
जिले की हर गौशाला के नाम पर पशुपालन विभाग द्वारा प्रतिदिन प्रति गाय के आहार के लिए सरकारी फंड आवंटित किया जाता है। कागजों पर योजनाएं चल रही हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अधिकांश गौशालाओं में मवेशियों को न तो भरपेट चारा मिलता है और न ही दवाइयां।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कभी पशुपालन विभाग या जिला प्रशासन द्वारा गौशालाओं का नियमित निरीक्षण कर उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक की गई?
जब करोड़ों का बजट गौशालाओं के नाम पर पास होता है, तो क्या जिले की हर गौशाला में पशुओं की वास्तविक स्थिति की जानकारी जनता को नहीं मिलनी चाहिए?
क्यों जिला प्रशासन और पशुपालन विभाग के अधिकारी स्वीकृत बजट का उपयोग और गौशाला संचालन की पारदर्शिता सुनिश्चित करने में विफल साबित हो रहे हैं?
क्यों हर गौशाला की मासिक या त्रैमासिक निरीक्षण रिपोर्ट ग्राम पंचायत भवन या जिला वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं कराई जाती?
हकीकत यह है कि
पशुपालन विभाग और प्रशासन के अधिकारी निरीक्षण के नाम पर खानापूर्ति कर रहे हैं।
गौशाला का फंड ग्राम पंचायत, स्व-सहायता समूह और विभाग के बीच मिलीभगत से बंदरबांट हो रहा है।
गौशालाओं की तस्वीरें और तथ्य सार्वजनिक करने के बजाय जिम्मेदार लोग केवल फाइलों और कागजों में ही काम निपटा रहे हैं।
पशुओं के नाम पर आने वाले बजट को सही जगह खर्च करने का कोई पारदर्शी सिस्टम नहीं है।
समाधान क्या हो?
हर गौशाला की पशु संख्या, उनकी देखभाल और बजट उपयोग की ऑनलाइन मासिक रिपोर्टिंग अनिवार्य की जाए।
जिला स्तर पर स्वतंत्र समिति बनाकर गौशाला निरीक्षण कर रिपोर्ट जनता के सामने रखी जाए।
गौशाला फंड के दुरुपयोग पर जवाबदेही तय की जाए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो।
प्रशासनिक वेबसाइट या सूचना पटल पर हर गौशाला की खर्च व निरीक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
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