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अफगान सीमा से बलूचिस्तान तक  पाकिस्तान अब अपने ही बारूद के   ढेर पर बैठा है!

“पाकिस्तान तीन तरफ से घिरा  अपने ही पाले आतंकियों के जाल में फंसा मुल्क, अब अस्तित्व पर मंडरा रहा संकट
विशेष विश्लेषण | एक वैश्विक रिपोर्ट

कभी “इस्लामी दुनिया का किला” बनने का सपना देखने वाला पाकिस्तान आज खुद अपने ही बनाए बारूद के ढेर पर बैठा है। अफगानिस्तान की सीमा से लेकर बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा तक, तीन दिशाओं से आतंक, विद्रोह और अविश्वास का तंत्र देश को भीतर से खोखला कर रहा है। खलीफा बनने का सपना अब उस मुल्क के लिए भस्मासुर बन चुका है जिसने चार दशकों तक जिहाद को अपनी विदेश नीति का औजार बनाया।
अफगानिस्तान सीमा तालीबानी “भाईचारा” टूटा, अब बारूद का रिश्ता
अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान का संबंध कभी रणनीतिक “गहराई” (Strategic Depth) कहलाता था, जब आईएसआई और पाक सेना ने तालीबान को जन्म दिया था। पर अब वही तालीबान पाकिस्तान की दुश्मन बन चुकी है।
कल अफगान सेना और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के हमलों से 12 पाक चेकपोस्टों पर कब्जा कर लिया गया। अफगान सीमा से रोज़ गोले बरस रहे हैं, और पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा है। पेशावर से क्वेटा तक गूंज है   “हमने जिने पाला, वो अब हमें खा रहे हैं।”
बलूचिस्तान अलगाव और संसाधन युद्ध

बलूचिस्तान पाकिस्तान के नक्शे पर सबसे बड़ा लेकिन सबसे असंतुष्ट प्रांत है। चीन-पाक आर्थिक गलियारा (CPEC) के नाम पर इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है, जबकि स्थानीय जनता भूख और बेरोजगारी झेल रही है।
बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) खुलेआम पाक फौज पर हमले कर रही है। हर महीने गैस पाइपलाइन, पुलिस पोस्ट और मिलिट्री कॉनवॉय पर बम बरस रहे हैं। बलूचिस्तान अब पाकिस्तान के लिए “धीमी मौत का इलाका” बन चुका है।
खैबर पख्तूनख्वा आतंक का पुराना अड्डा अब विद्रोह का केंद्र
यह वही इलाका है जहां से पाकिस्तान ने अफगान जिहाद को हवा दी थी। अब TTP, IS-K और स्थानीय उग्रवादी समूह सेना पर ही गोलियां बरसा रहे हैं। गांवों में लोग सेना की मौजूदगी को कब्ज़ा मानते हैं।
यहाँ के जनजातीय इलाके अब “नो-गो ज़ोन” बन चुके हैं — जहाँ पाकिस्तान का कानून नहीं, सिर्फ बंदूक बोलती है।
खलीफा बनने की कोशिश और विफल  राजनीति
1979 से पाकिस्तान ने खुद को “इस्लामी शक्ति” के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की। जनरल ज़िया-उल-हक़ के दौर में अमेरिका और सऊदी अरब की मदद से “जिहाद” को सरकारी नीति बना दिया गया।
पर वही जिहाद अब पाकिस्तान को निगल रहा है। आतंकी संगठन अब आईएसआई या आर्मी के आदेश नहीं सुनते। वे अपने “खलीफा” के सपने में डूबे हैं — इस्लामी अमीरात-ए-पाकिस्तान के नाम पर सेना तक पर हमले कर रहे हैं।
वैश्विक प्रभाव परमाणु मुल्क की अस्थिरता पर दुनिया की चिंता
पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं — और यही सबसे बड़ा डर है।
अमेरिका, चीन और रूस सभी को चिंता है कि अगर पाकिस्तान के भीतर अराजकता बढ़ी, तो कहीं ये हथियार चरमपंथियों के हाथ न लग जाएं।
चीन का अरबों डॉलर का निवेश (CPEC) अब खतरे में है। अरब देशों ने आर्थिक सहायता रोक दी है। डॉलर खत्म, सेना टूटी हुई और सियासत दिशाहीन — यह है आज का पाकिस्तान।
विभाजन की आहट नया बांग्लादेश या तीन टुकड़ों का मुल्क?
विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान अब उसी दौर में है जिसमें 1971 में था। बलूचिस्तान और खैबर में अलगाव की ज्वाला, सिंध में असंतोष और पंजाब में असुरक्षा ये सभी संकेत दे रहे हैं कि “विभाजन की घड़ी” दूर नहीं।
कई अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक पाकिस्तान को “फेल्ड स्टेट” घोषित करने की सिफारिश कर रहे हैं।
अपने ही बारूद से जलता पाकिस्तान
पाकिस्तान ने जिस “जिहाद” को नीति बनाया, वही आज उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न है।
यह देश अब तीन मोर्चों — आतंकवाद, आर्थिक संकट और अलगाववाद — से घिरा हुआ है।
खलीफा बनने का सपना अब राख में बदल चुका है, और दुनिया देख रही है कि “पाकिस्तान अब अपने ही बनाए नर्क में उतर चुका है।”

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