
मध्यप्रदेश की पंचायतें अब सिर्फ विकास का गढ़ नहीं, बल्कि काजू-किसमिस के संग्राम स्थल बन गई हैं। जहां भवन निर्माण अब लड्डू और नमकीन से होता है, वहीं विकास का मतलब हो गया है – “जो खा सके, वही खा जाए!” शहडोल की परंपरा को निभाते हुए सतना जिले की रामनगर जनपद की मूर्तिहाई ग्राम पंचायत ने भी साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार अब ईंट-गिट्टी तक सीमित नहीं, ड्राय फ्रूट के डब्बों में पैक होकर पंचायत दर्पण पर झलकता है। यह किस्सा सिर्फ आर्थिक अनियमितता का नहीं, लोकतंत्र की थाली में परोसे गए हलवे-पुड़ी के आत्मा तृप्त कर देने वाले स्वाद का है।
विकास की मिठाई भवन निर्माण से पहले प्रसाद वितरण!
“विधि ट्रेडर्स, मूर्तिहाई” नामक फर्म से पंचायत ने भवन निर्माण सामग्री खरीदी — ऐसा कागज कहता है। पर जैसे ही कागज पलटा गया, उसमें चायपत्ती, केला, शक्कर, बिस्किट, नाश्ता प्लेट और पानी की बोतलों की भरमार मिली। सवाल उठता है – क्या भवन निर्माण से पहले नाश्ते का भोग अनिवार्य हो गया है?
पहले बिल में ईंट, रेत, गिट्टी और सीमेंट की पवित्र उपस्थिति है। दूसरे में ड्राय फ्रूट, बिस्किट, केले और 200 नाश्ता प्लेटों की स्वर्णिम आभा। अब यह समझना कठिन नहीं कि शायद पंचायत भवन की नींव लड्डुओं से सींची गई और छत नमकीन से टिकी है।
सबसे दिलचस्प बात ये कि जिस फर्म से बिल बनाए गए, उसका प्रोप्राइटर निकला सरपंच डॉ. रामबली वैश्य का पुत्र। यानी घर की फर्म, घर की पंचायत और घर के ही हस्ताक्षर!
सरपंच महोदय ने जवाब में कहा – “भवन निर्माण सामग्री मंगाई थी, लेकिन नाश्ता तो नकद में लिया था!” यानी भुगतान नकद, बिल फर्म से – यह लेखा-पद्धति का काजू किसमिसीय नवाचार है। जब उनसे पूछा गया कि यह फर्म उनके पुत्र की है क्या, तो लोकतंत्र की आदत अनुसार ‘अभी व्यस्त हूं, बाद में बात करेंगे’ का चिरपरिचित उत्तर मिला।
सीईओ बोले – जांच करेंगे, विकास बोले – पहले प्लेट लगाओ!
रामनगर जनपद सीईओ मुन्नीलाल प्रजापति ने कहा कि मामला संज्ञान में है, जांच करवाई जा रही है, कार्रवाई की जाएगी…। यह बयान अब हर घोटाले का प्रारंभिक टीका बन चुका है।
जांच का मतलब यहां इतना समझिए – खाते पन्ने उलटेंगे, कुछ दस्तावेज जलेंगे, कुछ दोष सचिव पर आएंगे और फिर वही चाय-पानी!
भ्रष्टाचार का नया मॉडल मिठाई आधारित ठेका प्रणाली
गांवों में अब ठेका नहीं, ‘थाल ठेका प्रणाली’ लागू हो रही है। पहले लड्डू, फिर नमकीन, फिर बिल अपलोड। शायद अगली बार सीमेंट की जगह रसगुल्ले से दीवारें बनाई जाएंगी! इस मॉडल को यदि अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल जाए, तो यूएन भी ग्राम विकास के लिए “लड्डू मॉडल” अपनाने लगे।
विकास की चायपत्ती जनता है मूकदर्शक, ड्राई फ्रूट है दस्तावेजी
जनता सब जानती है, बस सवाल नहीं पूछती। काजू-किशमिश देखकर सोचती है, “काश हमें भी एक प्लेट मिल जाती।” लोकतंत्र अब जनसेवा नहीं, नाश्ता सेवा बन गया है।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भ्रष्टाचार अब रॉबरी नहीं, एक पारिवारिक खानपान उत्सव बन गया है।
अगर भवन निर्माण में ड्राय फ्रूट लग सकते हैं, तो आने वाले समय में चुनाव घोषणापत्र में रसगुल्ला वितरण और सीमेंट के बदले बर्फी योजना भी शामिल हो सकती है। पंचायत की डीलिंग अब ईंट से नहीं, प्लेट से तय होती है।
लोकतंत्र के इस स्वादिष्ट स्वरूप में एक ही डर है — कहीं कोई भूखा मतदाता काजू गिनने लगे तो फाइलें नमकीन हो जाएंगी!



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