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बेनीबारी स्वास्थ्य केंद्र में कलेक्टर की औचक दस्तक सात लापता कर्मी,स्वास्थ्य केंद्र या सरकारी विश्रामगृह?

बेनीबारी स्वास्थ्य केंद्र में कलेक्टर की औचक दस्तक सात लापता कर्मी,स्वास्थ्य केंद्र या सरकारी विश्रामगृह?



अनूपपुर, 

जिला अनूपपुर में स्वास्थ्य सेवाओं की असल तस्वीर उस समय सामने आई जब कलेक्टर श्री हर्षल पंचोली ने जनपद पंचायत पुष्पराजगढ़ के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बेनीबारी का अचानक निरीक्षण किया। यह निरीक्षण कम और एक रियलिटी शो अधिक प्रतीत हुआ, जहां पर्दे के पीछे की व्यवस्था उजागर हो गई।
औचक निरीक्षण के दौरान जब कलेक्टर अस्पताल के विभिन्न कक्षों—स्टॉक पंजी, दवाई कक्ष, ओपीडी, सर्जिकल वार्ड और जनरल वार्ड—में पहुंचे, तो स्वास्थ्य सेवाओं की हालत देखकर उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आईं। लेकिन असली ‘हॉरर शो’ तब शुरू हुआ जब पाया गया कि स्वास्थ्य केंद्र के सात कर्मचारी गायब हैं।
कलेक्टर ने कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को तत्काल आवश्यक कार्यवाही के निर्देश दिए। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कार्यवाही “क्लीनिक की दवाई” जैसी असरदार होती है या “वातानुकूलित कार्यालयी फाइलों” में ही सिमट कर रह जाती है।
निरीक्षण के दौरान कलेक्टर ने मरीजों से बातचीत कर वहां मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत जानी। मरीजों ने कुछ धीमे स्वर में, तो कुछ गहरी सांस लेते हुए, व्यवस्था की पोल खोल दी। कहीं दवाइयों की अनुपलब्धता, तो कहीं डॉक्टरों की अनुपस्थिति ने यह साबित किया कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य से ज्यादा ‘केंद्र’ का ही ध्यान रखा जा रहा है।

इस निरीक्षण में कलेक्टर के साथ पुलिस अधीक्षक श्री मोती उर रहमान, जिला पंचायत के सीईओ श्री तन्मय वशिष्ठ शर्मा, जनपद पंचायत पुष्पराजगढ़ के सीईओ श्री गणेश पांडेय तथा स्वास्थ्य विभाग का पूरा अमला मौजूद रहा। हालांकि जिनकी उपस्थिति सबसे ज़रूरी थी, वही अनुपस्थित मिले—स्वास्थ्य केंद्र के जिम्मेदार कर्मचारी।
“बीमार हैं हम”—अनूपपुर की सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर एक तीखी नजर
बेनीबारी की तस्वीर कोई अपवाद नहीं, बल्कि वह आईना है जिसमें पूरे जिले की चिकित्सा व्यवस्था का चेहरा साफ झलकता है। स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ की उपस्थिति अब उतनी ही दुर्लभ हो गई है जितनी गर्मियों में बारिश। डॉक्टरों की कुर्सियां अक्सर खाली होती हैं, और मरीज… वे हमेशा पंक्तियों में खड़े, इलाज की उम्मीद में टकटकी लगाए रहते हैं।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अब प्राथमिकता की सूची में कहीं पीछे छूट गए हैं। मरीज वहां इलाज कम, “भाग्य परीक्षा” अधिक देने जाते हैं। कहीं दवा नहीं, तो कहीं डॉक्टर नहीं। और जब दोनों मिल भी जाएं, तो मरीज के लिए समय नहीं।
कलेक्टर पंचोली के इस निरीक्षण ने उम्मीद की एक हल्की किरण जरूर जगाई है। पर क्या यह बदलाव का संकेत है या फिर महज़ एक दिखावटी कार्यवाही? यह सवाल आने वाले दिनों में जवाब मांगेगा।
बहरहाल, अगर स्वास्थ्य विभाग वाकई “स्वस्थ” होना चाहता है, तो बेनीबारी जैसे निरीक्षण रोज़ होने चाहिए—बिना सूचना, बिना तामझाम।

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Kailash Pandey
Anuppur
(M.P.)

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