इजराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष एक जटिल और लंबे समय तक चला आ रहा मुद्दा है, जिसमें ऐतिहासिक, राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक कारक शामिल हैं। यहां इस संघर्ष की कहानी और इसके समाधान में बाधाओं का विश्लेषण प्रस्तुत है:
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
पुरानी जड़ें: इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष की जड़ें प्राचीन समय में जाती हैं, जब यह क्षेत्र विभिन्न साम्राज्यों के अधीन रहा। यहूदियों का दावा है कि यह भूमि उनकी ऐतिहासिक मातृभूमि है, जबकि अरबों का दावा है कि वे इस क्षेत्र में लंबे समय से निवास कर रहे हैं।
19वीं सदी का सिय़ोनिज़्म: 19वीं सदी में सिय़ोनिज़्म का उदय हुआ, जिसका उद्देश्य यहूदियों के लिए एक राष्ट्रीय घर बनाना था। यह आंदोलन यूरोप में यहूदियों के प्रति भेदभाव और उत्पीड़न के कारण जन्मा।
2. ब्रिटिश नियंत्रण और विभाजन
ब्रिटिश जनादेश: 1917 में, बैलफोर घोषणा के तहत ब्रिटेन ने यहूदियों के लिए एक राष्ट्रीय घर की स्थापना का समर्थन किया। इसके परिणामस्वरूप, यहूदियों की आबादी बढ़ी, जिससे स्थानीय अरबों के साथ तनाव बढ़ा।
1947 का विभाजन योजना: संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में फिलिस्तीन को दो राज्यों में विभाजित करने की योजना बनाई: एक यहूदी राज्य और एक अरब राज्य। अरब देशों ने इस योजना का विरोध किया और इसके परिणामस्वरूप 1948 में अरब-इजराइल युद्ध छिड़ गया।
3. 1948 का युद्ध और परिणाम
इजराइल की स्थापना: 14 मई 1948 को इजराइल ने स्वतंत्रता की घोषणा की। इसके बाद, पड़ोसी अरब देशों ने इजराइल पर आक्रमण किया, लेकिन इजराइल ने विजय प्राप्त की और अपने क्षेत्र का विस्तार किया। इस युद्ध के दौरान लाखों फिलिस्तीनियों को अपने घरों से भागना पड़ा, जिसे वे नाकबा (आपदा) के रूप में जानते हैं।
4. संघर्ष का विकास
1967 का युद्ध: इस युद्ध में इजराइल ने और अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, जिसमें गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, पूर्वी येरूशलेम और गोलान हाइट्स शामिल हैं। इसके बाद से फिलिस्तीनियों ने इन क्षेत्रों को अपने स्वतंत्र राज्य के रूप में देखना शुरू किया।
फिलिस्तीनी राष्ट्रीय आंदोलन: 1960 और 70 के दशक में, फिलिस्तीनी आंदोलन मजबूत हुआ, जिसमें पीएलओ (फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन) प्रमुखता से उभरा। इसके नेता यासिर अराफात ने फिलिस्तीनी स्वायत्तता की मांग की।
5. शांति प्रक्रिया और विफलता
1990 का शांति प्रयास: 1993 में ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें इजराइल और पीएलओ के बीच बातचीत का प्रारंभ हुआ। हालांकि, इस प्रक्रिया में कई बाधाएँ आईं, और शांति स्थायी नहीं हो सकी।
दूसरा इंटिफ़ादा: 2000 में दूसरी इंटिफ़ादा (फिलिस्तीनी विद्रोह) शुरू हुई, जिससे दोनों पक्षों के बीच हिंसा बढ़ गई। यह स्थिति आज भी जारी है।
6. वर्तमान स्थिति
गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक: गाजा पट्टी, जो हमास द्वारा नियंत्रित है, और वेस्ट बैंक, जो इजराइल के साथ राजनीतिक तनाव में है, फिलिस्तीनी लोगों के लिए अलग-अलग समस्याएं उत्पन्न कर रहे हैं। इजराइल ने गाजा में सुरक्षा कारणों से कई बार सैन्य कार्रवाई की है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: इस संघर्ष में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी विभाजित है। कुछ देशों ने इजराइल का समर्थन किया, जबकि अन्य ने फिलिस्तीनी अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाई।
7. समाधान में बाधाएँ
भूमि का सवाल: दोनों पक्षों के लिए ज़मीन का मुद्दा एक बड़ा विवाद बना हुआ है। इजराइल बस्तियों का निर्माण जारी रखता है, जबकि फिलिस्तीनी अपने लिए एक स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहे हैं।
सुरक्षा चिंताएँ: इजराइल की सुरक्षा चिंताएँ उसे सख्त नीतियों के लिए मजबूर करती हैं, जबकि फिलिस्तीनी अपने हक की मांग के लिए संघर्ष करते हैं।
राजनीतिक विभाजन: फिलिस्तीनी पक्ष में आंतरिक विभाजन (जैसे कि हमास और फतह) भी शांति वार्ता को जटिल बनाता है।
निष्कर्ष
इजराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष एक जटिल मुद्दा है, जिसमें कई ऐतिहासिक और आधुनिक कारक शामिल हैं। इसके समाधान के लिए एक गहन और स्थायी बातचीत की आवश्यकता है, जिसमें दोनों पक्षों की चिंताओं और अधिकारों का सम्मान किया जाए। बिना संवाद और समझ के, इस संघर्ष का हल ढूंढना बहुत कठिन है।
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Kailash Pandey
Anuppur (M.P.)
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