
खुद की निगरानी गूगल अपने प्लेटफॉर्म्स पर खुद भी मॉनिटरिंग करता है ताकि उपयोगकर्ताओं को सुरक्षित और भरोसेमंद अनुभव प्रदान कर सके। यह प्रक्रिया स्वचालित रूप से होती है और इसमें आपत्तिजनक सामग्री को रोकने के लिए नियमित स्कैनिंग शामिल होती है।
गूगल की चुनौती सेंसरशिप और फ्री स्पीच
हालांकि यह महत्वपूर्ण है कि आपत्तिजनक और अवैध सामग्री को प्लेटफॉर्म से हटाया जाए, लेकिन इसमें कई बार यह चुनौती सामने आती है कि सेंसरशिप के दौरान फ्री स्पीच (स्वतंत्र अभिव्यक्ति) का अधिकार भी प्रभावित हो सकता है।
गूगल को अक्सर इस संतुलन को बनाए रखने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जब यह कहावत “न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी” लागू की जाती है, तो कभी-कभी वह बांस भी कट सकता है, जिसे बजने देना चाहिए। उदाहरण के लिए, कोई राजनीतिक या सामाजिक टिप्पणी जो किसी के लिए विवादास्पद हो सकती है, लेकिन उस पर विचार करना भी जरूरी हो, वह भी अवरोधित हो सकती है।
सेंसरशिप के कुछ संभावित नुकसान
स्वतंत्र अभिव्यक्ति का हनन: कई बार जो सामग्री सेंसर की जाती है, वह उपयोगकर्ताओं के विचारों को दबा देती है, भले ही वह अवैध न हो।
शैक्षिक और सांस्कृतिक सामग्री तक पहुंच में बाधा: कई बार शैक्षिक या सांस्कृतिक सामग्री भी प्रतिबंधित हो जाती है, अगर वह किसी विवादास्पद मुद्दे से संबंधित हो।
गलत जानकारी की पहचान में मुश्किल: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग सिस्टम्स में भी त्रुटियाँ हो सकती हैं, जिससे गलत जानकारी या फर्जी खबरों की पहचान में परेशानी हो सकती है।
अवांछनीय सामग्री को रोकने का भविष्य
गूगल और अन्य प्रौद्योगिकी कंपनियाँ लगातार अपने कंटेंट मॉडरेशन एल्गोरिदम को बेहतर बना रही हैं ताकि वे अवांछनीय सामग्री को जल्दी और सटीक रूप से पहचान सकें। भविष्य में, यह संभव है कि तकनीक इतनी उन्नत हो जाएगी कि यह न केवल सामग्री को पहचान सकेगी बल्कि उसे उचित संदर्भ में समझ भी पाएगी। इसका मतलब होगा कि सेंसरशिप अधिक सटीक और न्यायसंगत हो सकेगी।
कुछ नई तकनीकें जिनसे गूगल अपने मॉडरेशन में सुधार कर सकता है
डीप लर्निंग डीप लर्निंग के ज़रिए कंप्यूटर खुद ही यह सीख सकते हैं कि किस तरह की सामग्री आपत्तिजनक हो सकती है और किसे अनुमति दी जा सकती है।
स्वचालित संदर्भ विश्लेषण मशीनें न केवल शब्दों को बल्कि उनके संदर्भ को भी समझ सकेंगी। इससे सेंसरशिप की त्रुटियों में कमी आ सकती है।
यूज़र द्वारा नियंत्रित फ़िल्टरिंगभविष्य में उपयोगकर्ताओं को यह स्वतंत्रता हो सकती है कि वे स्वयं तय कर सकें कि किस प्रकार की सामग्री वे देखना चाहते हैं और किसे अवरुद्ध करना चाहते हैं।
कहावत “न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी” न केवल हमारी प्राचीन संस्कृति और सोच से जुड़ी है, बल्कि यह आज के डिजिटल युग में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब बात आती है इंटरनेट सुरक्षा और गूगल जैसी कंपनियों की जिम्मेदारियों की, तो यह कहावत विशेष रूप से प्रासंगिक हो जाती है। अवांछनीय सामग्री को प्लेटफार्म पर आने से रोकने के लिए उसे पहले ही समाप्त कर देना या उसे फ़िल्टर करना एक महत्वपूर्ण कदम है।
हालांकि, इसका सही संतुलन बनाए रखना आवश्यक है ताकि सेंसरशिप के नाम पर स्वतंत्र अभिव्यक्ति और जानकारी तक पहुँचने के अधिकार का हनन न हो। गूगल जैसी कंपनियाँ इस चुनौती का सामना कर रही हैं और आने वाले समय में उम्मीद की जा सकती है कि इस संतुलन को और अधिक बेहतर तरीके से स्थापित किया जाएगा।
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