
भारतीय संस्कृति में पर्व केवल तिथियों का संयोग नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना के जागरण और प्रकृति-संवेदना के गहन भाव हैं। इन्हीं में से एक है गंगा दशहरा, जो न केवल गंगा नदी के अवतरण की स्मृति है, बल्कि यह जीवन, मोक्ष, शुद्धता और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक पर्व भी है। हर वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला यह पर्व वैदिक परंपराओं, पौराणिक आख्यानों और जनजीवन की आस्था का केंद्र है।
गंगा दशहरा का पौराणिक आधार
गंगा का अवतरण भागीरथ की तपस्या और धरती पर गंगा की धारा
गंगा दशहरा का आरंभ वाल्मीकि रामायण, महाभारत, स्कंद पुराण और शिव पुराण में वर्णित उस दिव्य घटना से जुड़ा है जब राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए महादेव की घोर तपस्या की और माँ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफलता प्राप्त की।
राजा सगर के 60,000 पुत्र कपिल मुनि के श्राप से भस्म हो गए थे।
उनकी आत्मा की मुक्ति के लिए गंगा का बहाव धरती पर आवश्यक था।
भागीरथ ने वर्षों तक हिमालय में तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा को पृथ्वी पर भेजा।
गंगा के वेग को पृथ्वी सहन नहीं कर सकती थी, अतः शिवजी ने अपनी जटाओं में गंगा को बांध लिया और धीरे-धीरे उसे धरती पर छोड़ा।
गंगा का स्वर्ग से धरती तक का प्रवाह केवल जल नहीं, अपितु ‘मोक्ष मार्ग’ की शुरुआत थी।
गंगा दशहरा की तिथि, समय और ज्योतिषीय पक्ष
तिथि गंगा दशहरा हर वर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है।
दशहरा का अर्थ ‘दश’ यानी दस, ‘हारा’ यानी पापों का नाश।
यह माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से दस प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।
दस पाप कौन से हैं?
1. वाणी से पाप 2. मन से पाप 3. शरीर से पाप 4. जानबूझ कर पाप 5. अनजाने में पाप 6. इस जन्म के पाप 7. पूर्वजन्म के पाप 8. क्रोध से हुए पाप 9. लोभ से हुए पाप 10. मोहवश किए गए पाप
गंगा – केवल नदी नहीं, एक दिव्य चेतना
गंगा भारत की पवित्र नदियों में सर्वोच्च स्थान रखती है। वह केवल जलधारा नहीं, बल्कि ‘जीवनधारा’ है।
गंगा का उल्लेख वेदों से लेकर पुराणों तक मिलता है:
ऋग्वेद: “गंगे यमुने सरस्वति…”
महाभारत: गंगा को त्रिलोक पावनी कहा गया है।
पुराण: गंगा को ब्रह्मा की कमंडलु से उत्पन्न तथा शिव के जटाओं से निकलने वाली बताया गया है।
गंगा के प्रमुख नाम
त्रिपथगा (तीनों लोकों में प्रवाहित)
जाह्नवी (महर्षि जह्नु द्वारा पिया गया जल)
सुरसरि (देवताओं की नदी)
भागीरथी (राजा भागीरथ के कारण अवतरित)
गंगा दशहरा के पर्व की परंपराएँ और आयोजन
1. गंगा स्नान का महत्त्व
इस दिन हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, ऋषिकेश, काशी, गंगासागर जैसे तीर्थस्थलों पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।
सूर्य उदय से पूर्व स्नान और सूर्य को अर्घ्य देना विशेष फलदायी माना गया है।
2. दान–पुण्य और पूजा
तिल, घी, वस्त्र, जलकुंभ, पंखा, आम, जौ आदि का दान।
‘गंगाष्टक’ या ‘गंगा स्तोत्र’ का पाठ।
पतित पावनी गंगा की पूजा, आरती और दीपदान।
3. कथाओं का पाठ और भागवत कथा
गंगा अवतरण की कथा का सामूहिक पाठ।
संत-महात्माओं के प्रवचन और कथाएं।
सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव
गंगा दशहरा भारत की धार्मिक चेतना के साथ सामाजिक संरचना को भी प्रभावित करता है गांवों और शहरों में मेले
गंगा के किनारे विशाल मेले लगते हैं, जिनमें लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
गंगा आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
कला, संगीत और साहित्य में गंगा
तुलसीदास, सूरदास, कबीर, मीराबाई, भारतेन्दु हरिश्चंद्र सभी ने गंगा की महिमा गाई है।
गंगा पर आधारित भजन, श्लोक, चित्रकला और नृत्य शैलियाँ आज भी जीवंत हैं।
गंगा की वर्तमान स्थिति और गंगा दशहरा का पर्यावरणीय संदर्भ
गंगा दशहरा केवल धार्मिक नहीं, अब एक पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक बनता जा रहा है।
गंगा प्रदूषण की चुनौतियाँ
बढ़ते औद्योगिक कचरे, नालों और शव विसर्जन से गंगा की पवित्रता खतरे में है।
सरकार द्वारा नमामि गंगे योजना और गंगा स्वच्छता अभियान चलाए जा रहे हैं।
गंगा दशहरा का नया स्वरूप
अब लोग इस दिन गंगा की सफाई में भी भाग लेते हैं।
NGOs, स्कूल, कॉलेज द्वारा जागरूकता रैलियाँ, पोस्टर, नुक्कड़ नाटक आयोजित किए जाते हैं।
आध्यात्मिक महत्त्व और साधना का समय
गंगा दशहरा केवल बाहरी क्रियाकलाप नहीं, आंतरिक शुद्धि और साधना का समय भी है।
इस दिन गायत्री मंत्र, गंगा स्तोत्र, शिव चालीसा का पाठ विशेष फलदायक माना जाता है।
ध्यान, उपवास और सेवा के माध्यम से आत्मा की शुद्धि का पर्व भी है।
विश्वभर में गंगा दशहरा की मान्यता
गंगा दशहरा अब भारत तक सीमित नहीं रहा। जहां-जहां भारतीय प्रवासी हैं, वहाँ यह पर्व मनाया जाता है।
फिजी, मॉरिशस, सूरीनाम, नेपाल, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में भी गंगा की महत्ता बनी हुई है।
कई स्थानों पर प्रतीकात्मक ‘गंगा पूजन’ और ‘जल आराधना’ की जाती है गंगा दशहरा – आस्था, संस्कृति और चेतना का संगम
गंगा दशहरा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह संस्कृति की धारा, आस्था की ऊर्जा, और प्रकृति से संवाद का माध्यम है।
यह पर्व हमें न केवल अपने पूर्वजों की श्रद्धा, पौराणिक स्मृतियों, बल्कि वर्तमान की जल–संरक्षण की आवश्यकता का भी बोध कराता है।
माँ गंगा के अवतरण की यह तिथि हमें स्मरण कराती है कि जल ही जीवन है, गंगा ही संस्कृति है, और धर्म तभी तक जीवंत है जब तक प्रकृति जीवित है।
जय माँ गंगे! हर हर गंगे!



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