प्रदेश की टॉपर खुशी सिंह ने की आत्महत्या – कलेक्टर के बजाय टीचर बनने का सपना भी पूरा नहीं कर सकी

प्रदेश की टॉपर खुशी सिंह ने की आत्महत्या – कलेक्टर के बजाय टीचर बनने का सपना भी पूरा नहीं कर सकी

2020 की 12वीं टॉपर दिवंगता खुशी सिंह को आगे की पढ़ाई के लिए ना तो लैपटॉप मिला ना ही कोई स्कॉलरशिप , मेधावी छात्रा खुशी को प्रदेश सरकार के द्वारा उच्च शिक्षा का माहौल नहीं दे पाना आत्मघाती बना : अजय खरे


रीवा मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल परीक्षा 2020 की 12 वीं कक्षा कला संकाय में पूरे प्रदेश की टॉपर खुशी सिंह के आत्महत्या मामले में समता संपर्क अभियान ने प्रदेश सरकार पर अत्यंत गैर जिम्मेदाराना रवैये का दोषारोपण किया है। रविवार 29 सितंबर को समता संपर्क अभियान के आठ सदस्यीय दल ने लोकतंत्र सेनानी अजय खरे के नेतृत्व में  दिवंगता छात्रा खुशी सिंह के गांव चुनरी जाकर उनके दुखी परिवार के सदस्यों से मुलाकात करते हुए हार्दिक संवेदना व्यक्त की एवं सारी परिस्थितियों का अध्ययन किया।

टीम में समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक लोकतंत्र सेनानी अजय खरे के साथ लोकतंत्र सेनानी रामायण पटेल श्रवण प्रसाद नामदेव रामकृष्ण पटेल सामाजिक कार्यकर्ता शेषमणि शुक्ला मनसंतोष अशोक सोनी एवं सुरेंद्रनाथ माझी शामिल थे। अजय खरे ने बताया कि खुशी एक होनहार विलक्षण बुद्धि की छात्रा रही है। कोरोना काल 2020 में मध्य प्रदेश बोर्ड कला संकाय की टॉपर खुशी सिंह की अद्भुत प्रतिभा से रीवा जिला ही नहीं पूरे प्रदेश के लोगों को बड़ी उम्मीदें थीं। यूपीएससी पास करके कलेक्टर बनने वालों के भी आमतौर पर बोर्ड परीक्षा में इतने अच्छे नंबर नहीं होते जितने नंबर खुशी को मिले थे।

मध्यप्रदेश के रीवा जिला की त्योंथर तहसील अंतर्गत सोहागी थाना क्षेत्र के ग्राम चुनरी की रहने वाली खुशी सिंह आत्मजा सीमा सिंह एवं रमेश प्रताप सिंह परिहार ने जब पूरे प्रदेश में पहला स्थान प्राप्त किया तो उसका सपना कलेक्टर एस पी बनने की जगह एक शिक्षक बनने का था। वह शिक्षक बनकर गांव के बच्चों का भविष्य संवारना चाहती थी और उन्हे पढ़ा लिखाकर आगे ले जाना चाहती थी। उसका यह सपना आजकल के अन्य टॉपर बच्चों से एकदम अलग था। उसे 12वीं कक्षा टॉप करने पर कला संकाय में 500 में 486 नंबर मिले थे। सीमांत किसान परिवार की ऐसी लड़की जिसे कोचिंग की कोई सुविधा भी नहीं थी जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में रहकर इतने अधिक नंबर लाना बहुत बड़ी बात रही। खुशी का घर आज भी मिट्टी और खपरैल वाला है। परिवार के पास मात्र तीन बीघा जमीन है। पारिवारिक आय का अन्य कोई स्रोत नहीं है। घर के ठीक बगल से निकली नहर के पानी के ओवरफ्लो होने से उनका कच्चा घर भी क्षतिग्रस्त हो गया है। नहर की सफाई नहीं होने से पानी गिरने पर घर में जल भराव की स्थिति बन जाती है। खुशी के आत्महत्या की दुखद घटना के दौरान नहर का पानी भी घर में प्रवेश कर रहा था। शासन के द्वारा अभी तक नहर की सफाई नहीं कराई गई है।

