
अमेरिका के टैरिफ वार पर भारत का सख्त जवाब रूस-चीन के साथ ब्रिक्स मंच से बदल सकता है वैश्विक संतुलन
नई दिल्ली/वाशिंगटन।
अमेरिका द्वारा भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त आयात शुल्क (एडीशनल टैरिफ) लगाए जाने के हालिया फैसले से अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक नई हलचल शुरू हो गई है। यह निर्णय ऐसे समय पर सामने आया है जब भारत रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़ा रहा है और अमेरिका इसके प्रति लगातार आपत्ति जता रहा है। भारत ने ट्रंप सरकार के इस फैसले को “दुर्भाग्यपूर्ण” और “अनुचित” करार दिया है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान में साफ कहा है कि भारत की ऊर्जा आवश्यकताएँ 1.4 अरब लोगों की सुरक्षा से जुड़ी हैं, और उसकी विदेश नीति हमेशा उसके राष्ट्रीय हितों से संचालित होती रही है। इस बयान के बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या अब भारत, रूस और चीन के त्रिकोणीय समीकरण वैश्विक शक्ति संतुलन को चुनौती देंगे।
अमेरिका की चेतावनी और भारत का प्रतिकार
हाल के महीनों में अमेरिका ने रूस से भारत के तेल आयात पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाया था। भारत ने स्पष्ट किया कि यह आयात “बाजार आधारित” और “राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा” की जरूरत है। परंतु अब अमेरिका ने जो कदम उठाया है, वह भारत के लिए केवल व्यापारिक समस्या नहीं, बल्कि रणनीतिक चुनौती बन गया है।
विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है
“यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अमेरिका ने भारत पर उन कार्यों के लिए अतिरिक्त शुल्क लगाने का विकल्प चुना है जो कई अन्य देश भी अपने राष्ट्रीय हित में कर रहे हैं। हम दोहराते हैं कि ये कार्य अनुचित और अविवेकपूर्ण हैं। भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी जरूरी एक्शन लेगा।”
ट्रंप युग की टैरिफ नीति और दक्षिण एशिया
डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल अमेरिकी व्यापार नीतियों में “अमेरिका फर्स्ट” की नीति के लिए जाना गया है। चीन के साथ ट्रेड वॉर, यूरोप पर टैरिफ और भारत से जीएसपी (Generalized System of Preferences) की वापसी — ये सभी निर्णय इसी नीति के प्रतीक रहे हैं।
भारत के स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों पर पहले ही अमेरिका ने टैरिफ लगाया था। अब 25 प्रतिशत एडीशनल टैरिफ का यह कदम, दोनों देशों के संबंधों में तनाव की नई परत जोड़ता है। अमेरिकी व्यापार विभाग का तर्क है कि रूस के साथ भारत की ऊर्जा साझेदारी और चीन के साथ बढ़ते व्यापारिक संबंध “अमेरिकी आर्थिक सुरक्षा” के लिए खतरा हैं।
ब्रिक्स एक वैकल्पिक व्यवस्था का उदय
अमेरिका के इन फैसलों से ब्रिक्स (BRICS – ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन, साउथ अफ्रीका) मंच एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में ब्रिक्स में सऊदी अरब, ईरान और मिस्र जैसे देशों को शामिल किया गया है। इस मंच पर भारत, रूस और चीन तीनों विश्व शक्तियाँ पहले से ही मौजूद हैं।
अब सवाल यह है कि क्या ये तीनों देश अमेरिकी दबाव के विरुद्ध एक साझा रणनीति बना सकते हैं?
रूस-भारत-चीन साझा हित और रणनीतिक समीकरण
रूस भारत को रियायती दरों पर कच्चा तेल दे रहा है
चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है (विवादों के बावजूद)
भारत दोनों देशों के साथ ब्रिक्स, SCO और RIC जैसे मंचों में सक्रिय है
यदि अमेरिका के टैरिफ वार और प्रतिबंधों के चलते भारत रूस-चीन के और करीब आता है, तो यह ट्राई-पावर गठबंधन G7 और NATO जैसे पश्चिमी गुटों को चुनौती देने की स्थिति में आ सकता है।
डेडॉलराइजेशन और ब्रिक्स करेंसी , चुनौती का अगला चरण
ब्रिक्स ने 2024 में डिजिटल करेंसी और साझा भुगतान प्रणाली (payment system) के विचार को गंभीरता से उठाया है। इस दिशा में रूस और चीन पहले ही डॉलरसं मुक्त व्यापार की ओर बढ़ चुके हैं। भारत अभी तक संतुलन की नीति पर चला है, लेकिन अगर अमेरिका की नीतियाँ और आक्रामक होती हैं, तो भारत भी अपनी मुद्रा और भुगतान प्रणाली को पश्चिमी बैंकों से अलग करने पर विचार कर सकता है। वैश्विक संतुलन की नई रेखाएँ
अगर भारत, रूस और चीन – तीनों रणनीतिक रूप से एक मंच पर आते हैं, तो इसके संभावित प्रभाव गहरे हो सकते हैं,
प्रभाव क्षेत्र संभावित बदलाव
भूराजनीति अमेरिका की रणनीतिक पकड़ में ढील
मुद्रा प्रणाली डॉलर वर्चस्व को चुनौती
ऊर्जा बाजार ओपेक प्लस से इतर ऊर्जा गठजोड़
वैश्विक मंच G20 और WTO में नई आवाज़ों का दबदबा
क्या यह तीसरे शीत युद्ध की आहट है?
अमेरिका के टैरिफ निर्णय ने केवल भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को प्रभावित नहीं किया, बल्कि एक वैश्विक विमर्श को जन्म दिया है — क्या भारत अब वैश्विक दक्षिण (Global South) के नेतृत्व में एक नई भूमिका की ओर बढ़ रहा है?
अगर भारत, रूस और चीन मिलकर अमेरिका-केंद्रित व्यवस्था के विकल्प की दिशा में बढ़ते हैं, तो आने वाले वर्ष वैश्विक राजनीति के इतिहास में निर्णायक साबित हो सकते हैं।
टैरिफ की यह जंग केवल टैक्स की नहीं, ताक़त की है। और भारत अब ताक़तवर भूमिका के लिए तैयार दिखता है।



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