कुशल व्यवहार और प्रबंधन कौशल से जनसंपर्क में हासिल की कामयाबी
अशोक मनवानी

कुशल व्यवहार और प्रबंधन कौशल से जनसंपर्क में हासिल की कामयाबीअशोक मनवानी


श्री ताहिर अली मुझसे आयु में लगभग 10 वर्ष बड़े हैं। मेरी उनकी पहली मुलाकात वर्ष 1990 में हुई। तब हम लोग जिलों में पदस्थ थे। मुख्यालय की एक बैठक में हम मिले थे। पहली ही भेंट में ताहिर भाई की जिस बात ने मुझे प्रभावित किया वह था उनका सौम्य और सरल व्यवहार।
जनसंपर्क मुख्यालय सहित विभिन्न वरिष्ठ मंत्रियों के साथ प्रचार का दायित्व कुशलता पूर्वक संभालने वाले ताहिर अली संपर्क के मामले में तत्पर रहते हैं।दूरभाष के उपकरण का उन्होंने उसे युग में अधिकतम उपयोग किया जब यह उपकरण बहुत कम लोगों के पास होता था और मोबाइल नहीं हुआ करते थे। मोबाइल आने के बाद तो गत दो दशक में उन्होंने सफलता के नए झंडे ही गाड़ दिए। इसमें सहयोग सिर्फ मोबाइल उपकरण का नहीं है। अपितु व्यक्ति की सजगता और अपने आसपास के वातावरण के प्रति चौकन्ना बने रहने और प्रासंगिक रहकर समाचार माध्यमों से जुड़ाव रखना  मायने  रखता है। व्यक्तिगत संबंधों को महत्व देने जैसे कई पहलू ताहिर भाई को सबसे अलग बनाते हैं। उन्होंने एक पढ़े लिखे परिवार की पृष्ठभूमि का भी लाभ लिया और उच्च शिक्षा के पिता के अनुभवों को स्वयं आत्मसात करते हुए अपने व्यक्तित्व का विकास किया। अध्ययनशीलता में एक बार कुछ कमी रह जाए तो चल जाता है लेकिन व्यवहारिक जीवन में सक्रिय रहकर जनसंपर्क के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना सरल हो जाता है।
ताहिर भाई ने दी संबंधों को तरजीह
इसलिए जो 30 या 35 वर्ष पूर्व उनके साथ काम कर चुके हैं आज भी उनसे जुड़े हुए हैं। इन मित्रवत संबंधों के लिए व्यक्ति को समय देना होता है। यदि किसी की रुचि फिल्में देखने और खेल के मैदान में समय बिताने में है तो वह इन संबंधों के निर्वहन में कुछ पीछे रह सकता है। लेकिन ताहिर मियां पुराने शहर में रहते हुए भी नए भोपाल शहर से उसी तरह जुड़े होते हैं जैसे उस घटना या व्यक्ति से मुलाकात के स्वयं साक्षी हों।अनेक अवसरों पर उनकी इस कुशलता को मैंने अनुभव किया है। प्रचार प्रसार के लिए अखबारों के साथ रेडियो, दूरदर्शन और टीवी चैनलों के उपयोग में वे माहिर हैं इसलिए कहा जाता है कि वे सिर्फ ताहिर नहीं बल्कि माहिर भी हैं। मेरे कुछ मित्र उन्हें ताहिर अली की जगह इंतजाम अली भी कहते हैं। यह बात हास्य व्यंग्य की नहीं बल्कि  उनकी वास्तविक प्रशंसा की प्रतीक भी है। मुझे याद है एक बार किसी वीआईपी को फ्लाइट कैच करनी थी और उनकी बैठक अभी लंबी चलनी थी। श्री ताहिर अली ने एक अतिरिक्त वाहन का प्रबंध किया और भोपाल के लालघाटी क्षेत्र में रेलवे क्रॉसिंग की दूसरी ओर एअरपोर्ट मार्ग पर उसे खड़ा कर दिया था। वी आई पी महोदय मंत्रालय से बैठक खत्म कर एयरपोर्ट रवाना हुए, तब लालघाटी के पास फ्लाय ओवर का निर्माण नहीं हुआ था, इसलिए कई बार लोगों की फ्लाइट छूट जाया करती थी। रेलवे क्रॉसिंग के पास पहुंचने पर फाटक बंद था। तब श्री ताहिर अली ने जो उस वीआईपी को एस्कॉर्ट कर रहे थे रेलवे ट्रैक क्रॉस करवारकर गेट के उस तरफ खड़े वाहन तक ले गए। वीआईपी  महोदय हतप्रभ रह गए और उन्हें समय पर फ्लाइट मिल गई।
ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे कि ताहिर भाई ने मंत्रियों के यहां मीडिया सलाहकार के रूप में कार्य करते हुए आमजन की नि:स्वार्थ भाव से मदद की। कई बार तो जरूरतमंद लोग  सीधे ताहिर भाई से मिलकर अपनी समस्या का निराकरण करा लेते है, इस बात का जब मंत्री जी को पता चलता है तो वहां भी उनकी प्रशंसा करने से पीछे नहीं हटते।
आज भी कई व्हीआईपी  और मंत्रीगणों से उनके आत्मीय संबंध स्थापित है और उनके कुशल प्रबंधन के कारण उन्हें अपनी निजी स्थापना में कार्यभार सौप रखा है।
यह एक उदाहरण सिद्ध करता है कि व्यक्ति जीवन में कहाँ-कहाँ किस-किस तरह से कुशल प्रबंधन कर सकता है।
ताहिर भाई की जन्म वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई। उनके लिए आज इतना ही। उनके गुणों की चर्चा एक विस्तृत आलेख में की जा सकती है। वे दीर्घायु शतायु हों। हार्दिक शुभकामनाएं।

अशोक मनवानी
संयुक्त संचालक , जनसंपर्क

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