प्रदेश सरकार लाड़ली बहनों के लिए बड़ी-बड़ी बातें करती है लेकिन उनकी मूलभूत जरूरतों के बारे में बराबर अनदेखी कर रही है। जब पूरे प्रदेश में राखी के त्यौहार को लेकर सरकारी जश्न मनाया जा रहा था ऐसे समय एक दिन पहले खुशी की आत्महत्या की खबर से हर किसी को भारी दुख पहुंचा। खुशी ने आत्महत्या के पहले जो पत्र लिखा उसमें बताया कि वह अपनी जिंदगी जी चुकी है। निश्चित रूप से उसके सपनों में बड़ा आघात लगा जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर सकी और उसके जीने की इच्छा खत्म हो गई। कोई भी व्यक्ति मौत को आसानी से गले लगाने की सोच भी नहीं सकता ऐसी स्थिति में विलक्षण बुद्धि की खुशी का आत्मघाती क़दम निश्चित रूप से बहुत चिंताजनक दुर्भाग्यपूर्ण रहा है खुशी बहुत खुद्दार किस्म की लड़की थी। वह जानती थी कि उसकी परिवार की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं है कि वह किसी अच्छे महाविद्यालय में अपनी आगे की पढ़ाई पूरी कर सके। वह किसी की मदद पर अपनी पढ़ाई नहीं करना चाहती थी। सरकार यदि योग्यता के आधार पर उसकी पढ़ाई का खर्च उठाती तो उसे अच्छा लगता लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। आखिरकार खुशी के आगे बढ़ने में कौन सी चीज बाधक बन रही थी। इस मनोविज्ञान को भी जानने की जरूरत है कि खुशी की खुशी हमेशा के लिए किसने छीन ली। खुशी के सपना कोई बड़ा अधिकारी बनना नहीं बल्कि एक टीचर बनकर सामान्य बच्चों को बहुत ऊपर ले जाना था। खुशी का इस तरह अकाल मृत्यु का वरण करना बहुत कष्टप्रद है। भविष्य में इस तरह की अप्रिय दुःखद घटना की पुनरावृत्ति ना हो इस बारे में सरकार और समाज को गंभीरता से सोचना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात करते हैं लेकिन जब बेटी को पढ़ने का सही अवसर नहीं मिलेगा तो उसके सपने कैसे पूरे हो सकेंगे। 1250 रुपए का लॉलीपॉप दिखाकर प्रदेश की करोड़ों बहनों को ठगा जा रहा है।

बेरहम व्यवस्था ने एमपी बोर्ड टॉपर खुशी सिंह को जीने नहीं दिया इधर खुशी सिंह को आगे की पढ़ाई के लिए जो माहौल मिलना चाहिए , वह परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते नहीं मिल पाया। शासकीय महाविद्यालय त्योंथर म उसे पढ़ाई का वह माहौल नहीं मिला जैसा वह चाहती थी। किसी तरह उसने बी ए पास किया लेकिन बी एड की 2 वर्ष की पढ़ाई के लिए लाखों रुपए जुटाना मुश्किल था। पांच बहनों में खुशी तीसरे नंबर पर थी। दो बड़ी बहनों आरती और प्रियंका की शादी हो चुकी है। दो बहनों की शादी में काफी खर्च हुआ था। कमजोर आर्थिक स्थिति में एक शादी करना भी काफी मुश्किल होता है। खुशी से दो छोटी बहनें मुस्कान और  खुशबू है। जो अभी स्कूली पढ़ाई कर रही हैं। खुशी की 75 वर्षीया  दादी श्रीमती जानकी देवी इस दुख से भारी सदमे में हैं। खुशी को अपने परिवार की आर्थिक स्थिति और जिम्मेदारियों का भली भांति ज्ञान था। लाड़ली बहनों को लॉलीपॉप दिखाकर वोट की राजनीति करने वाली प्रदेश सरकार को यदि खुशी सिंह के भविष्य की जरा भी परवाह होती तो खुशी के द्वारा मौत को गले लगाने की वारदात को अंजाम नहीं दिया जाता। आखिरकार बेरहम व्यवस्था ने खुशी को जीने नहीं दिया। प्रदेश सरकार लाड़ली बहनों के लिए बड़ी-बड़ी बातें करती है। जानकारी मिली कि खुशी के साथ प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फोटो भी खिंचवाई थी लेकिन उनकी मूलभूत जरूरतों के बारे में बराबर अनदेखी हुई। प्रदेश टॉपर होने के बावजूद उसे लैपटॉप और स्कॉलरशिप भी नहीं मिली। निश्चित रूप से खुशी को आगे की पढ़ाई जारी रखने के सपने में बड़ा आघात लगा जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर सकी। पढ़ाई का सही माहौल नहीं मिलने से बीए में वह बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर सकी। कोई भी व्यक्ति मौत को आसानी से गले लगाने की सोच भी नहीं सकता ऐसी स्थिति में विलक्षण बुद्धि की खुशी का आत्मघाती क़दम बहुत चिंताजनक दुर्भाग्यपूर्ण है।आखिरकार बेरहम व्यवस्था ने खुशी को जीने नहीं दिया। खुशी का इस तरह अकाल मृत्यु का वरण करना बहुत कष्टप्रद है। भविष्य में इस तरह की अप्रिय दुःखद घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो इस बारे में सभी को मिलजुल कर सोचना होगा।

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