कैलाश पाण्डेय
मध्य प्रदेश भोपाल जनसंपर्क विभाग में बाहरी हस्तक्षेप के विरोध में पेन डाउन हड़ताल — विभागीय गरिमा, विशेषज्ञता और स्वायत्तता की रक्षा का सामूहिक संकल्प
मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री गणेश कुमार जायसवाल की अपर संचालक जनसंपर्क के रूप में पदस्थापना को लेकर उठा विवाद अब एक व्यापक आंदोलन का रूप ले चुका है। सोमवार को पूरे प्रदेश में विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस आदेश को विभाग की संरचनात्मक मर्यादा, पेशेवर गरिमा और कार्य-विशेषता के विरुद्ध बताते हुए सुबह 11 बजे से अनिश्चितकालीन पेन डाउन हड़ताल शुरू कर दी। यह विरोध किसी व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि एक ऐसी परंपरा, सिद्धांत और संवेदनशील कार्य-संरचना की रक्षा का आंदोलन है, जिसने जनसंपर्क विभाग को वर्षों से सरकारी संवाद का सबसे रचनात्मक, संवेदनशील और प्रभावी मंच बनाया है।
दिन की शुरुआत आयुक्त जनसंपर्क श्री दीपक सक्सेना से की गई प्रतिनिधिमंडल की भेंट से हुई, जहाँ विभागीय कर्मचारी व कर्मचारी संगठनों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि विभाग में राजस्व-प्रवृत्ति वाले किसी अधिकारी की प्रतिनियुक्ति असंगत है और विभागीय कार्यप्रवाह को सीधे प्रभावित करती है। मुलाकात के बाद सभी संघों—जनसंपर्क अधिकारी संघ, तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ, चतुर्थ वर्ग कर्मचारी संघ तथा वाहन चालक संघ—ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि आदेश निरस्त होने तक कलम नहीं उठाई जाएगी। सभी कर्मचारियों ने अपनी एकजुटता दर्शाते हुए शासन को आदेश वापस लेने का ज्ञापन भेजा है और साफ संदेश दिया है कि विभाग की स्वायत्तता से किसी भी प्रकार का समझौता स्वीकार्य नहीं होगा।
जनसंपर्क विभाग को लेकर कर्मचारियों की आपत्ति केवल एक प्रशासनिक आदेश से असहमति भर नहीं है, बल्कि यह विभाग के चरित्र की जड़ों से जुड़ा प्रश्न है। जनसंपर्क विभाग न तो राजस्व कार्यालयों की तरह सीमांकन, नक्शानवीसी, भूमि प्रबंधन या राजस्व वसूलने वाला विभाग है, न ही यहाँ प्रशासनिक कठोरता का वातावरण चलता है। यह विभाग मूलतः सृजन-शक्ति, भाषा-कौशल, लेखन क्षमता, संवाद रणनीति और मीडिया प्रबंधन पर आधारित एक रचनात्मक संस्थान है। यहाँ अधिकारी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को संवेदनशील भाषा में जनता तक पहुँचाने का काम करते हैं, मीडिया में सरकार की छवि को सार्थक और सकारात्मक रूप से स्थापित करने की जिम्मेदारी निभाते हैं और नकारात्मक परिस्थितियों को संतुलित करने के लिए अपनी विवेकशीलता और संप्रेषण-कौशल का उपयोग करते हैं। यह वह विभाग है जहाँ हर शब्द शासन के संदेश को अर्थ देता है और हर संवाद सरकार और जनता के बीच पुल का कार्य करता है।
ऐसे विशिष्ट वातावरण में राजस्व कैडर के अधिकारी की प्रतिनियुक्ति स्वाभाविक रूप से असंगत मानी जा रही है। कर्मचारियों का कहना है कि बाहरी सेवाओं से आने वाले अधिकारी विभाग की संवेदनशीलता और संप्रेषण-प्रधान प्रकृति को समझने में अनेक कठिनाइयों का सामना करते हैं, और इससे विभाग की विशेषज्ञता, संरचना और पेशेवर पहचान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इतिहास भी यही बताता है कि पूर्व में जब भी इस तरह के कदम उठाए गए, जनसंपर्क विभाग की बौद्धिक परंपरा और अधिकारी-कर्मचारियों की एकजुटता ने ऐसे प्रस्तावों को स्वतः ही निष्प्रभावी कर दिया।
हड़ताल के चलते पूरे प्रदेश में समाचार संकलन, प्रेस नोट निर्माण, सरकारी कार्यक्रमों का मीडिया कवरेज, विज्ञापन जारी करने की प्रक्रिया, सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार और मीडिया संवाद जैसी गतिविधियाँ ठप हो गई हैं। यदि यह स्थिति इसी प्रकार बनी रही, तो सरकार की संचार प्रणाली विशेषकर योजनाओं और नीतियों की जानकारी जनता तक पहुँचाने का तंत्र गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है।
कर्मचारियों की ओर से यह भी कहा गया है कि मुख्यमंत्री, जो स्वयं जनसंपर्क विभाग के मंत्री भी हैं, को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप कर विभागीय गरिमा की रक्षा करनी चाहिए। क्योंकि जनसंपर्क विभाग केवल कार्यालयों में बैठकर आदेश लिखने का काम नहीं करता, बल्कि यह वह विभाग है जो सरकार की पूरी छवि, संदेश और जनविश्वास को अपनी लेखनी और रचनात्मकता से आकार देता है। इसलिए इसकी संरचना में किसी भी प्रकार का असंगत हस्तक्षेप सीधे तौर पर शासन की संवाद क्षमताओं पर प्रभाव डाल सकता है।
अंतत: जनसंपर्क विभाग की यह पेन डाउन हड़ताल प्रशासनिक असंतोष का सामान्य स्वर नहीं, बल्कि एक रचनात्मक तंत्र की आत्म-सुरक्षा का प्रखर और सशक्त प्रतिरोध है। कर्मचारियों ने स्पष्ट कर दिया है कि आदेश निरस्त होने तक कलम बंद रहेगी, और यह आंदोलन विभाग की पेशेवर पहचान, स्वायत्तता और गरिमा की रक्षा के लिए निर्णायक मोड़ साबित होगा।



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