
खड़गे ने उठाए चुनावी साजिश के सवाल एक देश एक चुनाव लोकतंत्र या केंद्र की रणनीति?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा चुनाव नियमों में बदलाव पर सवाल उठाना और इसे सरकार की सोची-समझी साजिश करार देना एक गहरी राजनीतिक चिंतन की मांग करता है। एक देश एक चुनाव का प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का महत्वाकांक्षी कदम है, जिसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सरल और सशक्त बनाने के रूप में प्रस्तुत किया गया है। हालांकि, विपक्ष इसे चुनाव आयोग (EC) की स्वायत्तता पर हमला और केंद्र सरकार की सत्ता-केंद्रित रणनीति के रूप में देख रहा है। EC की स्वायत्तता पर सवाल
खड़गे के अनुसार, चुनाव नियमों में बदलाव जैसे पोलिंग बूथ के फुटेज सार्वजनिक न करने का निर्णय चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है। यह कदम विपक्षी दलों को सीमित करने और सत्ताधारी दल को चुनावी प्रक्रिया में बढ़त दिलाने की साजिश के रूप में देखा जा रहा है।
एक देश एक चुनाव का प्रभाव
एक देश, एक चुनाव को जहां लागत कम करने और मतदान प्रक्रिया को एकीकृत करने का प्रयास बताया जा रहा है, वहीं यह छोटे और क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर खतरा भी बन सकता है। एक साथ चुनाव कराने से संसाधन-संपन्न राष्ट्रीय दलों को फायदा हो सकता है, जबकि क्षेत्रीय दलों के लिए अपनी आवाज उठाना और स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखना कठिन हो सकता है।
केंद्र सरकार का कहना है कि चुनावी प्रक्रिया में एकरूपता और पारदर्शिता लाने के लिए यह बदलाव जरूरी है। लेकिन खड़गे और अन्य विपक्षी नेता इसे “लोकतंत्र का केंद्रीकरण” मानते हैं। उनका तर्क है कि एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय विविधता और राज्यों के स्थानीय मुद्दों की अनदेखी हो सकती है।
विपक्ष इसे वोटिंग पैटर्न पर नियंत्रण के प्रयास के रूप में देख रहा है। यह संभावना जताई जा रही है कि एक देश, एक चुनाव मॉडल लागू होने से लोकसभा चुनाव के साथ राज्यों के चुनावी मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों में विलीन हो जाएंगे, जिससे सत्ताधारी दल की स्थिति मजबूत होगी।
पोलिंग बूथ के फुटेज सार्वजनिक न करना चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को कमजोर कर सकता है। खड़गे ने इसे चुनावी हेरफेर का एक साधन बताया है, जो लोकतांत्रिक मूल्य और जनता के भरोसे को चोट पहुंचा सकता है।
विपक्ष के अनुसार, “एक देश, एक चुनाव” का मॉडल भारतीय संघीय ढांचे के विपरीत है। अलग-अलग समय पर चुनाव होने से क्षेत्रीय दलों को अपना राजनीतिक दृष्टिकोण और कार्यशैली दिखाने का मौका मिलता है। खड़गे का बयान इस बात की पुष्टि करता है कि “एक देश, एक चुनाव” का विरोध केवल व्यावहारिक या आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और वैचारिक भी है
एक देश, एक चुनाव को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत होगी, जिसे राज्यसभा और विधानसभाओं में बहुमत के बिना पारित करना मुश्किल है।
विपक्षी एकता और जनता के बीच इस मॉडल को लेकर संदेह सरकार के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकट बन सकता है।
एक देश, एक चुनाव न केवल प्रशासनिक व्यवस्था को प्रभावित करेगा, बल्कि भारतीय राजनीति की दिशा में भी बदलाव लायेगा।



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