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जानिए प्राचीन समुद्री विद्या के बारे में

जानिए प्राचीन समुद्री विद्या के बारे में

प्राचीन भारतीय ग्रंथों में समुद्री ज्ञान या विद्या का उल्लेख अनेक स्थलों पर मिलता है, जिसमें समुद्र से संबंधित ज्ञान, व्यापारिक मार्ग, नौवहन, और जलचर विज्ञान जैसे विषय शामिल हैं। यह विषय वेदों, पुराणों, महाकाव्यों, स्मृतियों और विभिन्न संस्कृत साहित्य में विस्तार से वर्णित है। भारतीय समुद्री ज्ञान की परंपरा प्राचीन काल से ही विकसित होती रही है और यह उस समय की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है।

1. वेदों में समुद्री विद्या

वेद, जो भारतीय ज्ञान की सबसे पुरानी कृतियाँ मानी जाती हैं, उनमें समुद्र का उल्लेख विभिन्न स्थानों पर हुआ है। विशेष रूप से, ऋग्वेद में समुद्र को जल का भंडार और विभिन्न संसाधनों का स्रोत बताया गया है। ऋग्वेद में समुद्र और नदियों के साथ-साथ जलयात्राओं का भी उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के अनुसार, समुद्र देवताओं के निवास और असीम संसाधनों का प्रतीक माना जाता था।

ऋग्वेद (7.88.3): इस सूक्त में जल की महत्ता और इसके संरक्षण के महत्व का वर्णन किया गया है। जल को जीवन का स्रोत बताया गया है और समुद्र को जल के भंडार के रूप में वर्णित किया गया है।

ऋग्वेद (1.116.3) में समुद्री यात्राओं का उल्लेख है, जो यह बताता है कि उस समय भारतीय लोग समुद्री यात्राएँ करते थे और उन्हें नौकायन का ज्ञान था।


2. रामायण और महाभारत में समुद्री यात्रा का विवरण

रामायण: वाल्मीकि रामायण में समुद्र का विस्तार से वर्णन किया गया है, खासकर जब भगवान राम लंका पहुँचने के लिए समुद्र पार करने का प्रयास करते हैं। उन्होंने समुद्र से मार्ग माँगा और नल-नील द्वारा समुद्र पर पुल (रामसेतु) का निर्माण किया गया। यह घटना प्राचीन भारतीय समुद्री निर्माण और तकनीकी ज्ञान की महत्ता को दर्शाती है।

महाभारत: महाभारत में भी समुद्र और नदियों का विवरण मिलता है। विशेष रूप से, सप्तम पर्व में समुद्री व्यापार, समुद्री मार्ग और जलयात्राओं का उल्लेख है। इसमें समुद्र को धन का स्रोत बताया गया है और विभिन्न व्यापारिक मार्गों का उल्लेख किया गया है। युधिष्ठिर के समय समुद्री मार्गों के उपयोग और वाणिज्य के महत्व का वर्णन है।


3. पुराणों में समुद्री विद्या

पुराणों में समुद्र से जुड़ी कई कथाएँ और विवरण हैं, जो न केवल धार्मिक और पौराणिक महत्व के हैं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। समुद्र मंथन की कथा भारतीय समुद्री ज्ञान का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसमें समुद्र से अमृत, लक्ष्मी, और अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं का प्रकट होना दर्शाता है कि समुद्र को भारतीय संस्कृति में संसाधनों का अपार भंडार माना गया है।

विष्णु पुराण: इसमें समुद्र मंथन की कथा दी गई है, जिसमें समुद्र से विभिन्न रत्नों और अमृत की प्राप्ति का वर्णन है। इससे यह स्पष्ट होता है कि समुद्र को समृद्धि और धन का स्रोत माना गया था।

मत्स्य पुराण: इस पुराण में समुद्री जीवों और समुद्री संसाधनों का विस्तार से वर्णन है। मत्स्य पुराण समुद्री जीव विज्ञान (Ichthyology) के प्राचीन ज्ञान को दर्शाता है।


4. अरथशास्त्र में नौवहन और समुद्री व्यापार

कौटिल्य का अर्थशास्त्र, जो मौर्य साम्राज्य के समय का एक प्रमुख ग्रंथ है, में नौवहन और समुद्री व्यापार का व्यापक रूप से उल्लेख है। यह ग्रंथ मौर्य काल के दौरान भारतीय साम्राज्य के आर्थिक और प्रशासनिक प्रबंधन का वर्णन करता है। कौटिल्य ने समुद्री मार्गों और व्यापार के महत्व को पहचानते हुए नौवहन के नियमों और तकनीकों का उल्लेख किया है। इसमें जल परिवहन, बंदरगाहों के प्रबंधन और समुद्री कराधान की नीतियाँ शामिल हैं।

कौटिल्य ने समुद्री मार्गों के माध्यम से होने वाले व्यापार पर विशेष ध्यान दिया और कहा कि समुद्री मार्गों से वाणिज्यिक गतिविधियाँ अधिक तेज़ी से हो सकती हैं, जिससे साम्राज्य को आर्थिक लाभ होता है।

