
शहडोल। मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के शासकीय स्कूलों में “अनुरक्षण मद” की आड़ में पैसे के दुरुपयोग का ऐसा काला खेल खेला गया है, जिसे सुनकर भ्रष्टाचार के दिग्गज भी शर्मिंदा हो जाएँ। शासकीय हाई स्कूल सकंदी में चार लीटर ऑयल पेंट की पुताई के लिए 168 मजदूर और 65 राजमिस्त्री “कागजों पर” लगाए गए और प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी फूल सिंह मरपाची ने कोषालय से 1,06,984 रुपये का भुगतान करवा लिया।
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय निपनिया में तो हद ही पार कर दी गई — 20 लीटर पेंट के लिए 275 मजदूर और 150 मिस्त्री लगा दिए, और साथ में 10 खिड़कियाँ और 4 दरवाजे फिटिंग का बिल मिलाकर 2,31,685 रुपये का भुगतान कर दिया गया। जबकि गांवों में इतने मजदूर मिलना संभव नहीं है — यानी फर्जी नामों से पेडा कटा और सारा पैसा निगल लिया गया!
बिना बिल तैयार हुए बिल का सत्यापन! निपनिया के प्राचार्य ने 4 अप्रैल को बिल सत्यापित कर दिया, जबकि सुधाकर कंस्ट्रक्शन ने बिल एक महीना बाद, 5 मई को तैयार किया। क्या प्राचार्य के पास टाइम मशीन थी? या फिर विभाग में फर्जीवाड़ा इतनी बेशर्मी से होता है कि तारीखें भी मायने नहीं रखतीं?
जरूरी फोटोग्राफ्स गायब, ट्रेजरी ने पैसे उड़ाए! सरकारी नियमों के मुताबिक काम शुरू होने और खत्म होने के फोटो देना अनिवार्य है। यहाँ कोई फोटो नहीं लगाया गया, फिर भी ट्रेजरी ऑफिसर ने बिल पास कर लाखों का भुगतान कर दिया। ये विभागीय साठगांठ का खुला प्रमाण है।
ये नहीं है अनुरक्षण, ये है ‘लूटरण मद’! चार लीटर पेंट में सैकड़ों मजदूरों के नाम जोड़ देना और बिना प्रमाण के लाखों का भुगतान करवा देना — यह दिखाता है कि शिक्षा विभाग और ठेकेदारों ने मिलकर शासकीय खजाने को अपनी जागीर समझ रखा है। स्कूलों में शिक्षक कम, लेकिन बिल पास करने वाले बाबू ज्यादा सक्रिय हैं।
क्या होनी चाहिए तत्काल कार्यवाही?
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज हो – जिम्मेदार अधिकारी, प्राचार्य और ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए।
पेमेंट रिकवरी की कार्रवाई हो – फर्जी भुगतान की पूरी रकम वसूल की जाए और दोषियों की संपत्ति कुर्क की जाए।
जाँच कमेटी गठित हो – सीबीआई या ईओडब्ल्यू से उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।
प्रशासनिक सस्पेंशन – प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी, प्राचार्य और संबंधित ट्रेजरी अधिकारी को तत्काल निलंबित किया जाए।
वित्तीय लेखा परीक्षण – पिछले 5 वर्षों के सभी अनुरक्षण मद और निर्माण कार्यों के भुगतान का ऑडिट कराया जाए।
गांव के लोगों के बयान दर्ज हों – ग्रामीणों से पुष्टि कर फर्जी मजदूरों के नामों का खुलासा किया जाए। स्रोत न्यूज सोशल मीडिया पर खूब तैर रहीं है
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