
अनूपपुर की सुबह आज कुछ अलग थी—स्कूल का मैदान खुशियों, उम्मीदों और अनगिनत सपनों से भर गया था। व्हीलचेयर पर आगे बढ़ते कदम हों, या बैसाखियों पर टिका आत्मविश्वास, या फिर श्रवण–दृष्टि बाधित बच्चों की मुस्कुराहट—हर कदम समाज को यह समझा रहा था कि दिव्यांगता शरीर में होती है, हौसलों में नहीं।
विश्व दिव्यांग दिवस के इस अवसर पर जब बच्चों ने दौड़ लगाई, चित्र बनाए, रंगों से सपनों को सजाया और मंच पर अपनी कला बिखेरी—तो उपस्थित हर व्यक्ति की आंखें नम हो गईं, लेकिन दिल गर्व से ।













शासकीय उत्कृष्ट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, अनूपपुर में आयोजित जिला स्तरीय विश्व दिव्यांग दिवस कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती प्रीति रमेश सिंह ने भावुक स्वर में कहा—
“दिव्यांगजन दया के पात्र नहीं, सम्मान के अधिकारी हैं। उन्हें किसी सहारे की नहीं, अवसर की आवश्यकता है।”
उन्होंने कहा कि समाज तभी महान बनता है जब वह उन लोगों के सपनों को भी पहचानता है, जो कठिनाइयों के बावजूद मुस्कुराकर जीवन जीते हैं।
उन्होंने अष्टावक्र, सूरदास और रविन्द्र जैन जैसे महान प्रतिभाओं का उदाहरण देते हुए कहा
“जब मन मजबूत हो, तो जीवन की हर कमी प्रतिभा के आगे नतमस्तक हो जाती है।”
जिला पंचायत उपाध्यक्ष श्रीमती पार्वती वाल्मीकि राठौर ने कहा कि दिव्यांगजनों को समर्थन देना केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि मानवता का सबसे पवित्र स्वरूप है। उन्होंने यह भी कहा—
“ईश्वर किसी से कुछ नहीं छीनता, वह हर एक को कोई अनमोल गुण ज़रूर देता है। बस उसे पहचानकर आगे बढ़ना ही असली जीत है।”








मंच पर मौजूद कई बच्चों के चेहरे संघर्ष से चमकते दीपक की तरह जगमगा रहे थे। कोई हाथों से सुंदर चित्र बना रहा था, तो कोई पैरों से रंग भर रहा था। किसी ने सुरों में भावनाएँ पिरोईं, तो किसी ने रंगोली में अपनी आत्मा उकेर दी। यह दृश्य देखकर हर किसी की आँखों में प्रशंसा और संवेदना की चमक थी।
चित्रकला—जहाँ रंगों ने बोली भावनाएँ


चित्रकला प्रतियोगिता में बच्चों ने ऐसी रचनाएँ बनाईं, जिन्हें देखकर लगा जैसे उनकी कला मन की आवाज बन गई हो।
किसी चित्र में भविष्य की उड़ान थी, किसी में संघर्ष की कहानी, और किसी में दुनिया को देखने का नया नजरिया।
जूनियर वर्ग
प्रथम — रचिता सिंह (चित्र: “आसमान मेरा भी है”)द्वितीय आरुषि साहू (चित्र: “नई सुबह”)तृतीय — निशा बैगा (चित्र: “खुशियों की राह”)
सीनियर वर्ग
प्रथम — प्रीति सोनी (चित्र: “मैं अटल हूँ”)द्वितीय सोनल पटेल (चित्र: “सपनों की उड़ान”)तृतीय खुशी यादव (चित्र: “आशा की किरण”)
चित्रकला देखते समय कई शिक्षकों के चेहरे पर अनायास मुस्कान आ जाती थी, मानो बच्चे कह रहे हों
“हम भी वही रंग भरते हैं, बस हमारी दुनिया थोड़ी अलग है।”

खेल प्रतियोगिताएँ—दौड़ते पैरों से ज्यादा दौड़े सपने
जब बच्चों ने 50 और 100 मीटर की दौड़ लगाई, तो हर कदम मिट्टी को नहीं, दिलों को छू रहा था।
कुछ बच्चों ने गिरकर संभलना सीखा, कुछ ने अपनी सीमाओं को पीछे छोड़ दिया। कई प्रतिभागी दर्शकों की तालियों की गूंज के बीच मंजिल तक पहुँचे।
विजेताओं ने जब ट्रॉफी उठाई, तो केवल मेडल नहीं—उन्होंने समाज की सोच भी उठाई।
समापन एक ऐसा दिन जिसने दिलों को बदल दिया
कार्यक्रम के अंत में मेडल और प्रमाण पत्र प्राप्त करते बच्चों की आँखों में चमकती खुशी, कई अभिभावकों की भीगी आँखें और शिक्षकों का गहरा गर्व… यह सब मिलकर उस पल को अविस्मरणीय बना रहा था।
दिव्यांगता किसी की पहचान नहीं, बल्कि उसकी ताकत का परिचय है।हर प्रतिभा सम्मान की हकदार है।हर सपना उड़ान भर सकता है।और हर व्यक्ति पूर्ण है, जैसे वह है।
कैलाश पाण्डेय



Leave a Reply