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उच्च न्यायालय की सख्ती के बाद कोतमा स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति का रास्ता साफ, वर्षों की उपेक्षा पर न्यायिक हस्तक्षेप बना सहारा

उच्च न्यायालय की सख्ती के बाद कोतमा स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति का रास्ता साफ, वर्षों की उपेक्षा पर न्यायिक हस्तक्षेप बना सहारा




कोतमा (अनूपपुर)। वर्षों से उपेक्षा और अव्यवस्था से जूझ रहे कोतमा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के संबंध में उच्च न्यायालय जबलपुर के हस्तक्षेप ने एक ऐतिहासिक मोड़ ले लिया है। नागरिकों की स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर सतत संघर्ष कर रहे पूर्व पार्षद देवशरण सिंह एवं समाजसेवी दीपक पटेल ने कोतमा के वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश शर्मा के माध्यम से अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय के सहयोग से मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी, जिसकी सुनवाई करते हुए डबल बेंच ने सशक्त निर्देश जारी किए हैं।

मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैथ एवं न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने आदेश पारित करते हुए यह स्पष्ट किया कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोतमा में स्वीकृत 15 पदों में से 8 पद रिक्त हैं और सभी विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद लंबे समय से खाली हैं। यह स्थिति एक गंभीर प्रशासनिक विफलता को दर्शाती है, विशेषकर तब जब यह क्षेत्र आदिवासी बहुल और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है।

न्यायालय ने राज्य शासन को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य विभाग वल्लभ भवन, भोपाल एक सप्ताह के भीतर अनिवार्यतः एक विशेषज्ञ चिकित्सक, एक सर्जन, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं एक महिला चिकित्सक की नियुक्ति सुनिश्चित करें। इसके अतिरिक्त, शेष रिक्त पदों को चार सप्ताह की समयावधि में भरा जाना अनिवार्य किया गया है।

अदालत ने यह भी निर्देशित किया कि केवल चिकित्सकों की पदस्थापना से दायित्व की इतिश्री नहीं मानी जाएगी, बल्कि संबंधित विशेषज्ञता के अनुरूप समुचित चिकित्सीय उपकरण एवं संसाधनों की उपलब्धता भी सुनिश्चित की जाए, जिसकी समयसीमा 15 दिवस तय की गई है।

न्यायालय ने यह स्पष्ट संकेत भी दिया कि यदि स्वास्थ्य विभाग द्वारा आदेशों की अवहेलना होती है, तो याचिकाकर्ता इस आदेश को पुनर्जीवित कर सकते हैं और कठोर कार्रवाई की मांग कर सकते हैं।

कोतमा नगर के नागरिकों ने इस निर्णय को न्याय की विजय बताते हुए देवशरण सिंह, दीपक पटेल, अधिवक्ता राजेश शर्मा एवं अभिषेक पाण्डेय का आभार व्यक्त किया है, जिनकी सतत पहल, साहसिक संघर्ष और कानूनी मार्गदर्शन से यह ऐतिहासिक निर्णय संभव हो सका।

यह मामला न केवल कोतमा अपितु समस्त प्रदेश के लिए एक मिसाल बन गया है कि जब जनता का पक्ष निर्भीकता से रखा जाए और जनहित सर्वोपरि हो, तो न्यायपालिका संज्ञान लेकर शासन को उत्तरदायी बनाने में संकोच नहीं करती।

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Kailash Pandey
Anuppur
(M.P.)

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