उन्होंने समुद्री सुरक्षा पर भी बल दिया और समुद्रों में यात्रा करने वाले व्यापारियों के लिए सुरक्षा और सहायता की व्यवस्था करने के लिए निर्देश दिए।


5. समुद्री व्यापार और प्राचीन भारतीय बंदरगाह

प्राचीन भारत में समुद्री व्यापार के लिए कई प्रमुख बंदरगाह थे, जिनसे भारत का व्यापार न केवल एशिया के अन्य हिस्सों में, बल्कि यूरोप और अफ्रीका तक भी होता था। भारत के पश्चिमी तट पर सिंधु घाटी सभ्यता के बंदरगाहों का उल्लेख मिलता है, जिनसे समुद्री व्यापार संचालित होता था। लोथल और धोलावीरा जैसे बंदरगाह सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख व्यापारिक केंद्र थे।

लोथल: यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख बंदरगाह था, जो आज के गुजरात में स्थित है। यहाँ से व्यापारिक जहाजों का संचालन होता था, जो समुद्री व्यापार के लिए पश्चिम एशिया और अफ्रीका तक पहुँचते थे।

मुजिरिस: केरल का यह बंदरगाह प्राचीन समय में भारतीय समुद्री व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, जहाँ से रोमन साम्राज्य के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए गए थे।


6. भारतीय नौवहन की तकनीक और जहाज निर्माण

प्राचीन भारत में नौवहन की उन्नत तकनीक थी और भारतीयों को जहाज निर्माण में गहरी समझ थी। संस्कृत ग्रंथों में जहाजों के आकार, निर्माण और समुद्री यात्रा के नियमों का विस्तार से वर्णन मिलता है।

युक्तिकल्पतरु: यह एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें जहाज निर्माण की तकनीक, नावों के प्रकार और नौवहन के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख है। इस ग्रंथ में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार के जहाज किस समुद्री यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं।

वराहमिहिर की बृहदसंहिता में भी जहाज निर्माण की प्रक्रिया और नौवहन की तकनीक का वर्णन किया गया है। वराहमिहिर ने समुद्र के विभिन्न प्रकारों, लहरों की गति, और मौसम के आधार पर नौवहन के समय का निर्धारण किया है।


7. समुद्र यात्रा के दौरान दिशाओं का ज्ञान और ज्योतिष विद्या

भारतीय समुद्री विद्या में ज्योतिष का भी महत्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन भारतीय नाविक समुद्र में यात्रा करते समय दिशा और मार्ग का निर्धारण करने के लिए तारों और ग्रहों की स्थिति का उपयोग करते थे।

सूर्य सिद्धांत: यह ज्योतिष और खगोल विज्ञान पर आधारित एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें समुद्र यात्रा के लिए दिशाओं और ग्रहों की स्थिति के आधार पर नौवहन करने के तरीके बताए गए हैं।

शकुन शास्त्र: समुद्र यात्रा के लिए शुभ और अशुभ समय का निर्धारण शकुन शास्त्र के माध्यम से किया जाता था, जो ज्योतिष पर आधारित है।


8. भारतीय समुद्री कानून और सुरक्षा

प्राचीन भारत में समुद्र यात्रा के लिए कुछ नियम और कानून भी बनाए गए थे, जो यात्रियों और व्यापारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते थे। समुद्र में यात्रा करने वाले व्यापारियों को राज्य की ओर से सुरक्षा और सहायता प्रदान की जाती थी।

मनुस्मृति: इसमें समुद्र यात्रा से संबंधित नियमों और अनुशासन का वर्णन है। व्यापारियों को समुद्र के खतरों से सावधान किया गया था और उनके लिए उचित सुरक्षा की व्यवस्था की गई थी।

नारद स्मृति: इसमें समुद्र में होने वाली दुर्घटनाओं और व्यापारिक नुकसान से निपटने के लिए कानूनी प्रावधान थे। समुद्री यात्रा से जुड़ी विवादों को सुलझाने के लिए न्यायिक प्रणाली की व्यवस्था थी।


9. भारतीय समुद्री व्यापार के अंतरराष्ट्रीय संबंध

प्राचीन भारत का समुद्री व्यापार न केवल एशियाई देशों, बल्कि यूरोप, अफ्रीका और अरब देशों के साथ भी होता था। भारतीय व्यापारी समुद्र मार्ग के माध्यम से मसाले, रेशम, हाथी दाँत, और अन्य कीमती वस्तुएँ निर्यात करते थे और बदले में सोना, चांदी, और अन्य विदेशी वस्तुएँ आयात करते थे।

चोल साम्राज्य: चोल साम्राज्य के समय समुद्री शक्ति अपने चरम पर थी। चोलों ने दक्षिण-पूर्व एशिया के विभिन्न देशों, जैसे श्रीलंका, सुमात्रा और मलेशिया के साथ समुद्री व्यापारिक संबंध स्थापित किए।

रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार: भारत का रोमन साम्राज्य के साथ समुद्री व्यापार बहुत उन्नत था। रोमन साम्राज्य से सोने और चांदी के सिक्के

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