अनूपपुर मध्य प्रदेश में पंचायत राज संस्थाओं की तीन स्तरीय प्रणाली है: ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत (ब्लॉक स्तरीय), और जिला पंचायत (जिला स्तरीय)। यह प्रणाली भारतीय संविधान के 73वें संशोधन के तहत स्थापित की गई है, जिसका मुख्य उद्देश्य स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाना और स्थानीय विकास में लोगों की भागीदारी को बढ़ाना है।
राज्य सरकार द्वारा पंचायत प्रतिनिधियों को कुछ वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं ताकि वे स्थानीय विकास के कार्यों का संचालन कर सकें। हम यहां मुख्य रूप से
1. जिला पंचायत और जनपद पंचायत के सदस्यों को मिलने वाला फंड:
(i) फंड की राशि:
जनपद पंचायत और जिला पंचायत के सदस्य को प्रतिवर्ष कितनी राशि मिलती है, यह राज्य की नीतियों और आवंटनों पर निर्भर करता है। आमतौर पर यह राशि विभिन्न स्रोतों से आती है:
राज्य वित्त आयोग से प्राप्त राशि: राज्य सरकार अपने वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार जिला और जनपद पंचायतों को आवंटन करती है। यह राशि पंचायतों के विकास कार्यों और उनकी योजना के लिए दी जाती है।
केंद्र सरकार की योजनाओं के तहत: विभिन्न केंद्रीय योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वच्छ भारत मिशन, मनरेगा आदि के तहत भी पंचायतों को फंड प्राप्त होता है।
विकास के लिए विशेष ग्रांट: कुछ योजनाओं के तहत राज्य सरकार विशेष ग्रांट प्रदान करती है जो गांवों के बुनियादी ढांचे के विकास, सड़क, पेयजल, बिजली और स्वच्छता जैसे कार्यों के लिए होती है।
सामान्य तौर पर, जिला और जनपद पंचायत सदस्यों को विकास कार्यों और पंचायत के संचालन के लिए कई करोड़ रुपये तक की राशि दी जा सकती है, लेकिन प्रत्येक सदस्य को व्यक्तिगत रूप से दी जाने वाली राशि निर्धारित चार से पांच लाख रुपए जनपद सदस्य के खाते में दी जाती है यह क्षेत्र विशेष की योजना के लिए आवंटन होता है।
अनूपपुर जिले में मिलने वाली राशि का सार्वजनिक तौर पर सोसल आडिट होना चाहिए।
(ii) फंड का उपयोग:
जिला और जनपद पंचायत सदस्य इस राशि का उपयोग निम्नलिखित कार्यों में करते हैं:
बुनियादी ढांचे का विकास: सड़कों, पुलों, जलापूर्ति प्रणाली, स्कूल भवनों, स्वास्थ्य केंद्रों आदि का निर्माण।
स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं में सुधार: पंचायत स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए।
कृषि और ग्रामीण विकास: किसानों के लिए सिंचाई सुविधाओं का विकास, कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना और ग्रामीण आजीविका के साधनों को बढ़ावा देना।
मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम): इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित करना और ग्रामीण बुनियादी ढांचे का निर्माण।
स्वच्छता और पेयजल प्रबंधन: स्वच्छ भारत मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता को बढ़ावा देना, शौचालय निर्माण और साफ-सुथरे वातावरण का निर्माण।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम: जिनके तहत ग्रामीण समाज के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाता है।
2. सदस्यों को मिलने वाली अन्य सुविधाएं:
(i) वेतन और भत्ते:
हालांकि जिला और जनपद पंचायत सदस्यों को सीधे वेतन या पेंशन का प्रावधान नहीं है, लेकिन कुछ भत्ते और भौतिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। इसमें बैठक भत्ता, यात्रा भत्ता आदि शामिल होते हैं।
(ii) अधिकार और सुविधाएं:
राजनीतिक अधिकार: पंचायत प्रतिनिधियों को सरकार से सीधे संवाद करने और अपने क्षेत्र के विकास के लिए नीति निर्माण में भागीदारी करने का अधिकार होता है।
विशेषाधिकार: जिला और जनपद पंचायत अध्यक्षों को राज्य सरकार के साथ कई योजनाओं के क्रियान्वयन और मॉनिटरिंग के लिए विशेषाधिकार दिए जाते हैं। इनका कार्यकाल आमतौर पर 5 वर्षों का होता है।
3. भ्रष्टाचार की संभावना:
जिला और जनपद पंचायतों को मिलने वाले फंड में भ्रष्टाचार की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके कई कारण हो सकते हैं:
(i) योजना के कार्यान्वयन में कमी:
कई बार पंचायत सदस्यों को आवंटित राशि का उपयोग निर्धारित परियोजनाओं में नहीं किया जाता। इसके कारण कई योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाता और फंड का दुरुपयोग हो जाता है।
(ii) निगरानी की कमी:
अक्सर यह देखा गया है कि निगरानी और ऑडिट प्रक्रिया कमजोर होने के कारण पंचायतों को दिए गए फंड का दुरुपयोग होता है। किसी भी गलत गतिविधि को रोकने के लिए मजबूत निरीक्षण और जांच की आवश्यकता होती है, जो कई बार पूरी तरह से लागू नहीं होती।
(iii) राजनीतिक दबाव:
जिला पंचायत और जनपद पंचायत सदस्यों पर कई बार राजनीतिक दबाव होता है, जिसके कारण वे फंड का गलत उपयोग करने के लिए मजबूर हो सकते हैं। कुछ सदस्य अपने राजनीतिक लाभ के लिए विकास कार्यों की बजाय व्यक्तिगत लाभ के लिए इस फंड का इस्तेमाल करते हैं।
(iv) जन जागरूकता की कमी:
ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। कई बार ग्रामीण लोग पंचायतों द्वारा किए गए खर्च के बारे में जानकारी नहीं रखते, जिससे पंचायत सदस्य इस फंड का गलत उपयोग कर सकते हैं।
4. भ्रष्टाचार रोकने के उपाय:
सख्त ऑडिट और निरीक्षण प्रक्रिया: पंचायतों को मिलने वाले फंड का नियमित ऑडिट होना चाहिए। इससे धन के दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
जन जागरूकता: ग्रामीणों को पंचायतों द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी दी जानी चाहिए ताकि वे यह समझ सकें कि उनके क्षेत्र में किस प्रकार का विकास हो रहा है।
सूचना का अधिकार (RTI): पंचायत सदस्यों से संबंधित सभी वित्तीय जानकारी को सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि कोई भी व्यक्ति इस फंड के उपयोग के बारे में पूछताछ कर सके।
शिक्षा और प्रशिक्षण: पंचायत सदस्यों को अच्छे प्रशासन और वित्तीय प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभा सकें।
आगे जिला पंचायत सदस्यों द्वारा किए गए फंड का उपयोग की चर्चा करेंगे।
निष्कर्ष:
मध्य प्रदेश में जिला और जनपद पंचायतों को राज्य और केंद्र सरकार से महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। इसका उद्देश्य ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन देना है, लेकिन यदि इसका सही तरीके से उपयोग न किया जाए तो यह भ्रष्टाचार का कारण बन सकता है। इस प्रकार की व्यवस्थाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सरकार और जनता दोनों की जिम्मेदारी है।
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