
अनूपपुर की सियासत गुटबाजी का अंत… या फोटो सेशन का स्टार्ट?
राजनीति में अक्सर कहा जाता है—“नेता कभी दुश्मन नहीं होते, बस अगली कुर्सी तक प्रतियोगी होते हैं।”
अनूपपुर जिले की ताज़ा तस्वीर ने इस कहावत को और मज़बूत कर दिया है।
एक ही फ्रेम में सांसद हेमाद्रि सिंह जी, पूर्व मंत्री व विधायक बिसाहू लाल सिंह जी और कोतमा विधायक व मंत्री दिलीप जायसवाल जी। तीनों बीजेपी से, तीनों अलग-अलग धाराओं से, और तीनों कार्यकर्ताओं के हिसाब से प्रबल विरोधी। पर इस तस्वीर में ऐसे बैठे हैं जैसे मुख्य मंत्री जी द्वारा की गई घोषणाओं को कैसे पूरा कराया जाए का चिंतन हो रहा हो।
अब यह तस्वीर कई सवाल छोड़ गई है
क्या यह आलाकमान को दिखाने के लिए है कि “अनूपपुर में सब एकजुट है, चिंता की कोई बात नहीं”?
या कांग्रेस के जिलाध्यक्ष बदलते ही जनाधार खिसकने का डर सताने लगा है?
या फिर मुख्यमंत्री की घोषणाओं को अमली जामा पहनाने के लिए स्क्रिप्ट लिखी जा रही है? (जिस स्क्रिप्ट में मेडिकल कॉलेज, हवाई अड्डा, इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि महाविद्यालय, गीता भवन, बस स्टैंड, सब्ज़ी मार्केट और बहुप्रतीक्षित ट्रेनों का स्टॉपेज रेलवे फ्लाई ओवर ब्रिज अगले चुनाव के बाद फीता कौन काटेगा यही सवाल जन नायकों से जनता जनार्दन पूछ रही है आखिर क्यों जनता तक पहुँचते-पहुँचते “ड्राफ्ट” ही रह जाता है।)
कार्यकर्ता गली-मोहल्ले में एक-दूसरे से भिड़ जाते हैं, और नेता लोग एयरकंडीशन कमरे में मुस्कुराकर साथ बैठ जाते हैं।
जनता पूछे बहुप्रतीक्षित मांगो पर कब विचार होगा तो जवाब यही मिलेगा इस मुद्दे पर बाद में बात करेंगे।
परसीमन (delimitation) की चर्चा भी कम दिलचस्प नहीं। नेताओं के लिए इसका मतलब है—सीमा बदलकर सीट सुरक्षित करना, और जनता के लिए—वादा बदलकर आश्वासन सुरक्षित करना।
अनूपपुर की यह तस्वीर राजनीति की उस सच्चाई को उजागर करती है जहाँ गुटबाजी और एकता दोनों ही “परिस्थितिजन्य” होते हैं।
और जनता? वह अब भी सोच रही है
कब होगा अमल मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव जी द्वारा की घोषणाओं पर



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