
भोपाल। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर छह माह से चल रही चर्चाओं पर जुलाई के पहले सप्ताह में विराम लग सकता है। संभावना है कि 1 से 3 जुलाई के बीच पार्टी के राष्ट्रीय चुनाव अधिकारी धर्मेंद्र प्रधान भोपाल पहुंचेंगे और उनकी मौजूदगी में अध्यक्ष पद का निर्वाचन कराया जाएगा। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, चुनाव कार्यक्रम और प्रधान के दौरे की आधिकारिक घोषणा एक-दो दिन में होने की संभावना है।
प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में उम्मीदवारों के नामांकन, स्क्रूटनी और नाम वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद निर्वाचन की घोषणा की जाएगी। उल्लेखनीय है कि छह माह पूर्व ही चुनाव प्रस्तावित था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सहमति न बनने और फिर पहलगाम आतंकी हमले के कारण प्रक्रिया स्थगित कर दी गई थी। अब हालात सामान्य होने पर चुनाव की तैयारी अंतिम चरण में है।
आदिवासी या महिला नेतृत्व को मौका मिलने की प्रबल संभावना: फिलहाल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सामान्य वर्ग से हैं, जबकि मुख्यमंत्री ओबीसी और उप मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं। ऐसे में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व सामाजिक संतुलन साधने के लिए नए प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर आदिवासी वर्ग या महिला चेहरे को कमान सौंप सकता है। अंतिम फैसला पार्टी आलाकमान करेगा, जो प्रदेश में आगामी रणनीति और जातीय समीकरण दोनों को ध्यान में रखेगा।
प्रदेश परिषद के सदस्यों का चयन हो चुका: प्रदेश भर में भाजपा जिला अध्यक्षों के ऐलान के साथ ही प्रदेश परिषद के सदस्य भी चुने जा चुके हैं। प्रत्येक दो विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर एक क्लस्टर बनाकर प्रदेश परिषद के सदस्य तय किए गए। एससी और एसटी के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों के अनुपात में उन्हीं वर्गों के सदस्यों का भी चयन हुआ है। कुल 345 प्रदेश परिषद सदस्यों के चयन में महिला, एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग का विशेष ध्यान रखा गया। यह परिषद मिलकर प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करेगी। परंपरागत रूप से मध्य प्रदेश बीजेपी में अधिकांश बार अध्यक्ष सर्वसम्मति से चुना गया है।
मध्य प्रदेश बीजेपी में केवल दो बार मतदान की नौबत: बीजेपी के संगठनात्मक इतिहास में अब तक सिर्फ दो मौके ऐसे आए हैं जब प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में मतदान की नौबत आई। पहली बार 1990 के दशक में जब पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी लखीराम अग्रवाल के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी मैदान में उतरे थे। दूसरी बार वर्ष 2000 में शिवराज सिंह चौहान और विक्रम वर्मा के बीच मुकाबला हुआ, जिसमें विक्रम वर्मा ने जीत दर्ज की थी।
मध्य प्रदेश बीजेपी का नेतृत्व किसे मिलेगा, क्या यह फैसला जातीय समीकरणों से प्रभावित होगा या नेतृत्व क्षमता को प्राथमिकता मिलेगी – यह देखना बेहद दिलचस्प होगा। आगामी दिनों में राजनीतिक हलचल और चर्चाओं के बीच अध्यक्ष पद की तस्वीर और साफ हो सकती है।



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