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पुत्र की पैरवी से पिता को मिला न्याय, 11 साल बाद फिर वर्दी में लौटे आरक्षक मिथिलेश पाण्डेय

पुत्र की पैरवी से पिता को मिला न्याय, 11 साल बाद फिर वर्दी में लौटे आरक्षक मिथिलेश पाण्डेय


पाण्डेय  परिवार में लौटी रौनक, न्याय की जीत और बेटे की दृढ़ता की मिसाल
अनूपपुर।
कभी वर्दी में गर्व से खड़ा एक पुलिस आरक्षक, फिर विभागीय जांच में घिरे मिथिलेश पाण्डेय और अब, 11 वर्षों बाद न्याय की जीत और पुत्र की अद्भुत पैरवी के बाद, फिर से वही वर्दी, वही सम्मान, और परिवार में लौटी वही पुरानी मुस्कान। यह कहानी है अनूपपुर जिले के जमुना कॉलरी निवासी आरक्षक मिथिलेश  पाण्डेय की, जिनकी सेवा बहाली की लड़ाई एक मिसाल बन गई—एक बेटे की अपने पिता के लिए लड़ाई, कानून के दायरे में रहकर न्याय की जीत

वर्ष 2013 में उमरिया थाना में पदस्थ पुलिस आरक्षक मिथिलेश  को आय से अधिक संपत्ति के एक प्रकरण में विभागीय जांच का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्हें सेवा से पृथक कर दिया गया। मिथिलेश  पाण्डेय ने कई बार पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों के समक्ष अपना पक्ष रखा, लेकिन हर बार उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया।
न्याय की तलाश में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
दिसंबर 2013 में आरक्षक पाण्डेय ने जबलपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई। कोर्ट से आदेश भी जारी हुआ, परंतु पुलिस विभाग ने उस पर गंभीरता नहीं दिखाई। वर्षों तक मामला कानूनी दांवपेंच में उलझा रहा।
बेटे की वकालत बनी पिता की आवाज़
वर्ष 2024 में मिथिलेश पाण्डेय के बेटे अभिषेक पाण्डेय ने कानून की डिग्री पूरी कर जबलपुर हाई कोर्ट में वकालत प्रारंभ की। पिता की पीड़ा को करीब से महसूस करने वाले अभिषेक ने पहला मुकदमा अपने पिता का ही उठाया।
माननीय न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की बेंच में पेश इस याचिका पर अभिषेक ने सशक्त पैरवी की। अपने पिता पर लगे हर आरोप का कानूनी आधार पर खंडन करते हुए उन्होंने न्यायालय को यह विश्वास दिलाया कि मिथिलेश  पाण्डेय के साथ अन्याय हुआ है।
फैसला जो बदल गया जीवन
17 मई 2024 को हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि मिथिलेश पांडे को पुनः पुलिस विभाग में बहाल किया जाए। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अनूपपुर के पुलिस अधीक्षक द्वारा 5 अप्रैल 2025 को उन्हें पुनः सेवा में पदस्थ किया गया, और उन्होंने जिला मुख्यालय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
माहौल हुआ भावुक, नगर में बजी बधाई की घंटियां
जब मिथिलेश  पाण्डेय वर्दी में एक बार फिर अपने घर लौटे, तो जमुना कॉलरी में जश्न का माहौल था। स्थानीय लोगों ने मिठाइयाँ बांटी, ढोल-नगाड़ों की थाप पर बधाई दी गई, और हर कोई इस जीत की कहानी को भावुकता से सुनता रहा। कई लोगों की आंखें नम हो गईं जब पिता और पुत्र एक-दूसरे को गले लगाकर भावुक हो उठे।
यह सिर्फ एक बहाली नहीं, बेटे के समर्पण की जीत है
यह घटना केवल एक सरकारी बहाली की नहीं, बल्कि उस बेटे की जीत है जिसने न्याय को अपना धर्म बनाया, और कानून को अपनी आवाज। अभिषेक  की यह पैरवी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है कि जब इरादे सच्चे हों, तो न्याय की राह चाहे जितनी भी लंबी क्यों न हो, मंज़िल अवश्य मिलती है।
मिथिलेश  पाण्डेय का केस खुद उनके बेटे ने लड़ा, जिसने हाल ही में वकालत शुरू की थी।
11 साल के लंबे इंतजार के बाद कोर्ट से मिला न्याय, परिवार में लौटी रौनक।
यह फैसला उन हजारों कर्मचारियों के लिए प्रेरणा बन सकता है, जो विभागीय अन्याय का शिकार होकर हिम्मत हार जाते हैं।

अभिषेक पाण्डेय ने अपने करियर का पहला केस अपने पिता के लिए लड़ा और जीता—यह अपने आप में  परिवार के लिए ऐतिहासिक क्षण है।
न्याय में देर हो सकती है, पर अंधेरा नहीं होता।
बेटे-बेटी अगर शिक्षा से सशक्त हों, तो वे माता-पिता की सबसे बड़ी ताकत बन सकते हैं।
विवेकपूर्ण और संवैधानिक मार्ग से लड़ाई लड़ी जाए, तो जीत निश्चित होती है।
आरक्षक मिथिलेश पाण्डेय  व उनके बेटे अभिषेक के साहस, परिश्रम और सच्चाई के बल पर पुनः जीवित हुई है। यह न केवल एक परिवार की जीत है, बल्कि न्याय व्यवस्था में विश्वास की भी पुनः स्थापना है। जमुना कॉलरी में जब वर्दी पहने  पाण्डेय जी मुस्कुराते हुए अपने पुराने मित्रों से मिले, तो सिर्फ एक आदमी नहीं—पूरा विश्वास फिर से जीवित हो उठा

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Kailash Pandey
Anuppur
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