
भारत में लोग स्वास्थ्यवर्धक आहार के रूप में फलों को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन अब यही फल ज़हर बनते जा रहे हैं। कारण है — इन फलों को जल्द पकाने, रंगने और चमकाने के लिए गैर-स्वीकृत रसायनों और सिंथेटिक रंगों का प्रयोग। इसे रोकने के लिए FSSAI ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश जारी किए हैं कि वे कड़ी निगरानी करें और दोषियों पर FSS Act, 2006 के तहत सख्त कार्रवाई करें।
कौन-कौन से रसायन और रंग उपयोग किए जाते हैं और उनसे नुकसान क्या होता है?
रसायन / रंग उपयोग स्वास्थ्य पर असर
कैल्शियम कार्बाइड आम, केला, पपीता को पकाने में कैंसर, अल्सर, तंत्रिका तंत्र प्रभावित
इथीफॉन फलों को तेज़ी से पकाने में हार्मोनल असंतुलन, प्रजनन क्षमता पर असर
मालाचाइट ग्रीन, रोडामाइन B अंगूर, अनार आदि को रंगने में कैंसर, लिवर/किडनी डैमेज
पैराफ़िन मोम (औद्योगिक) फलों की चमक बढ़ाने में पाचन तंत्र में गड़बड़ी, पेट में जलन
विक्रेता ऐसा क्यों करते हैं?

फल जल्दी बिक जाएं, इसीलिए रसायन से जल्दी पकाते हैं
रंग-बिरंगे फल ग्राहक को आकर्षित करते हैं
मांग ज़्यादा और भंडारण क्षमता कम होने से शॉर्टकट अपनाते हैं
मुनाफा बढ़ाने के लिए नियमों की अनदेखी
क्या फल विक्रेताओं के पास FSSAI लाइसेंस होता है?
नहीं। भारत में अधिकांश फल विक्रेता बिना लाइसेंस के ही व्यापार करते हैं। FSSAI के नियमों के अनुसार हर खाद्य विक्रेता को पंजीकरण या लाइसेंस लेना अनिवार्य है।
स्थानीय प्रशासन और नगरपालिकाएं इस पर ध्यान नहीं देतीं, जिससे यह नियम कागज़ों तक सीमित रह जाता है।
FSSAI के निर्देश और कानूनी प्रावधान

FSSAI ने सख्त निर्देश दिए हैं कि फलों में मिलावट की सैंपलिंग, जांच और कार्रवाई तेज की जाए।
FSS Act, 2006 की धारा 59 के तहत:
जानबूझकर मिलावट पर 6 माह से उम्रकैद तक की सजा
5 लाख रुपये तक जुर्माना
लाइसेंस रद्द व कोर्ट में केस
स्थानीय निकायों की भूमिका
नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है कि वे
फल विक्रेताओं की नियमित जांच करें
बिना लाइसेंस कारोबारियों पर कार्रवाई करें
दूषित फलों की बिक्री पर रोक लगाएं
जनजागरूकता अभियान चलाएं
उपभोक्ताओं के लिए सुझाव
अत्यधिक चमकदार या तेज़ गंध वाले फलों से बचें
फल धोकर या छीलकर खाएं
स्थानीय किसानों से सीधे फल खरीदना बेहतर विकल्प है
FSSAI का यह कदम देश की सेहत बचाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। जब तक स्थानीय प्रशासन, उपभोक्ता और मीडिया सक्रिय नहीं होंगे, तब तक इन रासायनिक हमलों को रोका नहीं जा सकता।
“फल से ज़िंदगी बने, ज़हर नहीं — जागरूक बनिए, सुरक्षित खाइए!”



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